शस्य श्यामला धरती और बदहाल मजदूर : लैंडलेस की कहानी


शस्य श्यामला धरती और बदहाल मजदूर : लैंडलेस की कहानी

उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन आज पंजाब से आए दस्तावेजी फ़िल्मकार रणदीप मडडोके की फिल्म ‘लैंडलेस’ का प्रीमियर हुआ जिसके बाद दर्शकों के साथ लंबा संवाद चला। यह फिल्म पंजाब के भूमिहीन दलित कृषि मजदूरों की व्यथा कथा और उनके संगठित होने की दास्तान को दर्ज करती है। फिल्म में पंजाब के हरे भरे खेतों और उनके साथ साथ कृषि मजदूरों की बदहाली के समानान्तर दृश्य खड़े कर एक विडम्बना की सृष्टि करती है।

 

शस्य श्यामला धरती और बदहाल मजदूर : लैंडलेस की कहानी

उदयपुर फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन आज पंजाब से आए दस्तावेजी फ़िल्मकार रणदीप मडडोके की फिल्म ‘लैंडलेस’ का प्रीमियर हुआ जिसके बाद दर्शकों के साथ लंबा संवाद चला। यह फिल्म पंजाब के भूमिहीन दलित कृषि मजदूरों की व्यथा कथा और उनके संगठित होने की दास्तान को दर्ज करती है। फिल्म में पंजाब के हरे भरे खेतों और उनके साथ साथ कृषि मजदूरों की बदहाली के समानान्तर दृश्य खड़े कर एक विडम्बना की सृष्टि करती है। दिलचस्प बात ये थी कि सभागार मे बैठे सहभागी फ़िल्मकारों नितिन पमनानी, फ़ुर्कान ए जे, संजय जोशी आदि ने फिल्म पर सकारात्मक टिप्पणियाँ की।

नितिन पमनानी ने फिल्म को उसके विजुअल्स के लिए महत्त्वपूर्ण बताया और कहा कि फीचर फिल्मों में तो हम ये प्रयोग देखते रहे हैं पर दस्तावेजी सिनेमा में यह एक नई शुरुआत है। फुरकान ने इस फिल्म को एक ‘विजुअल एसे’ की संज्ञा दी और पूछा कि रूप और कथ्य के संतुलन के लिए विभाजक रेखा कैसे खींचते है ? इसके जवाब में रणदीप कौर (फिल्म के संपादक) साहेब इकबाल सिंह ने अपने बीच एक दृश्य को रखने न रखने को लेकर चले दिलचस्प विवाद का किस्सा सुनाया जिसका दर्शकों ने खूब आनंद लिया।

संयोजक रिंकू परिहार ने बताया कि इसके पहले सुबह राणा कुम्भा संगीत सभागार का सभागार विभिन्न स्कूलों से आये बच्चों की खिलखिलाहट से लगातार गूंजता रहा। मौका था छठे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन का। सुबह जैसे ही स्पानी कहानी फर्दीनांद पर इसी नाम से बनी फ़िल्म परदे पर उतरने शुरू हुई हाल में बच्चों और बड़ों के ठहाके गूंजने लगे। कार्लोस सलदान्हा द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म स्पेन में पैदा हुए एक ऐसे युवा होते बैल की कहानी है जिसे यहाँ की लोकप्रिय लेकिन क्रूर बुल फाइटिंग के लिए तैयार होते हुए बलिष्ठ बैल बनने की बजाय फूल –पत्तियों को निहारना ज्यादा पसंद है। लेकिन उसकी नियति उसे बुल फाइटिंग के कटघरे में ले आती है जहां से अंतत निकलकर वह फिर से फूल पत्तियों की नाजुक दुनिया में पहुँच जाता है। फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद आयोजकों ने बच्चों के साथ मजेदार बातचीत का सेशन भी आयोजित किया जिसमे किसी बच्चे को फर्दीनांद पसंद आया तो किसी को उसकी दोस्त तो एक एक बच्चे ने कहा कि मुझे तो सबकुछ पसंद आया। फ़िल्म के बाद सभागार के बाहर बच्चों ने अपने पसंद के चित्र और पोस्टर भी बनाये जिन्हें एक छोटी प्रदर्शनी की तरह तुरंत सजा भी दिया गया।

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दूसरे सत्र में नवारुण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित रमाशंकर यादव विद्रोही की कविता पुस्तक ‘नयी खेती’ का लोकार्पण सुधा चौधरी, असलम, माणिक, हिम्मत सेठ और लिंगम चिरंजीव राव ने किया जिसके तुरंत बाद कवि विद्रोही पर बनी दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘मैं तुम्हारा कवि हूँ’ का प्रदर्शन किया गया। यह फ़िल्म मौखिक परंपरा के कवि विद्रोही के जीवन और कविता का बहुत गहरे से वर्णन करती है।

फ़िल्म के बाद फ़िल्म के निर्देशक नितिन पमनानी के साथ दर्शकों ने रोचक संवाद भी बनाया। एक युवा दर्शक ने फ़िल्म से बुरी तरह प्रभावित होने के बाद यह मार्मिक टिप्पणी की अगर आप खुद से टूटे हुए तो कोई आपको और कितना तोड़ेगा। एक दर्शक का सवाल था कि विद्रोही का जितना जटिल जीवन था वह फ़िल्म में क्यों नहीं आ पाया। एक दर्शक ने यह भी जानना चाहा कि जब विद्रोही खुद को तुलसी नहीं बल्कि कबीर की परंपरा का बताते हैं तो इसका क्या मतलब है जिसका जवाब देते हुए साहित्य के शोधार्थी हिमांशु पंड्या ने कहा कि असल में तुलसी बड़े कवि होने के बावजूद वर्णाश्रम में यकीन रखते थे और इसी अर्थ में विद्रोही उनसे अलगाते हुए स्वयं को कबीर की परंपरा का मानते हैं।

पंजाब से आये लैंडलेस फ़िल्म के सम्पादक साहेब इकबाल सिंह ने निर्देशक से कहा कि उन्हें फ़िल्म में कई बार विजुअल्स कविता की पंक्तियों को डिस्टर्ब करते महसूस हुए दिखाई पड़े जिस पर निर्देशक नितिन का कहना था कि कविता को फ़िल्म में उतारना बहुत मुश्किल काम है उसका कोई एक तय रूप नहीं हो सकता। हो सकता है कि यह तरीका किसी को समझ में आये और किसी को नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि हालाँकि मैं आपकी असहमति का पूरा सम्मान करता हूँ।

समारोह की अंतिम फिल्म केरल के सुप्रसिद्ध निर्देशक जॉन अब्राहम की फिल्म ‘अम्मा आरियाँ’ थी जो भारत में फिल्म सोसाइटी गठन और और उसके जरिये फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मील का पत्थर मानी जाती है।

समापन समारोह में एस एन जिज्ञासु ने पधारे हुए दर्शकों, फ़िल्मकारों और राजस्थान के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों से आए विद्यार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सफर सबके सहयोग से आगे भी जारी रहेगा। समारोह प्रख्यात निर्देशक मृणाल सेन को श्रद्धांजलि के साथ सम्पन्न हुआ।

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