एमसीए की साईट धीरे चलने से 21 लाख निदेशक अपना केवायसी फार्म भरने से वंचित, 5 हजार की देनी होगी फीस


एमसीए की साईट धीरे चलने से 21 लाख निदेशक अपना केवायसी फार्म भरने से वंचित, 5 हजार की देनी होगी फीस

शनिवार को एमसीए की साइट दिन भर रेंग रेंग कर चलने से सीए एवं कंपनियों के निदेशक रहे परेशान रहे और जिसका खमियाजा उन्हें अब 5-5 हजार रुपये का फीस

 

एमसीए की साईट धीरे चलने से 21 लाख निदेशक अपना केवायसी फार्म भरने से वंचित, 5 हजार की देनी होगी फीस

शनिवार को एमसीए की साइट दिन भर रेंग रेंग कर चलने से सीए एवं कंपनियों के निदेशक रहे परेशान रहे और जिसका खमियाजा उन्हें अब 5-5 हजार रुपये का फीस भर कर चुकाना होगा। शनिवार को ई-फार्म डीआईआर व 3 केवायसी फार्म भरने की आखिरी तारिख थी और एमसीए की साईट पिछले 2 दिनों से रेंग-रेंग कर चली जिस कारण देश में करीब 21 लाख निदेशक अपना केवायसी फार्म नहीं भर पायें और अब उन्हें आज से सभी को 5000 रूपयें की फीस देनी होगी। कल एमसीए के व्हाट्सएप्प पर एक फेक मैसेज ने परेशानी और बढ़ा दी थी।

सीए देवेंद्र कुमार सोमानी ने मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स से साइट में दिन भर आ रही दिक्कत को देखते हुए ई-फार्म डीआईआर व 3 केवायसी फार्म की फाइलिंग डेट बिना किसी फीस के कम से कम एक सप्ताह बढ़ाये जाने की मांग की है, साथ ही सोमानी ने सभी रिटन्र्स पर देय लेट फीस की राशि की पुनः समीक्षा करने का अनुरोध किया।

मिनिस्ट्री ऑफ़ कम्पनी अफेयर्स की वेबसाईट हुई ढेर – हाल ही में सरकार ने सभी कम्पनीज़ के डायरेक्टर्स को अपने केवायसी फार्म अपडेट करने की नयी प्रक्रिया प्रारम्भ की थी। जिसके अंतर्गत वे सभी लोग शामिल थे जिन्होंने 31 मार्च 2014 से पहले डायरेक्टोर आयडेंटिफ़िकेशन नम्बर लिए हुए हैं और उन्हें 31 अक्टूबर 2014 तक डीआइआर 3 फ़ॉर्म ऑनलाइन प्रक्रिया के अन्तर्गत जमा करने थे और यह प्रक्रिया उन्हें प्रति वर्ष करनी है। इस वर्ष इसकी तारीख़ बढ़ा कर 15 सितम्बर 2018 कर दी थी लेकिन आख़री तारीख़ को एमसीए की वेबसाईट ने काम करना बंद कर दिया था जिससे कई लोग डायरेक्टर उनके फ़ॉर्म नहीं भर पाएं। आख़री तारीख़ के बाद इस फ़ॉर्म को भरने के लिए 5 हजार की लेट फीस भरनी होगी अन्यथा उनका डीन नम्बर इनैक्टिव हो जाएगा।

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यदि सरकार इस तरह की हेवी पेनल्टी या लेट फीस लेना चाहती है तो कम से कम अपनी वेबसाईट को तो सही रखना चाहिये या उसे अब अन्तिम तारीख़ बढ़ानी चाहिये। सरकार के इस रवैये से तो ये लगता है कि वो लेट फीस के नाम से मोटी रकम कमाना चाहती है।

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