सेना का कारवां महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी पहुंचा


सेना का कारवां महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी पहुंचा

भारतीय सेना का वीर भूमि मेवाड़ के ऐतिहासिक स्थलों और वीर-वीरांगनाओं को नमन करना बच्चों-युवाओं में देशक्ति की अलख को जगाना है: लक्ष्यराज सिंह मेवाड़
 
maharana mewar
-सेना का कारवां एकलिंगगढ़ छावनी से 550 किमी का पैदल फासला तय कर हल्दीघाटी, रणकपुर, कुंभलगढ़, दिवेर, चित्तौड़गढ़, चावंड होते हुए महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी पहुंचा तो मेवाड़ ने अगवानी की 
-मेवाड़ ने भूतपूर्व सैनिकों और वीर नारियों और मेवाड़ ट्रेल टीम के सभी सदस्यों को स्मृति चिह्न प्रदान कर स्वागत व सम्मान किया 

उदयपुर 27 अक्टूबर 2021। भारतीय सेना पिछले 20 दिनों से मेवाड़ ट्रेल एक्सपेडीशन के तहत ‘मेवाड़ वीरों के त्याग और बलिदान की धरती’ को नमन करते हुए लोगों में देशभक्ति की अलख जगाने का काम कर रही है। एकलिंगगढ़ छावनी से गत 8 अक्टूबर को शुरू हुआ यह देशभक्ति का कारवां वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप-अकबर के बीच हुए विश्व प्रसिद्ध युद्ध स्थल हल्दीघाटी, रणकपुर, कुंभलगढ़, दिवेर, चित्तौड़गढ़, चावंड होते हुए 550 किमी का पैदल फासला तय कर बुधवार को महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी पहुंचा है। 

भारतीय सेना का विश्व प्रसिद्ध वीर भूमि मेवाड़ के ऐतिहासिक स्थलों और वीर-वीरांगनाओं को नमन करना मेवाड़ ही नहीं, बल्कि देशभर के बच्चों-युवाओं में देशभक्ति की अलख को जगाना है। भारतीय सेना ने मेवाड़ के इन ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के दौरान संबंधित क्षेत्र के खासकर बच्चों और युवाओं को मेवाड़ के वीरों के त्याग-बलिदान और भारतीय सेना के पराक्रम से रू-ब-रू कराया है। यह बात मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी अध्यक्ष लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कही। 

mewar trail

इससे पहले भारतीय सेना ने बुधवार को महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी पर प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनकी वीरता को नमन किया। मेवाड़ ट्रेल टीम के सैनिकों ने मोती मगरी में निशान (झंडा) फहरा कर मेवाड़ी परंपरा का निर्वहन किया। समिति अध्यक्ष लक्ष्यराज सिंह ने गत 8 अक्टूबर को एकलिंगगढ़ छावनी में सेना को जो तलवार सौंपी थी उस तलवार को सेना ने मेवाड़ को ससम्मान भेंट किया। 

समिति अध्यक्ष लक्ष्यराज सिंह ने भारतीय सेना का मेवाड़ी परंपरा के अनुसार सम्मान किया। इस अवसर पर भूतपूर्व सैनिकों और वीर नारियों और मेवाड़ ट्रेल टीम के सभी सदस्यों को स्मृति चिह्न प्रदान कर उनका स्वागत व सम्मान किया। इस दौरान ब्रिगेडियर शेखर, भारतीय सेना में रहे लेफ्टिनेंट जनरल एनके सिंह, कैप्टन ऋषभ सूरी, आरएनटी प्रिंसिपल डॉ. लाखन पोसवाल आदि गणमान्य मौजूद थे। बता दें, 27 अक्टूबर का दिन भारतीय सेना के इतिहास में इन्फैन्ट्री दिवस के रूप में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना ने कश्मीर के अन्दर से पाकिस्तान के सैनिकों और घुसपैठियों को खदेडऩे का मिशन शुरू किया था। 

