फ्ल्यूट सिस्टर्स के बांसुरी वादन व शस्त्रीय गायक पद्मश्री पं.उल्हास कशालकर के शास्त्रीय गायन में खोयें श्रोता

फ्ल्यूट सिस्टर्स के बांसुरी वादन व शस्त्रीय गायक पद्मश्री पं.उल्हास कशालकर के शास्त्रीय गायन में खोयें श्रोता

महाराणा कुंभा संगीत समारोह

 
Maharana Kumbha Sangeet samaroh

उदयपुर 18 मार्च 2023। महाराणा कुंभा संगीत परिषद द्वारा भारतीय लोककला मण्डल में आयोजित किये जा रहे 60 वें महारणा कुंभा संगीत समारोह के पांचवे दिन आज फ्ल्यूट सिस्टर्स के रूप में प्रसिद्ध बांसुरी वादिक देबोप्रिया और सुष्मिता के युगल बांसुरी वादन एवं शास्त्रीय गायक पद्मश्री पं.उल्हास कशालकर के शास्त्रीय गायन में खो गये।

प्रथम सत्र में देबोप्रिया और सुष्मिता ने युगल बांसुरी वादन की शुरूआत राग पुरिया कल्याण से की। बांसुरी से निकली धुनों में श्रोता खो से गये। इसके बाद उन्होंने एक आलाप के साथ झोड़ और झाला, और फिर दो रचनाएं रूपक ताल और द्रुत तीनताल पर प्रस्तुत की। उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन लोक धुन के साथ किया। उनके साथ तबले पर संगत जोधपुर के एक बहुत ही युवा और प्रतिभाशाली तबला वादक आशीष राघवानी ने की।

समारोह के द्वितीय सत्र में देश के सुविख्यात वरिष्ठ शास्त्रीय गायक पद्मश्री पण्डित उल्हास कशालकर ने सुमधुर गायन प्रस्तुत किया। पण्डित उल्हास कशालकर ख्याल गायकी के ग्वालियर, जयपुर तथा आगरा घरानों के निष्णात एवं अग्रणी प्रतिनिधि हैं। इन्होंने अपने कार्यक्रम की शुरूआत राग वसन्त से की। जिसमें इन्होंने तिलवाड़ा ताल में निबद्ध, विलम्बित ख्याल की प्रसिद्ध बन्दिश नबी के दरबार सब मिल गावो.... तथा तीनताल में निबद्ध छोटे ख्याल की बंदिश कान्हा रंगवा न डारो...प्रस्तुत कीं। 

पं. कशालकर ने राग वसंत में एक पारम्परिक द्रुत तराना भी प्रस्तुत किया। तत्पश्चात उन्होंने राग बहार में एक लोकप्रिय पारम्परिक बंदिश कलियन संग करता रंगरलियाँ.... तथा द्रुत एकताल में निबद्ध बंदिश बन बन बेलरि फूली अमरैया... प्रस्तुत कीं। इन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन राग भैरवी में एक सुन्दर रचना से किया। 

पण्डित कशालकर सुमधुर एवं लचीली आवाज़ के धनी हैं और तीनों घरानों की विशेषताओं को समेटे हुए इनकी भावपूर्ण एवं आकर्षक गायकी ने श्रोताओं को आनंदविभोर कर दिया। गायन में रसपूर्ण एवं सुन्दर राग-विस्तार, बहलावा, बोल-बाँट, लयकारी, गमक, बोल-तान तथा जटिल द्रुत तानों ने श्रोताओं का मन मोह लिया। तबले पर स्वप्निल भिसे तथा हारमोनियम पर अनंत जोशी ने संगत की। गायन में,पण्डित कशालकर की योग्य संगति, इनके शिष्य प्रोफ़ेसर ओजेश प्रताप सिंह ने की। इसमें कोई संदेह नहीं कि पण्डित उल्हास कशालकर के अत्यंत भावपूर्ण गायन को उदयपुर के रसिक श्रोतागण दीर्घकाल तक स्मरण रखेंगे। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. लोकेश जैन, विदुषी जैन एवं डिम्पी सहालका ने किया। मुख्य अतिथि नॉर्थ जोन कलचरल सेन्टर के निदेशक मोहम्मद फुरकान खान, विशिष्ठ अतिथि राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो.एस.एस.सारंगदेवोत, एडीजे सिद्धार्थ दमामी, परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.प्रेम भण्डारी, मानद सचिव मनोज मुर्डिया, पुष्पा कोठारी ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया।

इस वर्ष का मुरली नारायण माथुर सम्मान पद्मश्री शास्त्रीय गायक पं. उल्हास कशालकर को प्रदान किया गया। परिषद के मानद सचिव मनोज मुर्डिया ने बताया कि रविवार को समारोह के अंतिम दिन कृष्णेंदु साहा ओडिसी नृत्य की एवं द्वितीय सत्र में कार्यक्रम के अंत में दिल्ली के मशहूर दी प्रोजेक्ट त्रिवेणी ग्रुप, ताल कचहरी, कत्थक, भरतनाट्यम एवं ओडिसी नृत्य की सामूहिक प्रस्तुति देगा।

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