भोजन नली के विकार को ठीक किया

भोजन नली के विकार को ठीक किया

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के गेस्ट्रो सर्जन एवं गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट की टीम ने एकैलेसिया कार्डिया बीमारी से पीड़ित चित्तौड़गढ़ निवासी 40 वर्षीय डाली देवी का लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया द्वारा सफल इलाज किया। सीने में दर्द, उल्टी एवं खाना व पानी भी न निगल पाने जैसी गंभीर परेशानियों के साथ रोगी गीतांजली हाॅस्पिटल आई थी। जहां गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डाॅ पंकज गुप्ता द्वारा एंडोस्कोपी एवं बैरियम (विशेष प्रकार के एक्स रे की जांच) जांचें की गई जिसमें एकैलेसिया कार्डिया नामक बीमारी का पता चला।

 

भोजन नली के विकार को ठीक किया

उदयपुर 19 अप्रैल 2019, गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के गेस्ट्रो सर्जन एवं गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट की टीम ने एकैलेसिया कार्डिया बीमारी से पीड़ित चित्तौड़गढ़ निवासी 40 वर्षीय डाली देवी का लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया द्वारा सफल इलाज किया। सीने में दर्द, उल्टी एवं खाना व पानी भी न निगल पाने जैसी गंभीर परेशानियों के साथ रोगी गीतांजली हाॅस्पिटल आई थी। जहां गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डाॅ पंकज गुप्ता द्वारा एंडोस्कोपी एवं बैरियम (विशेष प्रकार के एक्स रे की जांच) जांचें की गई जिसमें एकैलेसिया कार्डिया नामक बीमारी का पता चला।

क्या होती है एकैलेसिया कार्डिया बीमारी?

डाॅ पंकज ने बताया कि एकैलेसिया कार्डिया बीमारी में भोजन नली (ईसोफेगस) का निचला भाग सिकुड़ जाता है जिससे रोगी कुछ भी खाएं, तरल पदार्थ या ठोस भोजन, पेट तक जाता ही नहीं है। इससे खाना भोजन नली में ही रहता है और सीने में भारीपन लगता है। इस बीमारी के कारण थूक के साथ भोजन नली में पड़ा खाना दोनों बाहर आ जाते है और मरीज उल्टी की शिकायत के साथ हाॅस्पिटल में परामर्श के लिए आता है। यह रोगी भी उल्टी की शिकायत के साथ गीतांजली हाॅस्पिटल आई थी। इस बीमारी में रोगी को बार-बार न्यूमोनिया होना, वजन घटना, भोजन नली को नुकसान एवं लम्बे समय तक होने वाली जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है।

क्या इलाज किया गया?

आमतौर पर ऐसे रोगियों का ओपन सर्जरी द्वारा इलाज किया जाता है परंतु विशेषज्ञ एवं सिद्धहस्त गेस्ट्रो सर्जन डाॅ कमल किशोर बिश्नोई ने लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया से इलाज करने का निर्णय लिया। इस प्रक्रिया द्वारा नाभी के पास 1 सेंटीमीटर के छोटे चीरे से भोजन नली (ईसोफेगस) के निचले भाग की सिकुड़ चुकी मांसपेशियों को काट कर एक कृत्रिम वाॅल्व बनाया गया जिससे भोजन बिना परेशानी के पेट तक जा सके एवं एसिड वापिस ऊपर की तरफ न आए। इस प्रक्रिया को ‘हिल्लर मायोटोमी विद् पार्शियल फंडोप्लाइकेशन’ कहते है। रोगी अब बिल्कुल स्वस्थ है एवं दूसरे दिन से ही उसने खाना खाना आरंभ कर दिया था।

लप्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा इलाज के फायदे?

डाॅ कमल ने बताया कि लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा इलाज से रोगी जल्दी खाना खाने में सक्षम हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा इलाज के और भी कई फायदे है जैसे पेट में बड़ा चीरा न लगने पर संक्रमण का खतरा नहीं होता, रक्तस्त्राव की परेशानी नहीं होती है, रोगी जल्दी स्वस्थ होता है एवं उसे हाॅस्पिटल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है, कम दर्द होता है एवं काॅस्मेटिक रुप से भी इस प्रक्रिया द्वारा सर्जरी फायदेमंद होती है क्योंकि इससे शरीर पर चीरे के निशान नहीं दिखते है।

डाॅ कमल किशोर ने बताया कि हर एक लाख लोगों में से किन्हीं दो मरीजों को यह बीमारी होती है जिसका कारण अब तक अज्ञात है। साथ ही आमतौर पर 25 से 60 वर्ष की आयु के लोग इस बीमारी का शिकार होते है। अब तक केवल मेट्रो शहरों में ही इस प्रक्रिया द्वारा इलाज हो रहे थे, किन्तु दक्षिण राजस्थान में स्थित उदयपुर में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी।

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गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि, ‘गीतांजली का एकमात्र उद्देश्य रोगी को बीमारी से निजात दिलाने के साथ-साथ सामान्य जीवन प्रदान करना एवं बीमारी संबंधित दुष्प्रभावों को कम करना है। गीतांजली हाॅस्पिटल चिकित्सा के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं गुणात्मक चिकित्सा सेवा के साथ नवीनीकरण के प्रति प्रतिबद्ध है। हमारे लिए हर रोगी महत्वपूर्ण है जिसका सही एवं सर्वश्रेष्ठ उपचार उपलब्ध कराने में हम तत्पर है।’

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