GMCH की नवजात गहन चिकित्सा इकाई में सरल विधि से हुआ नवजात का सफल इलाज


GMCH की नवजात गहन चिकित्सा इकाई में सरल विधि से हुआ नवजात का सफल इलाज

गीतांजली हॉस्पिटल पिछले 15 वर्षों से सतत रूप से हर प्रकार की उत्कृष्ट एवं विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध करा रहा है एवं जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं देता आया है 
 
GMCH

गीतांजली हॉस्पिटल की थर्ड स्टेज नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एन.आई.सी.यू) में श्वास और हृदय गति मॉनिटर, फ्लूइड इनपुट और आउटपुट मशीन, खून की जांचें, इकोकार्डियोग्राम, अल्ट्रासाउंड स्कैन, आँखों का परिक्षण की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहां निरंतर रूप से नवजातों की गंभीर बीमारियों के सफल इलाज किए जा रहे हैं।

अभी हाल ही में नवजात शिशु जिसका वजन 3.3 किलोग्राम था, शरीर में ऑक्सीजन कम होने के कारण गीतांजली अस्पताल के नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एन. आ. सी. यू) में गंभीर स्थिति (वेंटिलेटर) में डॉ. सुशील गुप्ता के नेतृत्व में भर्ती किया गया। नवजात शिशु की गहन जांच करने पर पता लगा की बच्चे को दिल की गंभीर बीमारी (सायनोटिक कंजेनिटल हार्ट डिजीज) है। 

कार्डियोलॉजिस्ट से सलाह से उचित मेडिकल उपचार दिया गया जिससे बच्चे को ऑक्सीजन की मात्रा में थोड़ा सुधार हुआ परंतु फिर भी शरीर में आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा कम आ रही थी। तत्पश्चात नवजात के श्वसन प्रक्रिया में सुधार न होने पर फिर एक्सरे करवाया गया जिसमे उसका दायां फेफड़ा पिचका हुआ था। इसके लिए शिशु का नेबुलाइजेशन एवं फीजि़योथेरेपी की गई परंतु उससे भी नवजात को आराम नहीं आया। इसके पश्चात् शिशु का सी टी स्कैन किया जिससे पता लगा की नवजात की दांए श्वसन नली में रुकावट (थिक म्यूकस प्लग) है। 

ई. एन. टी विभाग से संपर्क करने पर ब्रोंकोस्कोपी की सलाह दी गई ताकि इस प्लग को हटाया जा सके। किंतु 4 दिन के नवजात के लिए ब्रोंकोस्कोपी करने में दिक्कत आ रही थी l जिसके लिए डॉ सुशील गुप्ता ने गीतांजली हॉस्पिटल के बाल शिशु रोग के विभागाध्यक्ष डॉ देवेंद्र सरीन से भी ब्रोंकोस्कोपी के लिए विचार विमर्श किया और इस बात पर सहमति हुई कि प्लग को हटा कर ही बच्चे की स्वस्थ में सुधार होने की संभावना है। 

नवजात की स्थिति गंभीर थी अतः डॉ सुशील ने नवजात की गंभीर स्थिति को देखते हुए और परिजन से परामर्श करने के बाद बिना ब्रोंकोस्कोपी के ही प्लग हटाने का निर्णय लिया। उन्होंने बिना ब्रोंकोस्कोप के ही ध्यान पूर्वक तरीके से दाएं फेफड़े में ई.टी ट्यूब को डालकर अत्यंत सावधानी पूर्वक धीरे धीरे उस प्लग को हटाते हुए और लगातार सक्शन करते हुए प्लग को बाहर निकल दिया। इससे बच्चे की ऑक्सीजन मात्रा में सुधार हुआ। डॉ देवेंद्र सरीन ने डॉ सुशील द्वारा साहस पूर्वक किए गए इस प्रक्रिया की प्रशंसा की और बताया की ऐसी विधि नवजात शिशु के लिए प्राण रक्षक सिद्ध हो सकती हैं। 

दोबारा फेफड़ों का एक्सरे करवाया जिसमे जो दायां फेफड़ा पहले पिचका हुआ था उसमे सुधार दिखा और फेफड़ा पूरी तरह से सामान्य हो गया। डॉ सुशील गुप्ता ने बताया कि इंटुबेशन में विशिष्ट रूप से प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा सावधानी पूर्वक इस विधि को करने से म्यूकस प्लग को बिना ब्रोंकोस्कोप के श्वास नली द्वारा भी निकलने का प्रयास किया जा सकता है। डॉ देवेंद्र सरीन ने बताया कि डॉ सुशील गुप्ता और उनकी टीम के अथक प्रयास की वजह से बच्चा दिल की सर्जरी के लिए फिट हो पाया और अभी उसका सैचुरेशन 82 से 84 प्रतिशत बिना ऑक्सीजन के भी रह रहा था जो की अपेक्षित है। 

गीतांजली हॉस्पिटल के सीईओ श्री प्रतीम तंबोली ने अल्प समय में नर्सरी के नवजात शिशुओं की सेवा एवं देखभाल को विभाग एवं गीतांजली हॉस्पिटल की महान उपलब्धि बताया। उन्होंने ये भी कहा की कि आपसी सामंजस्य से पेडियाट्रिक और न्योनेटल विभाग सर्वोत्तम कार्य करने में सक्षम हैं।

गीतांजली हॉस्पिटल पिछले 15 वर्षों से सतत रूप से हर प्रकार की उत्कृष्ट एवं विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध करा रहा है एवं जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं देता आया है |

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal