जन्म के समय रोया नहीं था, अब आंसू नहीं सूखते

जन्म के समय रोया नहीं था, अब आंसू नहीं सूखते

सेरेबल पॉलिसी से ग्रस्त 13 साल के धर्मा को मिला ‘नारायण’ का सहारा

 
जन्म के समय रोया नहीं था, अब आंसू नहीं सूखते
नारायण सेवा संस्थान का मिला सहारा

उदयपुर, 9 फरवरी 2021। आम बच्चों की तरह जब धर्मा का जन्म हुआ था, तब उसके परिवार में भी खुशियों की लहर दौड़ पड़ी थी। लेकिन खुशियों की उस घड़ी के साथ ही शुरू हो गया था दर्द, तकलीफ और ठोकरों का अंतहीन सिलसिला। जन्म होते ही आम तौर पर बच्चे किलकारी मारकर रोते हैं, यदि नहीं रोते तो डॉक्टर-नर्स जबरदस्ती उन्हें रूलाने की कोशिश करते हैं, ताकि बच्चे की सेहत का अंदाजा लगाया जा सके। 

धर्मा का जन्म किसी हॉस्पिटल में नहीं हुआ और न ही उसके अनपढ़ माता-पिता को इतनी समझ थी, और जब पेट की भूख मिटाना ही जीवन की सबसे बड़ी चुनौती हो तब हंसने-रोने जैसी मानवीय संवेदनाओं को महसूस करने की फुर्सत भी नहीं मिलती। धर्मा अपने तीन भाई-बहन में सबसे बड़ा है। वो जन्म के समय तो नहीं रोया, लेकिन आज उसके और उसके परिवार के सदस्यों की आंखों से आंसू नहीं सूखते।

माता-पिता मेहनत-मजदूरी करते हैं और जहां मजदूरी मिलती है वहीं उनका आशियाना बस जाता है। सड़क किनारे, किसी खाली प्लॉट पर ठंड से ठिठुरते, बारिश में भीगते और गर्मी में झुलसते हुए धर्मा धीरे-धीरे बड़ा हुआ। धर्मा के माता-पिता साटिया जनजाति से हैं, जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता। सात साल पहले ऐसे ही मजदूरी की तलाश में भीलवाड़ा से चित्तौड़गढ आते समय वो बैलगाड़ी से गिर गया। उस हादसे में धर्मा के चेहरे पर गंभीर चोट आई। 

धर्मा की मां मायाबाई कहती हैं, धर्मा जब सात साल का था, तब बैलगाड़ी से गिर गया था। उसके बाद से उसकी आंखों से दिखना बंद हो गया। धीरे-धीरे हाथ-पैरों ने भी काम करना बंद कर दिया। जयपुर, जोधपुर तक डॉक्टरों को दिखा दिया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।

कोविड के समय प्रशासन का मिला साथ

धर्मा की माता माया बाई कहती हैं, कोरोना बीमारी के समय हम लोग राणा प्रताप रेलवे स्टेशन के सामने फुटपाथ पर रह रहे थे। मजदूरी मिलना बंद हो गई, तो प्रशासन के द्वारा राशन सामग्री का वितरण किया गया, जिसके सहारे हमने हमारा समय निकाला। अब वापस मजदूरी मिलना शुरू हो गई है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि धर्मा अपने आप चल-फिर नहीं सकता। उसे आंखों से दिखता नहीं। ऐसे में उसकी देखभाल के लिए मुझे घर पर रहना पड़ता है। यदि धर्मा ठीक हो जाए तो मैं भी मजदूरी पर जा पाउंगी और दो पैसे कमाने लगूंगी।

नारायण सेवा संस्थान का मिला सहारा

आजीविका के लिए परिवार के साथ यहां पहुंचे धर्मा को कुछ जागरूक लोगों की पहल पर  नारायण सेवा संस्थान पहुंचाया गया जहां पर उसका पूरी संवेदनशीलता के साथ इलाज के प्रयास किए जा रहे हैं। 

नारायण सेवा संस्थान की निदेशक वंदना अग्रवाल ने बताया कि प्रारंभिक चिकित्सकीय परीक्षण में सामने आया है कि धर्मा को सेरेबल पॉलसी की बीमारी है। इस बीमारी में दिमागी अक्षमता के कारण चलने-फिरने और अनैच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण समाप्त हो जाता है। संस्थान द्वारा धर्मा को व्हीलचेयर, कपड़े, बिस्किट एवं राशन देने के साथ उसका सीपी टेस्ट करवाया है। इस बालक की दो वर्ष पूर्व बीमारी के दौरान आवाज और आंखों की रोशनी चली गई थी। अब इसके पांव भी नाकाम हो गए है। डॉक्टर्स टीम आवश्यक चिकित्सा के लिए प्रयासरत है।

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