उदयपुर। भारतीय लोक कला मण्डल में दिनांक 30 जुलाई 2023 को पद्मश्री देवीलाल सामर की 112 वी जंयती धूमधाम से मनाई गई। जिसमें नृत्यों से कलाकारों ने दर्शको को मोहित किया।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाँ लईक हुसैन ने बताया कि 30 जुलाई को भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर का जन्म दिवस होता है और उनकी जयंती के अवसर पर प्रति वर्ष संस्था में कार्यक्रम आयोजित किये जाते है और इसी क्रम भारतीय लोक कला मण्डल में कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें सर्वप्रथम पद्मश्री देवीलाल सामर साहब की आदमकद प्रतिमा के समक्ष संस्था के निदेशक, अधिकारियों, सम्मानित अतिथियों एवं संस्था के कर्मचारियों ने पूजा की तथा पुष्पाजंली अर्पित की।
संस्था निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि यह सर्व विदित है कि स्वर्गीय सामर साहब एक सिद्ध हस्त कलाकार, निर्देशक, लेखक थे उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन कला को समर्पित किया। लोक कला और कलाकारों को समाज में मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिले इसी उद्धेश्य से उन्होंने वर्ष 1952 में भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर की स्थापना की और अपने सम्पूर्ण जीवन को इसी में लगा दिया अपने उद्धेश्यों की पूर्ति हेतु उन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करते हुए विदेशों में हमारी लोक कला एवं संस्कृति का परचम फहराया।
उसके पश्चात् भारतीय लोक कला मण्डल के गोविन्द कठपुतली प्रेक्षालय में रंगपृष्ट संस्था के कलाकारों द्वारा श्रीमती शिप्रा चटर्जी के निर्देशन में कत्थक नृत्यों की प्रस्तुतियाँ दी।
कार्यक्रम का प्रारम्भ बाल कलाकारों कि ‘‘कान्हा वन्दन’’ नृत्य की प्रस्तुति से हुआ - यह नृत्य श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार से जुड़ा नृत्य था । कृष्ण को कन्हैया, श्याम, गोपाल आदि नामों से भी जाना जाता है और भगवान श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट थे। उसी नटखट अन्दाज़ में नन्हे कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियाँ दी । इस नृत्य में बाल कलाकार (ग्रुप प्रस्तुति) विहा, साहिती, नायसा, चेरिल, हरनिशा थी। अगली प्रस्तुति ‘‘कलिंग नर्तनम् हुई इस नृत्य में लय और भाषा का एक प्रयोग है। इसमें श्रीकृष्ण की अद्भुत बाल लीला को भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया गया है। इसकी प्रस्तुति बाल कलाकार (एकल प्रस्तुति)-गीतिशा पाण्डेय ने दी।
अंतिम प्रस्तुति ‘‘कृष्ण मेघ मल्हार’’ हुई धर्म ग्रन्थों के अनुसार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। माना जाता है कि भादों की कृष्ण जन्माष्टमी तक कान्हा की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सावन में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा द्वारिकाधीश के रूप में की जाती है। ग्रन्थों के अनुसार बसंत के बाद श्रीकृष्ण इसी माह में रास रचाते हैं। यह समाहिक प्रस्तुति सुहानी, रीना, ज्योति, महेश्वरी, माही, अनन्या एवं पूर्वान्शी ने दी।
कार्यक्रम के अन्त में संस्था निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने कार्यक्रम में पधारने पर सभी अतिथियों, मेहमानों एवं कलाकारों का आभार प्रकट किया।
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