उदयपुर। असम के राज्यपाल महामहिम गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि लक्ष्मण सिंह कर्णावट को समाज सेवा से आगे बढ़ते हुए काव्य क्षेत्र में उतरकर मेवाड़ की महिमा गाते देख मन प्रसन्न हुआ। मैंने किताब नहीं पढ़ी, सिर्फ कर्णावट का नाम सुनकर यहां आया हूँ। मेवाड़ की महिमा शब्द व्यक्ति के मन में एक संस्कार पैदा करता है। मां सरस्वती की कृपा और पुस्तक पर प्रभु एकलिंगनाथ का चित्र दर्शाते ही उनका काम पूरा हो गया।
वे यहां जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित भव्य समारोह में लक्ष्मण सिंह कर्णावट द्वारा रचित मेवाड़ महिमा पुस्तक के विमोचन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। समारोह की अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल डॉ. एस एस सारंगदेवोत ने की। विशिष्ट अतिथि मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ के कुलपति प्रो. परमेन्द्र जी दशोरा थे। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रदीप कुमावत ने शिरकत की।
कटारिया ने कहा कि मेवाड़ के महाराणा स्वयं को प्रभु एकलिंगनाथ का दीवान मानकर काम करते रहे। बप्पा रावल से लेकर महाराणा भगवत सिंह तक का इतिहास आपने अपने इन पद्यों में लिखा है। यह किताब आने वाली पीढ़ी को मेवाड़ का इतिहास बताएगी, 300 पेज की यह पुस्तक पढ़ कर लगेगा कि मेवाड़ क्या है। इस पुस्तक से पीढियां समझेगी कि मेवाड इतना़ स्वाभिमानी क्यों है एवं इसे याद रखेगी। आपने अपनी भाषा में इसे कविता के रूप में संकलित किया है, मैं मन से आपको बधाई देता हूँ। एक बात आप सभी को और बताना चाहूंगा कि असम ने भी मेवाड़ की तरह कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। लोगों को कर्णावट जी से प्रेरणा लेनी चाहिए कि अगर मन में इच्छा शक्ति हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। निश्चित ही यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
अध्यक्षता करते हुए डॉ. सारंगदेवोत ने कहा कि स्वाध्याय के बिना इतनी अच्छी पुस्तक नहीं लिखी जा सकती। पुस्तक ने गागर में सागर भरने का काम किया है निश्चित रूप से विश्वविद्यालयों में रेफरेंस के रूप में यह पुस्तक काम आएगी। इतिहासकार कहते हैं कि अलग-अलग पुस्तकों में कभी किसी महाराणा के साथ तो कभी किसी महाराणा के साथ न्याय नहीं हुआ लेकिन आपने इस पुस्तक में सभी महाराणाओं के साथ न्याय किया, ऐसा प्रतीत होता है। जिस तरह कन्हैयालाल सेठिया की कविता अरे घास की रोटी.. लोगों की जुबान पर है इसी तरह आपकी ये कविताएं भी आने वाली पीढियों की जुबान पर होगी।
विशिष्ट अतिथि प्रो. परमेन्द्र जी दशोरा ने कहा कि 302 पृष्ठों में 32 महाराणाओं के बारे में जानकारी दी गई है। इतिहास साहित्य की कृति है या साहित्य इतिहास की, यह कहना मुश्किल हो जाता है लेकिन इतिहासकारों को यह मेवाड़ महिमा निश्चित रूप से शिक्षा देगी। इतिहास दो तरह का होता है - एक शासन पोषित जो विवादों में रहता है और दूसरा जो प्रज्ञा लिखित, जो बुद्धि से लिखा जाता है। आज हम देख रहे हैं कि इतिहास का प्रतिकार किस तरह किया जा रहा है, ऐसे में साहित्य के माध्यम से इतिहास को पढाना प्रासंगिक हो जाता है। इमरजेंसी के बाद महाराणा भगवत सिंह की मुखर्जी चौक में हुई सभा मुझे याद आती है जिसमें उन्होंने मेवाड़ की सीमा को कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारिका से असम तक बताया था और आज हमारे कटारिया जी उसी असम तक मेवाड़ का परचम लहरा रहे हैं।
