सफदर हाशमी को समर्पित की नाट्य प्रस्तुति 'दो कलाकार'

सफदर हाशमी को समर्पित की नाट्य प्रस्तुति 'दो कलाकार'

नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एण्ड परर्फाेमिंग आर्ट्स’ द्वारा आयोजित 8 दिवसीय शीतकालीन नाट्य कार्यशाला का समापन

 
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उदयपुर। उदयपुर के नाट्य संस्थान ‘नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एण्ड परर्फाेमिंग आर्ट्स’ द्वारा आयोजित 8 दिवसीय शीतकालीन नाट्य कार्यशाला का समापन कल रविवार को किया गया। 

इस कार्यशाला में उच्चारण, शारीरिक अभिनय, संवाद अदायगी, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और कल्पनाओं के विकास पर कार्य किया गया।

कार्यशाला के समापन के अवसर पर भगवती चरण वर्मा द्वारा लिखित नाटक ‘दो कलाकार’ का मंचन किया गया। इस नाटक को मात्र 8 दिवस में प्रतिभागीयों के द्वारा तैयार किया गया।

शुरूआत में अगस्त्य हार्दिक नागदा ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से अलख जगाने वाले नाटककार और रंग निर्देशक सफदर हाशमी के शहादत दिवस के उपलक्ष्य में सफदर हाशमी का रंगमंच पर योगदान के बारे में बताया और मंचन से पहले दो मिनट का मोन रखकर कार्यक्रम का आगाज किया।

नाटक दो कलाकार एक हास्यप्रद नाटक है जो कलाकारों के जीवन की विडंबना का वर्णन करता है और कलाकारों के संघ-ुनवजर्या को दिखाने का प्रयास करता है। नाटक की मुहावरेदार भाषा और कलाकारों की संवाद शैली दर्शको को गुदगुदाने में सफल रही। नाटककार ने उन रचनात्मक लोगों के दुखद भाग्य को खूबसूरती से चित्रित किया है, जो अपनी प्रतिभा के दम पर दुनिया की हकीकत को समझे बिना, आकाश छूना चाहते हैं।

कथासार

नाटक में चूडामणि और मार्तड दो दोस्त हैं। दोनों में एक कवि और दूसरा चित्रकार हैं, जो अपनी रचनात्मकता के सहारे इस दुनिया पर राज करने की चाह रखते है। कवि ने हिंदी फिल्म में गीतकार बनने का सपना देखा था। चित्रकार ने खुद के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया था। नियति उन्हें ऐसी स्थिति में ले जाती है, जहां दोनों को अपने सृजनात्मक ऊर्जा का उपयोग मालिक मकान को किराया न दे पाने के कारण झूठ बोलने पर लगाना पड़ता है। केवल जीवित रहने के लिए दोनो अपनी रचनात्मकता को बर्बाद करते हुए दिखाई देते है।

नाटक की शुरुआत एक ऐसी स्थिति में होती है, जहां कवि और चित्रकार दोनों ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है। तभी मकान मालिक उनसे किराया लेने के लिए आ जाता है। दोनों उस वक्त अपने रचनात्मक दिमाग का आश्रय लेते हैं और मकान मालिक को प्रभावित करने में लग जाते है। दोनों उसे इस हद तक सपने दिखाते हैं कि यह किराये का कमरा एक दिन उनके नाम से जाना जायेगा और एक बडे संग्रहालय के रूप में सहेजा जायेगा। मकान मालिक उनकी कोई नहीं सुनता और उनका सामान उठा कर घर के बाहर फेंक देता है। कवि और चित्रकार दोनों को इस समय यह अहसास होता है कि हमारी पीठ पर हजार साल की सभ्यता होने के बावजूद यह दुनिया रचनात्मक लोगों के लिए नहीं है।

रेखा सिसोदिया द्वारा निर्देशित नाटक में कलाकारों की भुमिका में जैनम जैन, साह्नविका मेहता, कुशाग्र राजन भाटिया, मयुर चावला और पियुष कुमावत ने अभिनय किया। मंच पार्श्व में मंच संचालन उर्वशी कंवरानी, संगीत संयोजन व संचालन महावीर शर्मा, प्रकाश संयोजन एवं संचालन यश शाकद्विपिय और महावीर शर्मा, मंच निमार्ण व व्यवस्था में हर्ष दुबे, मोहम्मद रिजवान मंसुरी और अगस्त्य हार्दिक नागदा का रहा।

कार्यक्रम संयोजक अमित श्रीमाली ने बताया कि इस अवसर पर मोहम्मद रिज़वान मंसुरी ने सभी प्रतिभागीयों को प्रमाणपत्र प्रदान किये।

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