बेघर और बेरोजगार युवाओं का एक मात्र सहारा - ‘हवालात’


बेघर और बेरोजगार युवाओं का एक मात्र सहारा - ‘हवालात’
 

•    नाटक के माध्यम से दिखाया बेरोजगारी का मर्म

•    शिक्षा प्रणाली और सरकारी व्यवस्थाओं पर चोट 

 
बेघर और बेरोजगार युवाओं का एक मात्र सहारा - ‘हवालात’
नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स द्वारा बडी सादडी, नाईयों की तलाई स्थित नाट्यांश वर्कप्लेस पर एक दिवसीय नाट्य संध्या का आयोजन किया गया। रविवार को आयोजित नाट्य संध्या में संस्थान के कलाकारों द्वारा नाटक ‘‘हवालात’’ का मंचन किया गया। 

नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स द्वारा बडी सादडी, नाईयों की तलाई स्थित नाट्यांश वर्कप्लेस पर एक दिवसीय नाट्य संध्या का आयोजन किया गया। रविवार को आयोजित नाट्य संध्या में संस्थान के कलाकारों द्वारा नाटक ‘‘हवालात’’ का मंचन किया गया। 

1979 में लिखा यह नाटक शिक्षा प्रणाली और सरकारी व्यवस्थाओं के ढ़र्रे पर करारा व्यंग है। आज़ादी के बाद से आज तक आम आदमी अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है, फिर चाहे वह नौकरीपेशा हो या बेरोजगार।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित और युवा निर्देशक मोहम्मद रिज़वान मंसुरी द्वारा निर्देशित नाटक ‘हवालात’ रोटी-कपड़ा-मकान के लिए जूझ रहे शिक्षित बेरोजगारों की मनःस्थिति और आक्रोश को दिखाने के साथ ही सरकारी महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार और इसके बढने के कारणों को दिखाता है।

कथा सार

नाटक तीन बेघर, बेरोजगार युवको की कहानी को दिखाता है, जो सर्दी की रात में ठंड और भूख बचने की कोशिश में लगे है कि तभी वहाँ एक हवलदार आकर इन लडकों से पुछताछ करने लगता है। पहले तो सभी युवक, हवलदार के सवालो से डरते है पर बाद में इन युवको को हवालात एक स्वर्णिम सपने सा नजर आने लगता है। क्योकि सर्द रात में ठंड और भूख से बचने के लिये हवालात ही एकमात्र विकल्प नजर आ रह है। जहां रोटी भी मिलेगी और कंबल भी।

सभी युवक खुद को सिपाही के सामने जेबकतरा, हत्यारा और नक्सलाइट साबित करने का हर संभव जतन करते हैं। सिपाही चाह कर भी उनकी मदद नही कर पाता है क्योंकि वह भी सरकारी व्यवस्थाओं का मारा है। कहीं न कहीं सिपाही भी अफ़सरशाही की इस व्यवस्था में पीस रहा है। 

नाटक ‘हवालात’ आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक नज़र आता है जितना लेखन के समय था। बेरोजगार युवाओं और सिपाही के बीच बातचीत के माध्यम से स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा और सरकारी व्यवस्थाओं की हकीकत को बखूबी उजागर किया गया।

समय बीतता जाता है किन्तु आम आदमी आज भी अपनी जरूरतों को पूरा नही कर पा रहा है, आज भी आम आदमी व्यवस्था से परेशान हैं, बढ़ती हुई बेरोजगारी और भ्रष्टाचारी व्यवस्था के इस रवैये पर नाटक ‘हवालात’ करारी चोट करता हैं।

सयोंजक अशफ़ाक़ नूर ख़ान पठान ने बताया कि नाटक इस प्रस्तुति कि बेरोजगारों के किरदार में अगस्त्य हार्दिक नागदा, महेश कुमार जोशी, राघव गुर्जरगौड़ और सिपाही के किरदार में शक्ति सिंह पंवार ने अहम भूमिका निभाई। नाटक में प्रकाश संयोजन और संचालक - अशफ़ाक नूर खान, संगीत - जतिन सोलंकी, मंच सज्जा - अगस्त्य हार्दिक नागदा, मंच सहायक और मंच पार्श्व अमित श्रीमाली, पीयूष गुरुनानी, ईशा जैन, दिशा सक्सेना का भी सहयोग प्राप्त हुआ।
 

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