उन्होने कहा कि ‘‘मेवाड़ महिमा‘‘ पुस्तक में बप्पा रावल से लेकर महाराणा भगवत सिंह जी तक का श्रुत इतिहास जो प्रायः लुप्त होने के कगार पर है, उसे समाहित करते हुए एतिहासिक तथ्यों के आधार पर कविता के रूप में इतिहास को प्रस्तुत करके कवि ने अपने को अच्छा साहित्यकार एवं इतिहासकार सिद्ध किया है।
मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि आज एक और दुर्लभ संयोग है कि श्रावणी नक्षत्र में हम इस पुस्तक का विमोचन कर रहे हैं जिसकी अधिष्ठात्री माँ सरस्वती है। उन्होंने कहा कि गद्य रूप में इतिहास लिखना फिर भी आसान है लेकिन इसे पद्य रूप में संकलित करना और लिखना अपने आप में अनूठा है। मैंने महाराणा प्रताप पर फिल्म बनाई थी इसलिए इस तरह के रचनात्मक कार्यों में आने वाली कठिनाइयों को मैं समझ सकता हूँ। उन्होंने कहा कि मैं गद्य में राजेंद्र शंकर भट्ट की एक पुस्तक को जरूर रेकमेंड करूंगा, वह सबको पढ़नी चाहिए।
पुस्तक के लेखक लक्ष्मणसिंह कर्णावट ने कहा कि जब मैंने इतिहास पढ़ा तो मैं खुद हतप्रभ हो गया। दुश्मन को हराकर छः छः माह तक कैद करना और फिर माफी मांगने पर मुक्त करके उसे वापस राजपाट सौंप देना, यह जज्बा सिर्फ मेवाड़ के महाराणाओं में ही था। महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा ने ऐसा ही किया था वहीं चुंडा ने राजपाट का त्याग तक कर दिया। रानी पद्मिनी के जौहर को कौन भूल सकता है ? मेवाड़ का इतिहास वर्षों तक याद किया जाएगा। राम मंदिर के निर्माण में जिस हल्दीघाटी की माटी का उपयोग किया गया हो उसका मैं क्या बखान करूं, इसे पद्य के रूप में रचना मेरे लिए काफी कठिन रहा। महाराणा भूपाल सिंह ने सरदार पटेल के रियासतों के विलीनीकरण को प्राथमिकता दी। मैं न तो कोई इतिहासकार हूँ और न कवि, बस भावना के अतिरेक में कलम चला बैठा।
इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. देव कोठारी, उद्यमी शांतिलाल मारू, जीतो के पूर्व अध्यक्ष राज सुराना, रोटरी क्लब डिस्ट्रिक्ट 3056 के प्रांतपाल डॉ. निर्मल कुणावत, रोटरी क्लब ऑफ उदयपुर के अध्यक्ष गिरीश मेहता, चंद्रवीर सिंह पिपलिया, ग्रुप कमांडर गजेंद्र सिंह बांसी, कवि राव अजातशत्रु, प्रकाश नागौरी, तेरापंथ सभा उदयपुर के अध्यक्ष अर्जुन खोखावत, मेवाड़ तेरापंथ समन्वय समिति के संयोजक सूर्यप्रकाश मेहता, कई इतिहासकार, साहित्यकार, कवि एवं कई गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
आरंभ में मां सरस्वती की वंदना की गई एवं दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। कमल कर्णावट ने स्वागत उद्बोधन में अतिथियों का स्वागत किया एवं मेवाड़ी पगड़ी पहनाकर व शाल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। पद्म भूषण महाराणा कर्ण सिंह जी ‘बीकानेर‘ के संदेश का वाचन अजातशत्रु सिंह शिवरती ने किया। श्री पदम दूगड़ ने लक्ष्मण सिंह कर्णावट का जीवन परिचय दिया, डॉ. एल. एल. धाकड ने पुस्तक में किए गए इतिहास के संकलन की व्याख्या की, मधु डागा ने अपने पिता की जीवन यात्रा में आए संघर्षों को बताया, आभार लता कर्णावट ने व्यक्त किया एवं संचालन आलोक पगारिया ने किया।
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