GMCH के न्यूरोलॉजिस्ट एवं एपिलेप्टोलॉजिस्ट डॉ अनीस ज़ुक्करवाला से जाने मिर्गी के बारे में

GMCH के न्यूरोलॉजिस्ट एवं एपिलेप्टोलॉजिस्ट डॉ अनीस ज़ुक्करवाला से जाने मिर्गी के बारे में 

लगभग 80% मिर्गी के रोगी दवाइयों या ऑपरेशन से ठीक हो सकते हैं या रोगी की बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है।
 
GMCH के न्यूरोलॉजिस्ट एवं एपिलेप्टोलॉजिस्ट डॉ अनीस ज़ुक्करवाला से जाने मिर्गी के बारे में
मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। इस बीमारी में बिजली की अनचाही तरंगे दिमाग में बनती हैं जिस कारण शरीर में हलचल होती है। ये तरंगे मस्तिष्क की कोशिकाओं के समूह में बन सकती है या फिर दिमाग के एक हिस्से में बन सकती है या यही तरंगे दिमाग के बहुत सारे हिस्सों में एक साथ भी उत्पन्न हो सकती है जिससे अलग- अलग प्रकार के दौरे पड़ते हैं।

मिर्गी क्या होती है? मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। इस बीमारी में बिजली की अनचाही तरंगे दिमाग में बनती हैं जिस कारण शरीर में हलचल होती है। ये तरंगे मस्तिष्क की कोशिकाओं के समूह में बन सकती है या फिर दिमाग के एक हिस्से में बन सकती है या यही तरंगे दिमाग के बहुत सारे हिस्सों में एक साथ भी उत्पन्न हो सकती है जिससे अलग- अलग प्रकार के दौरे पड़ते हैं। 

मिर्गी आने पर क्या संकेत या लक्षण दिखाई देते हैं?

मिर्गी के दौरे दो प्रकार के होते हैं :

  1. बड़े दौरे- इसमें रोगी बेहोश हो जाते हैं, गिर जाते हैं, आवाज़ निकलती है, हाथ पाँव में ऐठन हो जाती है, शरीर में झटके आने लगते हैं, साँसे तेज़ हो जाती हैं। कुछ लोगों में मुंह से झाग निकलता है या ज़ुबान दांतों के बीच आ जाती है। 
  2. छोटे दौरे- इसमें रोगी कुछ क्षण या मिनिट के लिए याददाश्त खो देते हैं या किसी एक जगह घूरते हैं या थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ जाते हैं, इस तरह के दौरों में आमतौर पर रोगी गिरते नही हैं और उनके हाथों, पैरों में झटके नही आते हैं और झाग या ज़ुबान का कटना जैसे लक्षण नही होते। 

मिर्गी के दौरे आने पर घर के सदस्य रोगी की क्या मदद कर सकते हैं?

मिर्गी का दौरा आने पर रोगी को एक करवट कर लें ताकि यदि रोगी के मुंह में कुछ पदार्थ इक्कठा हुआ हो तो वह बाहर निकल जाये। किसी भी तरह की भीड़ इक्कठी न करे और ना ही चीखे चिल्लाएं। स्वयं को शांत रखे कमरे के खिड़की, दरवाजों को खोल दें ताकि रोगी को बराबर हवा मिले। यदि रोगी की ज़ुबान दांतों के बीच आती हुई दिख रही है तो साफ़ कपड़े से ज़ुबान अन्दर डालें और समय का ध्यान रखें। कुछ चीज़ें बिल्कुल न करें जैसे कि जबड़े को खोलने की कोशिश, ज़बरदस्ती पानी ना पिलायें जब तक रोगी होश में ना आये और कोई भी नुकीली चीज़ मुंह में ना डालें जैसे चम्मच इत्यादि। इससे रोगी के दांत टूट सकते हैं या जबड़ों को क्षति हो सकती है। यदि इस तरह के झटके 2 या 3 मिनिट से ज़्यादा चल रहे हैं तो आस पास के हॉस्पिटल जहाँ सुविधाएँ उपलब्ध हो वहां रोगी को अवश्य ले जाएँ। आजकल मिडाज़ोलम स्प्रे भी उपलब्ध है इसको नाक में डालने से दौरों की तीव्रता एवं उसका समय कम हो जाता है, इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह अवश्य लें। 

मिर्गी के कारण क्या होते हैं?

