उदयपुर 26 मार्च 2025। मेवाड़ के सबसे बड़ा महोत्सव गणगौर को देखते हुए तैयारियां जोरो पर चल रही है। पूरी तरह महिलाओं को समर्पित इस महोत्सव को लेकर प्रदेश के कई ईलाकों में अलग ही चाव दिखता है।
होलिका दहन से शुरू होने वाले 16 दिवसीय त्योंहार को लेकर प्रदेश भर में अलग-अलग मान्यताएं दंतकथा के रूप में सामने आती गई है। लेकसिटी में शिल्प कलाकार इन दिनों ईशर ओर गणगौर की प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में लगे हुए है।
पारम्परिक मान्यता के अनुसार महाराणा काल में मनने वाले गौरी पर्व को करीब 200 साल से गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। चुड़ा और चुन्दड़ की चिरायू कामना के लिए महिलाएं इस त्योंहार को मनाती आई है। होलिका दहन की राख से युवतियां पिण्ड बनाती है और 16 दिनों तक उसकी पूजा अर्चना करती है।
नारी मन की सभी चैष्ठाओं को पूरा करने कुंवारी युवतियां 16 दिन तक वृत भी रखती हैं, इनमें मनचाहा वर पाना, पति की दिर्घायू की कामना, बच्चों की अच्छी शिक्षा, परिवार की सुख समृद्धि आदि मनोकामना शामिल है। गणगौर से पहले मेवाड़ में छोटी गणगौर का मेला लगता है, जो महिलाएं होलिका दहन के दिन पिण्ड नहीं ले जा सकती है वह इस छोटे मेंले से पिण्ड भी ले जाती है और ईशर और गणगौर की प्रतिमाएं भी यहीं से खरीदकर ले जाती है। इस बार गणगौर पर्व को देखते हुए शिल्प कलाकार काफी उत्साहित नजर आ रहे है और रंग बिरंगी यह प्रतिमाएं भी सभी को काफी आकर्षित कर रही है।
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