उदयपुर, 19 जनवरी 2021। रौबदार मुँछें, चेहरे पर अनूठा तेज, शीश पर शिरस्त्राण, भाव प्रवणता के साथ सृजित मूर्त आवक्ष एक बारगी देखते ही बनते हैं। शिल्पग्राम का संगम सभागार में इन दिनों चल रही फाइबर स्कल्पचर कार्यशाला में निर्मित प्रतिमाओं को तराशने और कृतियों को सुंदर बनाने का कार्य चल रहा है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में पुराने जमाने के विभिन्न रियासतों के रियासतदारों के मूर्त आवक्ष (बर्स्ट) तथा उनकी रियासत के राज चिन्हों व ध्वाजों का सृजन किया जा रहा है।
फाइबर लैटिन शब्द फाईब्रा से जनित फाइबर आज व्यावसायिक और कलात्मक प्रयोग में लाया जा रहा है। दुनिया भर के मूर्तिकारों ने इस माध्यम से दुनियां को अनेक बेहतरीन कला कृतियों प्रदान की हैं। ऐसे ही कुछ प्रेरणादायी शिल्पों को ध्यान में रखते हुए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है। कार्यशाला में 14 युवा व प्रतिष्ठित मूर्तिकार भाग ले रहे हैं।
कार्यशाला में मेवाड़ रियासत के महाराणा प्रताप, किशनगढ़ रियासत के पृथ्वी सिंह, बूंदी के महाराव राजा राम सिंह, जयपुर के जयसिंह द्वितीय, जैसलमेर के रावल जैसल, जोधपुर के राजा जोधा, बीकानेर के जनरल महाराजा सर गंगा सिंह, अलवर के जयसिंह प्रभाकर, मराठा रायासत के छत्रपति शिवाजी महाराज, कच्छ रियासत के महाराजाधिराज मिर्जा महाराव सर खेंगरजी तृतीय सवाई बहादुर तथा जामनगर रियासत के लेफ्टीनेन्ट कर्नल महाराजा जामश्री सर रंजीत सिंह, बड़ौदा रियासत के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ के मूर्त आवक्ष शामिल हैं। कार्यशाला में इन्हीं कलाकारों द्वारा इन्ही रियासतों के राज चिन्ह व ध्वजों का सृजन किया गया है।
कार्यशाला में मुंबई के वैभव मारूति मोरे, राहुल गणेश दलवी, रोहित दिलिप गोरे, कोल्हापुर के संदीप चंद्रकांत वेदांगेकर, प्रदीप चन्द्रकांत कुम्भार, कर्नाटक के बिरदेव अनप्पा येडके, कोल्हापुर के अभिजीत अनिल कुम्भार, रत्नागिरी के सुमेध रामदास सावंत, वाराणसी के धर्मेन्द्र कुमार, कल्याण के सतीश शिवाजी माने, जालना के कलाश्री किरणचन्द लोखण्डे, अहमदनगर के योगेश देवीदास लोखण्डे, ठाणे के प्रवीण गोपीनाथ गौरव तथा मुंबई के प्रथमेश दीपक भोगले इन प्रतिमाओं का सृजन कर रहे हैं।
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