मिर्गी होने के कारण उम्र के अनुसार भिन्न भिन्न हो सकते हैं। उदहारण के तौर पर मात्र एक दिन के बच्चे को भी मिर्गी हो सकती है, आमतौर पर इन बच्चों को जन्म के समय ऑक्सीजन या शुगर की कमी के कारण मिर्गी होती है। बचपन में मिर्गी के अलग- अलग कारण हैं जैसे मस्तिष्क में संक्रमण होना, दिमाग की किसी नस की बनावट में दोष होना, मस्तिष्क का विकास धीरे होना और आनुवंशिक कारण। दूसरी और बड़ों में मिर्गी होने के कारण अलग होते हैं जैसे मस्तिष्क में कोई गाँठ अथवा ट्यूमर का होना, कोई पुरानी चोट, लकवा या किसी नस में ब्लॉकेज या हेम्रेज हो जाये या बार बार शरीर में सोडियम की कमी हो जाये इस तरह से मिर्गी के दौरे आने की सम्भावना बढ़ती है। 

मिर्गी का इलाज किस तरह किया जाता है?


मिर्गी के इलाज के लिए दो चरण सबसे महत्वपूर्ण हैं :

  1. बीमारी का पता लगाना: सामान्य जांचों के अलावा दो जांचे इसमें बहुत ज़रूरी हैं :  मस्तिष्क का एम.आर.आई एवं मस्तिष्क का ई.ई.जी
  2. इलाज: पूर्व कुछ वर्षों से मिर्गी के इलाज में काफी तरक्की हुई है, नयी किस्म की दवाओं के आने से दौरे आसानी से रोके जा सकते हैं। सबसे पहले मिर्गी का इलाज दवाइयों द्वारा किया जाता है लेकिन लगभग 20% रोगी ऐसे होते हैं जिनमे दवाइयों द्वारा दौरों को नही रोका जा सकता इस तरह के रोगियों को अपने डॉक्टर से ऑपरेशन के बारे में सलाह अवश्य लेनी चाहिए। 

क्या मिर्गी का इलाज उम्र भर चलता है?

इलाज की अवधि कारण पर निर्भर करती है, उदहारण के तौर पर अगर कोई पुरानी मस्तिष्क में बिमारी हुई जिससे कि घाव बन चुका है और वह स्थायी हो गया है ऐसे में इलाज लम्बा चलता है या ज़िन्दगी भर भी लेना पड़ सकता है, वहीँ दूसरी तरफ कई बार बच्चों में मिर्गी का कारण  अपने आप समय के साथ ठीक हो जाता है तो ऐसे बच्चों की दवाइयां 2-3 साल में बंद भी हो जाती है। दवाई जब एक बार शुरू की जाती है तो कम से कम 3-5 साल लेनी पड़ती है। इन दवाइयों को डॉक्टर की सलाह के बिना बंद ना करें और दवाइयां शुरू होने पर रोज़ाना नियमित समय पर लेना ज़रूरी है। 

क्या मिर्गी की बीमारी में अचानक मृत्यु का खतरा होता है?

सही मायने में इसका जवाब हाँ है लेकिन ये खतरा उन लोगों को ज़्यादा होता है जिनको बड़े दौरे पड़ते हैं, जो रोगी अचानक अपनी दवाइयां बंद कर देते हैं और सावधानियां नही रखते हैं जैसे कि दौरे पड़ने के बावजूद भी ड्राइविंग करते हैं, तेराकी करते हैं और शराब जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, इन लोगों में अकसर मृत्यु का खतरा बना रहता है। 

मिर्गी की बीमारी सुनकर अक्सर लोग डर जाते हैं, लोगों को लगता है कि मिर्गी हो जाने पर रोगी आजीवन काम अथवा व्यवसाय नही कर सकते, यदि लड़की है तो वो इस बीमारी के कारण माँ नही बन सकती इस कारण से कई बार तलाक तक हो सकते हैं तो क्या ऐसे रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं?

