कोरोना से राहत के बाद पहली बार उदयपुर शहर में पुराना व ऐतिहासिक आंवली एकादशी के मौके पर सोमवार को गंगू कुंड पर आंवला एकादशी का मेला भरा। होली से 4 दिन पहले खास मौके पर मेला भरता हैं। खासियत यह भी है कि गर्मी के सीजन के चलते इस मेले में ठंडे पानी के लिए काम आने वाले मिट्टी के बर्तनों की दुकानें भी लगी है। जिसके लिए छोटे-छोटे व्यापारी दुकान लगाकर व्यापार करते नजर आए। इसके अलावा मेले में बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले आदि भी लगाए गए हैं।
मेले का आयोजन गंगू कुंड विकास समिति के अध्यक्ष जगत नागदा, सचिव महेश भावसार समेत कई लोगों की ओर से किया गया है । समिति के कोषाध्यक्ष शिव शंकर नागदा ने बताया कि करीब 100 वर्षो से भी अधिक पुराने इस मेले में लोग आकर अपनी जरूरत की सारी चीजें खरीद कर ले जाया करते हैं। इसी परंपरा के चलते इस मेले का खासा महत्व हैं।
आंवला और श्री हरी विष्णु का भी किया गया पूजन
इस मौके पर आमलकी एकादशी भी मनाई जाएगी। आमलकी एकादशी को आंवला एकादशी या आमली ग्यारस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दौरान पूरे दिन आमलकी एकादशी व्रत में आंवले के पेड़ की पूजा करने के अलावा आंवले का सेवन भी किया जाता है। होली से पहले इस एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार आमलकी एकादशी पर सर्वार्थसिद्धि और पुष्य नक्षत्र का योग भी रहेगा। इस वजह से इसका महत्व बढ़ाई जाती है।
पंडित जगदीश दिवाकर ने बताया कि आमलकी एकादशी के मौके पर श्री हरि विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु का प्रिय वृक्ष माना जाता है। इस वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता है। जिस वजह से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन आंवले का दान करने से कहा जाता है कि समस्त यज्ञों के बराबर फल मिलता है। आमलकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
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