सेना के इस दल ने बच्चों-युवाओं में ऐसे प्रज्जवलित की देशभक्ति की भावना

समिति अध्यक्ष लक्ष्यराज सिंह ने बताया कि मेवाड़ ट्रेल एक्सपेडीशन का उद्देश्य आजादी की 75 वीं वर्षगांठ ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ और 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत के 50वां वर्ष स्वर्णिम विजय वर्ष के शुभ अवसर पर डेजर्ट कोर, बेटल एक्स डिविजन और नवीं ग्रेनेडियर्स (मेवाड़) द्वारा मेवाड़ की धरती और उसके वीरों को नमन करना था। इस ऐतिहासिक अवसर को यादगार बनाने के लिए आयोजित इस अभियान में नवीं ग्रेनेडियर्स (मेवाड़) और कोनार्क कोर के 2 महिला अधिकारियों सहित कुल 70 सैनिक शामिल हुए। यह ट्रेल 8 अक्टूबर को एकलिंगगढ़ मिलिट्री स्टेशन उदयपुर से शुरू हुआ था। यह मेवाड़ ट्रेल 20 दिनों में 550 किमी की दूरी पैदल तय करते हुए मेवाड़ की पावन भूमि से होते हुए सभी ऐतिहासिक और सैन्य महत्व के स्थानों से होते हुए उदयपुर शहर में संपन्न हुआ। इस अभियान दल ने उन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों के पूर्व सैनिकों, वीरांगनाओं और 1971 युद्ध के वीर सैनिकों से मिलकर उन्हें सम्मानित किया। वर्तमान में सेना द्वारा संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया। जनता की समस्याएं भी सुनीं। इस दल ने युवाओं में देशभक्ति की भावना को प्रज्जवलित करने के लिए स्कूल-कॉलेजों के छात्र-छात्राओं से मुलाकात कर देशभक्ति के लिए प्रेरित किया। 

मेवाड़ के इन ऐतिहासिक स्थलों पर इसलिए पहुंची हमारी सेना 

10 अक्टूबर: हल्दीघाटी के मैदान में 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच युद्ध लड़ा

यह अभियान और भी विशेष इस लिए बन गया क्योंकि इस अभियान दल में मेवाड़ भील कोर के जवान भी सम्मिलित हुए। अभियान दल 10 अक्टूबर को मेवाड़ क्षेत्र के महान योद्धाओं की वीरता और बलिदान की धरती एवं विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी में पहुंचा, जहां स्थानीय नागरिकों ने सेना का जोर-शोर से स्वागत और अभिनन्दन किया। हल्दीघाटी के मैदान में 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच युद्ध लड़ा गया। जिसमें महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने अकबर की सेना से लोहा लेते हुए उन्हें भारी क्षति पहुंचाई थी।

15 अक्टूबर: बैटल आफ दिवेर में अर्पित की श्रद्धांजलि

भारतीय सेना गत 15 अक्टूबर को विजय दशमी के उपलक्ष्य पर हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग बैटल आफ दिवेर में पहुंची। महाराणा प्रताप पूजन, शस्त्र पूजन और वार मेमोरियल में शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। 

20 अक्टूबर: चितौडग़ढ़ की पावन धरा पर पहुंचे 

सेना का दल गत 20 अक्टूबर को मेवाड़ और विशेष कर नवीं ग्रेनेडियर्स (मेवाड़) के लिए महत्वपूर्ण स्थल चितौडग़ढ़ पहुंचा। चितौडग़ढ़ की पावन धरा में ही रानी पद्मिनी और 13000 वीरांगनाओं ने राजपूत मर्यादा का मान रखते हुए जौहर कुंड में जौहर किया था। नवीं ग्रेनेडियर्स (मेवाड़) इस दिन को चित्तौड़ दिवस और स्थापना दिवस के रूप में भी मनाता आ रहा है। 
 

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