उदयपुर। झील प्रेमियों ने झीलों तालाबों को अतिक्रमण व प्रदूषण कारी व्यावसायिक गतिविधियों से बचाने की अपील की है।
झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति तथा गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के तत्वावधान में रविवार को आयोजित श्रमदान व संवाद में डॉ अनिल मेहता ने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के वर्ष 2007 में पारित निर्णयों के अनुसार उदयपुर की झीलों व समस्त छोटे तालाबों के भीतर व ठीक किनारों पर किसी प्रकार का निर्माण नही किया जा सकता।
राज्य सरकार द्वारा जारी नियंत्रित निर्माण क्षेत्र अधिसूचना व्यावसायिक निर्माणों पर रोक लगाती है। लेकिन कंही होटल रिसोर्ट बन रहे है तो कंही पेटे में कंटेनर लगा कर व्यवसाय करने के कार्य हो रहे है।
झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि लेंड माफिया योजना पूर्वक तरीके से आवास या कृषि के नाम पर अनुमति प्राप्त करते है। फिर वंहा होटल इत्यादि निर्माण कर व्यवसाय प्रारंभ कर लेते है। सरकारी मशीनरी आंखे मूंद ये सब होने देती हैं। यह मिलीभगत नही रुकी तो झीलों का अस्तित्व ही मिट जाएगा।
गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झील तालाब किनारे कोई भी होटल या व्यवसाय प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता।मानवीय व व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ते ही हवा, मिट्टी, पानी, शांति सभी को नुकसान पंहुचता है। उदयपुर के झील तालाब में अब ये ताकत नही बची कि और निर्माण व दबाव सहन कर सके।
संवाद में ध्रुपद सिंह व कुशल रावल ने कहा कि झीलों तालाबो पर अत्यधिक मोटर वाहनो का संचालन नियंत्रित करना चाहिए। पल्लब दत्ता, दिगम्बर सिंह व रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि झीलों पर मानव आबादी के दबाव ने देशी प्रवासी पक्षियों के आवासों को नष्ट किया है।
इस अवसर पर पीछोला झील पर श्रमदान कर कूड़े कचरे को हटाया गया। श्रमदान में जल योद्धा देवराज सिंह, कुणाल कोष्ठी, सुमित विजय, अक्षयपाल सिंह , कुशल रावल, रमेश चंद्र राजपूत, पल्लब दत्ता, ध्रुपद सिंह, पल्लब दत्ता, दिगम्बर सिंह, धारित्र, तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा, डॉ अनिल मेहता ने सहभागिता की।
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