उदयपुर 4 अगस्त 2022। अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में जैविक खेती पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत आयोजित एक दिवसीय अन्र्तराज्य स्तरीय कार्यशाला प्रशिक्षण ‘‘जैविक खेती के तहत अधिक उत्पादकता एवं लाभ हेतु तकनीकियाँ’’ गुरूवार, 4 अगस्त, 2022 को अनुसंधान निदेशालय में आयोजित किया गया।
इस कार्यशालय के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डाॅ. एस.के. शर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि जैविक खेती दृृष्टि से राजस्थान का विशेष महत्व है। राजस्थान का जैविक क्षेत्रफल (2.78 मिलियन हेक्टेयर) देश में दूसरा स्थान है। प्रथम स्थान मध्यप्रदेश का है। भारत में 36.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल प्रमाणित जैविक कृषि में है जबकि जैविक उत्पादन में राजस्थान का पाँचवा स्थान है।
राजस्थान जैविक कृषि पाॅलिसी 2017 में लागू हुई। साथ ही उन्होनें कहा कि मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति आज जागरूकता बढ़ने से जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। जैविक खेती के तहत क्षेत्रफल बढ़ाकर जैविक उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए किसानों को जागरूक होना आवश्यक है। साथ ही उन्होनें बताया कि वर्तमान परिदृश्य में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, फलों, सब्जियाँ एवं बीजीय मसालों में 60 से अधिक कीटनाशी अवशेषों का पाया जाना, पर्यावरण प्रदूषण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होना एक चिंता का विषय है। अतः जैविक खेती मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। साथ ही उन्होनें सभी किसानों को आह्वान किया कि हर मेढ़ पर पेड़ की भावना से अधिक से अधिक खेत के चारो ओर वृृक्षारोपण करना चाहिए। तथा इस उपलक्ष्य पर सभी किसानों को दो-दो नीम्बू के पौधों का वितरण किया गया। असम के प्रतिभागियों ने कृषि बीज प्रसंस्करण इकाई और मशरूम उत्पादन इकाई का भी अवलोकन किया l
डाॅ. रनजीत मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर, कृषि विभाग, गुवाहाटी, आसाम ने बताया कि आसाम राज्य में खासकर अदरक, हल्दी, संतरा, कालीमिर्च एवं अनानास की खेती करने वाले किसान अधिक मात्रा में रासायनिक अर्वरकों का प्रयोग कर रहे है। साथ ही उन्होनें कहा कि मिट्टी में जैविक कार्बन की बढ़ती कमी पर चिंता प्रकट की। उन्होनें बताया कि जैविक कृषि में सफलता के लिए जैविक तकनीकें, प्रमाणीकरण तथा जैविक बाजार की जानकारी की आवश्यकता होती है।
डाॅ. महेश वर्मा, निदेशक, रासोका, जयपुर ने बताया कि प्रगतिशील किसानों की रूचि तथा बाजार में जैविक उत्पादन की बढ़ती मांग की जानकारी दी तथा साथ ही उन्होनें बताया कि जैविक खेती में व्यावसायिक स्तर पर आदानों का उत्पादन किया जा रहा है। जिनमें कीटनाशक रसायनों व उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण व भूमि की उर्वरा की शक्ति का ह्यस हो रहा है, साथ ही फल, सब्जी व अनाज की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है इसलिए जैविक खेती वर्तमान समय की आवश्यकता है।
इस कार्यक्रम में डाॅ. अरविनद वर्मा, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक, एआरएस, उदयपुर, डाॅ. अमित त्रिवेदी, सह अनुसंधान निदेशक, उदयपुर एवं 15 बीज अधिकारी, कृषि विभाग, गुवाहाटी, आसाम एवं नयागांव, बिरोठी, झाड़ोल जिला उदयपुर के 30 किसानों ने भाग लिया। कार्यक्रम में डाॅ. रोशन चैधरी, प्रशिक्षण सह-प्रभारी ने कार्यक्रम का संचालन एवं अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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