यकीन मानिये, यह दिवस हर रोज़ मनाना चाहिए और शायद मनाया भी जा रहा है । चाय के बिना सुबह ऐसी लगती है मानो सूरज ऊगा ही नहीं । विश्व में लोग तकरीबन 300 करोड़ कप चाय एक दिन में पी जाते हैं। एक वर्ष में हम 800 किलोग्राम चाय पी जाते हैं । असल में पानी के बाद यह बेचारी चाय ही है जिसका सेवन सबसे ज़्यादा किया जाता है । और चाय मिलनसार भी बहुत है - समोसे के साथ, पकोड़ों के साथ, आलू के परांठे के साथ, कचौरी के साथ, ब्रेड के साथ, वड़ा-पाओ के साथ । आलू के परांठे के साथ आम का अचार हो और साथ में चाय न हो तो यह घनघोर अपमान माना जाता है - धोखे के बराबर है । कटिंग चाय और स्टेशन पर कुल्लहड वाली चाय नसीब वालों को मिलती है । अगर चाय का गिलास या कुल्लहड पकड़ते समय हाथ न जले तो चाय ठंडी है ।
फिर चाय में जितने मसाले डलते हैं शायद उतने तो सब्ज़ी में भी नहीं डलते । बड़े-बड़े विद्वान चाय बनाने की विधि बताते हैं और ऐसे ही कुछ विद्वान् अब 'Tea Consultant' बन गए हैं ।
परन्तु कभी कभी "डिप वाली चाय" पीने को मिलती है । यकीन मानो ऐसा लगता है जैसे "चाय के सैशे ने चाय के कप में आत्महत्या कर ली हो "। वो बात ही नहीं आती जो अंगीठी पर पक रही, कोयलों की आंच में धीरे धीरे धधक रही चाय में आती है । फिर उस पर मूसली से कूट कर इलायची, लौंग, अदरक, दाल-चीनी डाली जाती है, तब जाकर वो एक चाय बनती है ।
यकीन है अब आप चाय का कप खोज रहे होंगे । "ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले रे - हम रह गए अकेले - चाय के लिए।"- पवन कौशिक
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