हर प्रदेश हर शहर कि अपनी स्थानीय परंपरा होती है. फरसान और मिठाइयाँ इनमे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। उदयपुर कि भी अपनी मीठी परंपरा है। इस श्रंखला में आइये आपको उदयपुर कि पुश्तैनी मिठाइयों और फरसान के पुश्तैनी नामों से परिचित कराएँ.
शहर के घंटाघर स्थित मिठाइंयों की पुरानी दुकान में सबसे पहला नाम लाला मिष्ठान्न भंडार का आता है। यहाँ के गुलाब जामुन की मिठास से सारा शहर वाकिफ है। करीब 150 साल पुरानी यह मिठाई की दुकान अब तीसरी पीढ़ी चला रही है।
लाला मिष्ठान्न भंडार के मालिक धानमंडी निवासी किशनलाल जी ने बताया की उनके दादाजी के ज़माने से यह दुकान चल रही है। उनके दादाजी ने दूकान का नामकरण अपने गुरुजी के नाम पर किया था। दादाजी के बाद उनके पिताजी और अब वह अपने भाइयों के साथ मिलकर पुश्तैनी विरासत को संभाल रहे है। स्वयं उनको यह दुकान सँभालते हुए 60 वरस बीत गए है।
किशनलाल जी ने बताया की सभी मिठाइयां वह स्वयं बनाते है। कोई कारीगर नहीं रखा हुआ है। वह मौसम के हिसाब से मिठाईंया बनाते है, जैसे सर्दी के मौसम में मूंग की दाल के लड्डू, गाजर का हलवा और मूंग दाल का हलवा, तो बरसात के मौसम में रबड़ी और आटे के मालपुए, गुलाब जामुन तो बारहो महीने लोग पसंद करते है।
किशनलाल जी ने बताया की पहले ज़माने में लोग मोतीपाक (बड़ी बूंदी के लड्डू), घेवर, तारफिनी, जलेबी, बेसन चक्की ज़्यादा पसंद करते थे जबकि आजकल काजू कतरी, ड्राई फ्रूट बर्फी और दूध की बनी मिठाइयां ज़्यादा प्रचलन में है।
घंटाघर से आगे जगदीश चौक पर स्थित अरोडा स्वीट्स भी करीब 90 साल से स्थित है। पहले यह अरोड़ा मिष्ठान्न के नाम से थी। अरोड़ा स्वीट्स भी तीसरी पीढ़ी चला रही है।
अरोड़ा स्वीट्स के मालिक विष्णु खत्री ने बताया की उनके पिताजी रोशनलाल जी और उनसे पहले उनके दादाजी जगन्नाथ जी अरोड़ा (खत्री) ने यह दुकान शुरू की थी। पारम्परिक मिठाइयों के साथ व्रत (उपवास) के दौरान सेवन की जाने वाली सेगारी नमकीन और सगरी पकौड़ो के लिए मशहूर इस दुकान में एकदशी और पूर्णिमा को भीड़ लगती है।
विष्णु खत्री ने बताया की सेगारी पकौड़े राजगिरि के आटे और आलू के मिश्रण से विशेष प्रकार से तैयार किये जाते है।
उदयपुर में मावे के पाशे खाने हो तो एक छोटी सी परन्तु बरसों पुरानी हरी ओम स्वीट्स का मुकाबला नहीं है। घंटाघर से जगदीश मंदिर मार्ग पर यह छोटी सी पुरानी मिठाइयों की दुकान, हरी ओम स्वीट्स भी लगभग 70 साल पुरानी दुकान है। दुकान के मालिक सत्यनारायण जी खत्री ने बताया की 1950 में इस दुकान की स्थापना उनके दादाजी ने की थी। पिछले 70 साल से पहले उनके दादा, फिर उनके पिता और अब वे खुद इस पकवान का वही बरसों पुराना स्वाद कायम किये हुए हैं।
इस श्रंखला कि अगली कड़ी में आपको और पारंपरिक मिठाई वालों और फरसान वालों से रूबरू कराएँगे...
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