करीब 40 साल पुरानी इस दुकान पर आज भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं । यहां की पाव भाजी का स्वाद चखने के लिए दूर दूर से लोग पहुंचते हैं। बात हो रही उदयपुर के टाउन हॉल क्षेत्र स्थित पंडित जी के पाव भाजी के स्वाद की। वैसे तो 'पंडित पाव भाजी' के नाम से मशहूर यह रेस्टोरेंट किसी परिचय की मोहताज नहीं लेकिन फिर भी आपको बता दे उदयपुर नगर निगम के टाउन हाल लिंक रोड गेट के सामने, टीवी इलेक्ट्रिक बाजार में स्थित है उनकी दुकान।
आपको बता दे पंडित पाव भाजी की शुरुआत टाउन हॉल के बाहर पाव भाजी की लारी लगा कर की गई थी। आज भी टाउन हाल के बाहर पंडित पाव भाजी से मिलते जुलते नाम वाली पाव भाजी की लारी मिल जाएगी। जबकि पंडित पाव भाजी रेस्टोरेंट में तब्दील हो चुकी है।
पंडित पाव भाजी के संचालक भंवर लाल साहू और श्याम सुन्दर साहू बताते है की उनके पिता जी ने पाव भाजी बनाना बॉम्बे में सीखा था। उसके बाद उन्होंने 1981 में पंडित पाव भाजी की लारी लगाकर यह काम शुरू किया था । जैसे जैसे लोगों को पाव भाजी का स्वाद पसंद आने लगा वैसे वैसे उनका काम और आगे बढ़ने लगा। बचपन से ही भंवर लाल और उनके भाई श्याम सुन्दर दोनों स्कूल से आने के बाद शाम को लारी पर जाते थे और अपने पिता जी के साथ मिलकर पाव भाजी बनाया करते थे। सन 2000 में उनके पिता जी ने लारी पर जाना कम कर दिया और वे मैनेजमेंट देखा करते थे । उसके बाद दोनों भाई लारी पर पाव भाजी बनाते थे।
उन्होंने 2014 में पंडित पाव भाजी रेस्टोरेंट की शुरूआत की इसके साथ इन्होने साउथ इंडियन और चाइनिस फ़ूड को भी अपने मेन्यु में ऐड किया। यहाँ सभी जनरेशन के लोग आते है। पंडित पाव भाजी के संचालक के बेटे रोनित ने बताया की पंडित पाव भाजी रेस्टोरेंट को आगे बढ़ाना चाहते है और 2024 तक एक नया रेस्टोरेंट भी खोलने वाले है।
श्याम सुन्दर बताते है की हम सभी साबुत मसाले घर पर ही पीसकर तैयार करते है। बाज़ार के रेडीमेड मसाले काम में नही लेते है, 40 सालो से हम घर के बने हुए मसालों को ही इस्तेमाल करते है हमे हर एक मसाले और उनकी बहुत अच्छी परख है। भाजी को मिश्रित सब्जियों की मदद से बनाया जाता है, जो इसे टेस्टी होने के साथ साथ सेहत के लिए फायदेमंद भी होता है।
पिछले 12 साल से इस ठेले पर आने वाली मीना ने बताया कि इतने सालों में ना तो यहां का स्वाद बदला है और ना ही क्वालिटी में गिरावट आई है । वह आज भी यहां अपने पूरे परिवार के साथ आती हैं। सलुम्बर के रहने वाले विनोद जैन ने बताया कि क्वालिटी के साथ ही इसकी कीमत भी किफायती है जो सभी लोग वहन कर सकते हैं। यहाँ 80 रुपए में यहां भरपेट स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं। टाउन हॉल लिंक रोड स्थित पंडित पाव भाजी रेस्टोरेंट सुबह 11 बज़े से रात को 11 बज़े तक और ठेला शाम को 5 बजे से रात 11 बजे तक खुलती है।
पाव-भाजी कैसे बनाई जाती है ये तो हममे से कई लोगों को पता होता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि पाव भाजी आई कहां से, इसकी खोज कैसे हुई और इसे पहली बार कैसे बनाया गया? चलिए पता लगाते हैं। …
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिकी सिविल वॉर ने पाव भाजी को जन्म दिया। दरअसल, 1861 में अमेरिकी सिविल वॉर या गृहयुद्ध की शुरुआत हुई, जिसमें अमेरिका के उत्तरी और दक्षिण संघीय राज्यों के बीच युद्ध छिड़ गया। अमेरिका का कपास उस वक्त दुनिया के कई देशों में बेचा जाता था लेकिन युद्ध के कारण अमेरिका का विश्वप्रसिद्ध कपास का व्यापार ठप हो गया। मांग बढ़ने लगी, लेकिन सप्लाई बिल्कुल बंद हो चुकी थी।
इस आपदा को अवसर में बदला उस समय के बॉम्बे कपास मिल के मालिक कावसजी नानाभाई डावर ने। उन्होंने कपास की बढ़ती मांग को देखते हुए दुनियाभर से आर्डर लेना शुरू कर दिए। अब ओवरटाइम करने वाले इन सभी भूखे मजदूरों को खाने के लिए कुछ सस्ता और जल्दी चाहिए था। इसकी वजह थी कि शुरू के कुछ महीनों में कपास मिल के मजदूरों को कम पैसे दिए जाते थे। ये सभी श्रमिक रात को भारी मात्रा में सड़क किनारे ठेला लगाने वाले स्ट्रीट फूड विक्रेताओं के पास पहुंच जाते थे, जो एक साथ इतने सारे लोगों को खाना खिलाने में थक जाया करते थे। इसी बीच इन स्ट्रीट फूड विक्रेताओं ने एक नई डिश खोज निकाली। उन्होंने दिनभर की बची हुई बासी सब्जियों में कुछ मसालों को मिलाकर भाजी तैयार की, जिसे सस्ते दामों पर मिल जाने वाले बेकरी के बचे हुए ब्रेड के साथ परोसा जाने लगा। ब्रेड को बड़े से तवे पर मक्खन लगाकर सेका जाता था। देखते ही देखते जुगाड़ से बनाया गया ये व्यंजन बॉम्बे मिल के मजदूरों का पसंदीदा फ़ूड बन गया।
इस घटना के कुछ सालों बाद पुर्तगालियों के साथ ही मुंबई में 'पाव' की एंट्री हुई। पश्चिमी देशों में खाए जाने वाले 'बन' (Bun) या डबल रोटी के 4 टुकड़े करके बनाया जाता था पाव। धीरे-धीरे पाव-भाजी महाराष्ट्र का पसंदीदा नाश्ता बन गई। कुछ सालों बाद लोगों ने भाजी में अलग-अलग तरह की दालों को मिलाना शुरू कर दिया। मसालों का मिश्रण बदला, पाव को सेकने का तरीका बदला लेकिन आज भी पाव-भाजी को हम उतने ही चाव से खाते हैं, जितने चाव से इसे 250 साल पहले बॉम्बे कॉटन मिल के मजदूरों ने खाया होगा।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal