युद्ध को खेल की तरह ले, खेल में युद्ध ना हो - संतश्री लोकेशानंद महाराज


युद्ध को खेल की तरह ले, खेल में युद्ध ना हो - संतश्री लोकेशानंद महाराज

भुवाणा स्थित आईटीपी भवन में चल रही दिव्य श्रीराम कथा का अंतिम दिन

 
ram katha

उदयपुर। भुवाणा स्थित आईटीपी भवन में चल रही दिव्य श्रीराम कथा के अंतिम दिन अहंकारी रावण और उसकी असुर सेना का विनाश कर प्रभु श्रीराम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या नगरी लौटे हैं,अयोध्या को फूलो से, दीपमालाओं से सजाया गया है। चारों और खुशियां ही खुशियां हैं। प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या पहुंचे तो मंगल गीतों से उनका स्वागत सत्कार हुआ। माताओ ने अपने बेटों को देखा तो 14 साल का प्रेम आंखों से छलक उठा। 

इसके साथ ही भरत ओर श्रीराम के मिलन का भावुक कर देने वाला वृतांत भी जीवंत हुआ जिसे देख कर भक्तो की आंखे सजल हो उठी। प्रभु के राज्याभिषेक में ब्रम्हा, विष्णु, महेश, महादेव, इंद्र सहित देवी-देवता राम दरबार मे पहुंचे, राम भक्तो ने राज्याभिषेक ओर रामदरबार का बेहद  सुंदर चित्रण अपने नाट्य मंचन से प्रस्तुत किया तो प्रभु भक्तो ने जय श्रीराम के जयकारों से कथा पांडाल को गुंजायमान कर दिया। 

इस सम्पूर्ण नाट्य मंचन में पांडाल में बैठे भक्त श्रीराम की विजय पताका को लहराते हुए इस दृश्य को चित्रित कर रहे थे कि मानो कथा पांडाल अयोध्या नगरी बन गया हो। यह आलौकिक दृश्य भुवाणा स्थित आईटीपी भवन में चल रही दिव्य श्रीराम कथा के अंतिम दिन जीवंत हुआ।

रावण वध से जुड़े प्रसंगों का हुआ वर्णन

कथा के अंतिम दिन सन्त लोकेशानंद महाराज ने वानर सेना द्वारा लंका कूच, राम - रावण के बीच हुए भीषण युद्ध प्रसंग में कुम्भकर्ण, मेघनाद वध, लक्ष्मण का मूर्छित होना, हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाना, धर्म रथ पर आरूढ़ राम के 1 तीर से निकले 31 तीरों से रावण की 20 भुजाएं, 10 सर कटना ओर 1 तीर से नाभि से अमृत सोख लेने पर वध , माँ सीता की अग्नि परीक्षा, राम - लक्ष्मण सीता का अयोध्या लौटना, राज्याभिषेक सहित कथा के कई वृतांतों का वर्णन किया।

युद्ध खेल की तरह हो खेल में युद्ध ना हो

राम - रावण युद्ध का वर्णन करते हुए व्यास पीठ से संतश्री ने कहा कि जीवन मे युद्ध को खेल की तरह से ले , खेल में युद्ध ना करे। प्रभु श्रीराम ने लीला की अतः उन्होंने रावण से युद्ध किया लेकिन उसको खेल की तरह लड़ा, प्रभु श्रीराम चाहते तो सिर्फ संकल्प से रावण का वध कर सकते थे। सन्त श्री ने यह भी कहा कि कुम्भकर्ण, मेघनाद का वध हो गया रावण अंदर से डर गया पर बाहर से वो सकारात्मक ही रहा, अंतिम क्षण तक वो लड़ता रहा सिर्फ इसलिए क्योंकि उसको प्रभु श्रीराम के हाथों मोक्ष की प्राप्ति चाहिए थी। यह सब नारायण की लीला है। ईश्वर की लीला है।

आयोजको संग अतिथियों ने लिया सन्त श्री का आशीर्वाद

अंतिम दिन की कथा में उदयपुर सांसद अर्जुनलाल मीणा, परेश भाई, नितिन भाई, लक्ष्मीनारायण सहित कथा आयोजक श्रीनारायण भक्ति पंथ के बालूसिंह कानावत, कुमावत चोरमा परिवार से जितेश कुमावत, योगेश कुमावत, दुर्गेश कुमावत ओर परिवार सदस्यों ने आरती कर सन्त श्री से आशीर्वाद लिया।

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