तीन माह बाद कोमा से बाहर आया 23 वर्षीय युवक

तीन माह बाद कोमा से बाहर आया 23 वर्षीय युवक

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के न्यूरो विशेषज्ञ डाॅ विनोद मेहता ने अत्यधिक गंभीर स्थिति वाली बीमारी गुलियन बेरी सिंड्रोम से पीड़ित 23 वर्षीय युवक को को नया जीवन प्रदान किया। डाॅ मेहता के साथ डाॅ शुभकरण शर्मा, डाॅ जावेद पालीवाला व समस्त आईसीयू नर्सिंग स्टाफ का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

 

तीन माह बाद कोमा से बाहर आया 23 वर्षीय युवक

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के न्यूरो विशेषज्ञ डाॅ विनोद मेहता ने अत्यधिक गंभीर स्थिति वाली बीमारी गुलियन बेरी सिंड्रोम से पीड़ित 23 वर्षीय युवक को को नया जीवन प्रदान किया। डाॅ मेहता के साथ डाॅ शुभकरण शर्मा, डाॅ जावेद पालीवाला व समस्त आईसीयू नर्सिंग स्टाफ का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

डाॅ विनोद मेहता ने बताया कि उपरोक्त गंभीर स्थिति वाली बीमारी के रोगी विशाल को आईसीयू में भर्ती कर ग्लोब्यूलिन इंजेक्शन दिए गए। करीब 90 दिनों तक विशाल को वेंटीलेटर पर रखा गया था एवं 100वें दिन वार्ड में शिफ्ट किया गया। ऐसे मरीजों को अकसर न्यूमोनिया, शरीर के विभिन्न हिस्सों में घाव हो जाना, मूत्र संक्रमण एवं और भी कई तरह के संक्रमण होने का खतरा रहता है। इन अन्य बीमारियों से बचाव के लिए आईसीयू के स्टाफ ने समर्पित देखभाल की जिससे विशाल अब स्वस्थ है।

नीमच निवासी दिलीप यादव बताते है कि, ‘‘मेरा पुत्र विशाल यादव (उम्र 23 वर्ष) करीब तीन महीने तक गीतांजली हाॅस्पिटल के आईसीयू में कोमा में रहने के बाद पांच दिन पूर्व ही वेंटीलेटर से बाहर आया है। अब वह अपने हाथ-पैर भी हिला पा रहा है और बोल भी पा रहा है। मैं व्यवसायिक रुप से टेलर हूँ। कुछ महीने पूर्व मेरे बच्चे को बुखार आया एवं हाथ-पैरों में दर्द महसूस हुआ। जिले के ही निजी हाॅस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती करवाया। परंतु शाम होते-होते बच्चे के मांसपेशियों में कमजोरी होने लगी, हाथ-पैर संवेदनहीन हो गए तथा आवाज़ भी बंद हो गई। डाॅक्टर ने गंभीर बीमारी गुलियन बेरी सिंड्रोम से पीड़ित होना बताया। ऐसे में बेहतर इलाज के लिए उदयपुर के गीतांजली हाॅस्पिटल रेफर किया। आपातकालीन स्थिति में विशाल को आईसीयू में न्यूरोलोजिस्ट डाॅ विनोद मेहता के नेतृत्व में भर्ती किया गया। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण गीतांजली हाॅस्पिटल ने काफी रियायती दरों पर मेरे बच्चे का इलाज किया एवं दवाइयों व प्रोसीजर में भी कई बार छूट प्रदान की। मेरे बच्चे की जब तबीयत बिगड़ी तब तक आचार संहिता लग चुकी थी। इससे स्वास्थ्य विभाग से सरकारी मदद नहीं मिल सकी। मैं अपने बच्चे के इलाज से बहुत संतुष्ट हूँ और सभी डाॅक्टर व स्टाफ का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ। डाॅक्टर का कहना है कि अब मेरा बच्चा 70 फीसदी से भी अधिक रिकवर हो चुका है और उम्मीद है कि आगे भी जल्दी अच्छा हो जाएगा।’’

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क्या होता है गुलियन बेरी सिंड्रोम?

डाॅ मेहता ने बताया कि गुलियन बेरी सिंड्रोम एक तरह का विकार होता है। अत्यधिक गंभीर स्थिति वाली यह बीमारी एक लाख में से किसी चार या पाँच व्यक्ति में ही पायी जाती है। पहले नसों में सिहरन फिर दर्द होता है। मांसपेशियां लगातार कमजोर होती है। लकवा हो सकता है या कोमा में जा सकता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से कम होती है। शरीर के संकेत एक से दूसरे हिस्से तक नहीं पहुंचते। साँस लेने में दिक्कत होने पर वेंटीलेटर की जरुरत पड़ती है व व्यक्ति कोमा में जा सकता है। ऐसी गंभीर स्थिति वाले मरीजों को बचाना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसे गंभीर मरीज चलने फिरने में असमर्थ हो जाते है एवं साँस लेने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में गामा ग्लोब्यूलिन के इंजेक्शन अथवा प्लाज्माफेरेसीस (खून की सफाई) के द्वारा इलाज किया जाता है। अत्यधिक गंभीर रोगियों को लम्बे समय तक वेंटीलेटर पर रखना पड़ता है।

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