मिर्गी भी अन्य बिमारियों की तरह एक बीमारी है, यह कोई छुआछूत, भूत-प्रेत या प्रकोप का असर नही है। लगभग 80% मिर्गी के रोगी दवाइयों या ऑपरेशन से ठीक हो सकते हैं या रोगी की बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है। मिर्गी के रोगी को जब दौरा पड़ता है वह मिनिट यदि हम निकल दें हो बाकी समय में मिर्गी का रोगी एक सामन्य इन्सान की तरह ही रहता है। आज यदि हम देखंगे तो देश- विदेश में बहुत से क्रिकेटर, वैज्ञानिक, बिजनेसमैन हैं जिनको ये बीमारी हुई है यदि वो भी मिर्गी के लिए ऐसा सोचते तो आज वो जहां हैं कभी नही पहुँच पाते। मेरी आप सबको यही सलाह है कि ऐसे लोगों का मनोबल बढाएं एवं उन्हें ज़िम्मेदारी दें| सावधानी रखें और इनको काम जैसे ऑफिस अथवा दुकान पर जाने के लिए प्रेरित करें। गर्भवती महिलाओं में हाई क्वालिटी सोनोग्राफी, खून की जांचों से दवाइयों या बीमारी का बच्चे पर होने वाला असर भी पता लगाया जा सकता है। मेरी आप सभी को यही सलाह है कि शादी के बाद हो सकता आप किसी का नज़रिया ना बदल सकें इसलिए अच्छा होगा शादी से पहले आप होने वाले पति या पत्नी को अपनी इस बीमारी के बारे में बताएं।  

गीतांजली हॉस्पिटल में मिर्गी के रोगियों के लिए क्या विषेश सुविधाएँ हैं?

मिर्गी का इलाज करने के लिए सबसे आवश्यक है रोगी की अच्छे से जांच करना। गीतांजली हॉस्पिटल में 3.0 टेस्ला एम.आर.आई., निकोले का अत्याधुनिक विडियो ई.जी. मशीन है। यह दोनों मशीने राजस्थान में बहुत कम जगहों पर उलब्ध है। इससे हम रोगी में मिर्गी उत्पन्न करने वाले फोकस को ज़्यादा अच्छे से जान पाते हैं। जिन रोगियों की बीमारी दवाइयों से नियंत्रण नही होती उन रोगियों के लिए ऑपरेशन का भी विकल्प होता है। गीतांजली हॉस्पिटल में मिर्गी रोगियों के लिए प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है जिसके तहत मिर्गी उत्पन्न होने वाले फोकस का पता लगाना होता है, नयूरोलोजिस्ट की टीम द्वारा फोकस का पता लगने के बाद ऑपरेशन के लिए न्यूरो सर्जन के साथ मीटिंग में रोगी के लिए विषेश चर्चा की जाती है। इसमें रेडियोलाजिस्ट, मनोविज्ञानी, एनेस्थेसिस्ट की भी मदद ली जाती है। ऑपरेशन तय होने के बाद रोगी और उसके परिजनों को इसके बारे में बताया जाता है। इस प्रोटोकॉल का पालन करते हुए गत 2 वर्षों में गीतांजली हॉस्पिटल में ऐसे 19 बड़े सकारात्मक ऑपरेशन किये गए हैं। 

आप मिर्गी की बीमारी से झूझ रहे रोगियों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

मैं यही कहना चाहूँगा कि मिर्गी का इलाज संभव है, किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास में ना पड़ें और सही जगह इसके इलाज के लिए जाएँ। 

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal