ऐतिहासिक जुलूस में उमड़ा जैन समाज का सैलाब

ऐतिहासिक जुलूस में उमड़ा जैन समाज का सैलाब

स्वर्णकलश सहित 1008 कलशों से किया भगवान का अभिषेक

 
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उदयपुर 2 मई 2023 । श्री महावीर जिनालय दिगंबर जैन व सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से फतहस्कूल में आयोजित किये जा रहे पांच दिवसीय श्रीमद मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक रजत मान प्राण प्रतिष्ठा महामहोत्सव जन्मकल्याणक के दूसरे दिन आज भगवान की प्रतिमा पर स्वर्ण कलश सहित 1008 कलशों से भगवान का अभिषेक किया गया।

प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के अध्यक्ष राजेश शाह ने बताया कि श्रीमद जिनेन्द्र पंचकल्याणक महामहोत्सव के अवसर पर मंगलवार को सुमेर पर्वत हेतु जुलूस निकाला गया। हाथी, घोड़ों और बग्गियों के साथ विभिन्न मार्गों से निकले ऐतिहासिक जुलूस में जैन समाज के लोगों का सैलाब उमड़ा। जुलूस के वर्धमान सभागार पहुंचने पर वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ की मौजूदगी में 1008 कलशों से भगवान का जन्माभिषेक मनाया गया।

सर्व ऋतुविलास मार्ग स्थित महावीर मंदिर के श्रीमद जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा प्राण महामहोत्सव के दूसरे दिन उदयपुर में ऐतिहासिक जुलूस वर्धमान सभागार से जुलूस रवाना हुआ। यात्रा में हाथी व 2 घोड़ों के अलावा 35 बग्गियों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के प्रमुख पात्र इन्द्रगण सवार थे। 3 बैड की मधुर ध्वनियों के बीच निकली यात्रा का जगह-जगह विभिन्न समाज के लोगों ने पुष्पवर्षा कर अभिनंदन किया।

महामंत्री प्रकाश सिंघवी ने बताया कि पूरे भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों से आये जैन समाज के पुरुष व महिलाएं जूलूस में उमड़ी। वहां से जुलूस मुख्य मार्ग से होते हुए राजकीय फतह स्कूल स्थित वर्धमान सभागार पहुंचा। वात्सल्य वारिधि आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ससंघ सानिध्य की मौजूदगी में पाण्डुक शिला पर तीर्थंकर जिन बालक को विराजमान कर सौधर्म इन्द्र के अभिषेक करने के बाद की ओर से स्वर्ण कलश से तीर्थंकर बालक का अभिषेक किया गया। बाद में महामहोत्सव के पात्रों द्वारा 1008 कलशों से भगवान का जन्माभिषेक जयकारों के बीच मनाया गया।

जैन समाज के लोगों में उमड़े सैलाब के चलते सभागार में आदिनाथ भगवान व आचार्य वर्धमान सागर महाराज के जयकारे गूंजे। संचित पुण्यों से मिलता तीर्थंकररूपी कर्म का फलः आचार्यश्री वर्धमान सागर वात्सल्य वारिधि व राष्ट्र गौरव आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ने कहा कि आत्मा कई भव में भ्रमण करती है तब पूर्व वर्षों के संचित पुण्य से तीर्थंकर नाम कर्म का फल मिलता है। तीर्थंकर भगवान द्वारा रतन त्रय धर्म की वृष्टि की जाती है एवं देवताओं द्वारा रत्नों की वृष्टि की जाती है ।

जो प्राणी दर्शन ,विशुद्धि सोलह कारण भावना का चिंतन जीवन में करते हैं ,जगत के प्राणी सुखी कैसे हो इस मंगल भावना को लेकर तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति का बंघ करते हैं प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ से लेकर अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी सभी 24 तीर्थंकर ने तीर्थंकर प्रकृति का बंघ किया। पंचकल्याणक में नाटकीय दृश्य से धर्म के संस्कार दिए जाते हैं।

बाल ब्रह्मचारी गजू भैय्या ,राजेश पंचोलिया इंदौर अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि तीर्थंकर सहित सभी प्राणी संसार के चारों गति के अनेक भवों में भ्रमण कर मनुष्य गति में आते हैं। तीर्थंकर प्रभु की दिव्य देशना से धर्म प्रवर्तन होता है । आज आपको धर्म की वाणी सुनने का आसानी से अवसर मिल रहा, किंतु श्री आदिनाथ भगवान के पूर्व 18 कोड़ा कोड़ी वर्षाे तक धर्म की वाणी की देशना नहीं हुई। इसलिए धर्म को समझने का प्रयास करना चाहिए आमोद प्रमोद से समय नष्ट होता है पंचकल्याणक में जो नाटकीय दृश्य दिखाए जाते हैं उससे धर्म के संस्कार दिए जाते हैं।

महामंत्री विनोद कंठालिया ने बताया कि आज तीर्थंकर बालक का जन्म हुआ। तीर्थंकर बालक के जन्म पर 12 करोड़ से अधिक वाद्य यंत्रों का वादन होता है। सोधर्म इंद्र सचि इंद्राणी तथा सभी इंद्र परिवार के साथ आते हैं ,और सुमेरु पर्वत पर 1008 कलशो से तीर्थंकर बालक का अभिषेक करते हैं। सोधर्म इंद्र के पुण्य  के बारे में आचार्य श्री ने बताया कि सौधर्म इन्द्र की आयु बहुत होती है वह अनेक तीर्थंकरों के सभी कल्याणक मनाते हैं और इतना अधिक पुण्य अर्जित करते हैं कि वह  अगले भव में मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर संयम धारण मुनि दीक्षा लेकर मोक्ष गामी होते हैं अर्थात एक भव अवतारी हो जाते हैं ।

पंचकल्याणक के माध्यम से आपको यह चिंतन करना है कि हमें क्या करना है मनुष्य पर्याय में जन्म क्यों हुआ ,जीवन को सार्थक कैसे करेंगे ,जीवन की सार्थकता इसी से है कि आप धार्मिक अनुष्ठान पंचकल्याणक में भक्ति अनुष्ठान कर सातिशय पुण्य का अर्जन करें। भगवान का रूप अलौकिक होता है सोधर्म इंद्र की दो नेत्रों से तृप्ति नहीं होती है ,तो वह 1000 नैत्र लगाकर भगवान के सौंदर्य को देखते हैं ।आज आप लोग चेहरे की सुंदरता दिखाने के लिए कृत्रिम साधनों का उपयोग करते हैं कृत्रिम साधन केसे वस्तु ,पदार्थों से बने हैं उसका विचार नहीं करते ।सुंदरता सौंदर्य से नहीं गुणों से होती है। जीवन में  इतना पुण्य अर्जन करो सोलह कारण भावना के चिंतन से   तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति का बंघ होगा। समारोह मंे शंातिलाल भोजन, विनेाद फान्दोत, शांतिलाल जैन सहित अनेक पदाधिकारी मौजूद थे।
 

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