नाट्यांश के कलाकारों ने किया मुंशीजी की कहानी ‘कफन’ का मंचन

नाट्यांश के कलाकारों ने किया मुंशीजी की कहानी ‘कफन’ का मंचन

इस कहानी का नाट्य रूपांतारण एवं निर्देशन अमित श्रीमाली ने किया। 

 
नाट्यांश के कलाकारों ने किया मुंशीजी की कहानी ‘कफन’ का मंचन

कोविड़ महामारी के लॉकडाउन और अनलॉक के बाद यह टीम नाट्यांश की तीसरी प्रस्तुती है

नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान, उदयपुर के कलाकारों ने रविवारिय नाट्य संघ्या में मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘‘कफन’’ का मंचन किया। कॉविड - 19 के मद्देनजर मात्र 20 दर्शकों के लिये ही की गयी प्रस्तुती। तदोपरांत उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक श्रेष्ठतम कहानी ‘‘कफन’’ का मंचन किया गया। इस कहानी का नाट्य रूपांतारण एवं निर्देशन अमित श्रीमाली ने किया। 

अत्यन्त सुगठित एवं सुव्यवस्थित ढंग से मानव मानोवैज्ञानिक के धरातल पर उकेरी गई इस कहानी की मूल संवेदना यह है कि आधुनिक आर्थिक विषमता, बेरोजगारी और निकम्मे समाज-व्यवस्था के कारण व्यक्ति कितना स्वार्थी, कामचोर और जड़ हो जाता है कि वह अपनी मृतक पुत्रवधू और पत्नी के कफ़न के लिए एकत्र चन्दे के धन को शराब पीने में व्यय कर डालता है और अन्त में अपने इस कुकृत्य का समर्थन करने के लिए समाज की रीति-रिवाज को कोसता हुये  कहता है कि - ‘‘कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी, तन ढकने को भले चीथड़ा न मिले उसे मरने पर कफन चाहिए, वो भी नया।’’

कथासार

माधव की पत्नी के बच्चा होने वाला है, वह प्रसव-वेदना से छटपटा रही है। जबकि झोपड़े के द्वारा अलाव के सामने घीसू और माधव दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे यह इन्तजार कर रहे हैं कि कब की पत्नी मरे और घर में शान्ति हो। जब में माधव की स्त्री मर जाती है, पहले तो दोनों छाती पीटकर हाय-हाय करते हैं, फिर का लकड़ी और कफन के लिए चन्दा इकट्ठा करते हैं। बाप-बेटे दोनों दिन भर यहाँ-वहाँ भटकने के बाद कफन खरीदने के लिए दूकान पर जाते हैं, शाम होने तक भी कफन ना खरीद कर कफन के लिये एकत्र चंदे से पुडियाँ, तली हुई मछलियाँ आदि खाकर-पेट भरकर शराब पीते हैं और अन्ततः नशे में बेसुध होकर वहीं गिर जाते हैं। इस प्रकार, इस कहानी में ग्रामीण-जीवन की रूढ़िग्रस्तता और बेकारी का सफल चित्रण हुआ है। इस कहानी के माध्यम से कहीं ना कहीं सच/वास्तविकता और समाज के आडम्बर के बिच का संघर्ष दिखाया गया है। 

कलाकारों में बाप के किरदार में रागव गुर्जरगौड़ और बेटे के किरदार में चक्षू सिंह रूपावत ने दमदार अभिनय किया। मंच पाश्व में संगीत संयोजन - महेश कुमार जोशी, ईशा जैन, संगीत संचालन - मोहम्मद रिजवान मंसुरी और प्रकाश संयोजन एवं संचालन - अगस्त्य हार्दिक नागदा का रहा। इस नाट्य आयोजन को सफल बनाने मे मंच सहायक के रूप में फ़िज़ा बत्रा, धीरज ज़िंगर, भूपेन्द्र सिंह चौहान, रमन कुमार, पीयूष गुरुनानी एवं दाउद अंसारी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिज़वान मंसुरी ने बताया कि कोविड़ महामारी के लॉकडाउन और अनलॉक के बाद यह टीम नाट्यांश की तीसरी प्रस्तुती है। आगे भी संस्थान का प्रयास है कि ऐसी ही प्रस्तुतियां होती रहे। शुरूआती चरण में सोशल डिस्टेंसींग और कोविड प्रोटोकॉल के अंतर्गत मात्र 20 दर्शकों के सामने प्रस्तुति दी गयी। 
 

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