DMK चीफ एम करूणानिधि नहीं रहे

DMK चीफ एम करूणानिधि नहीं रहे

द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) के प्रमुख मुत्तुवेल करुणानिधि का चेन्नई के कावेरी हॉस्पिटल में आज सवा छह

 

DMK चीफ एम करूणानिधि नहीं रहेद्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) के प्रमुख मुत्तुवेल करुणानिधि का चेन्नई के कावेरी हॉस्पिटल में आज सवा छह बजे निधन हो गया। एम करूणानिधि को शनिवार रात तबियत बिगड़ने से चेन्नई में भर्ती करवाया गया था. करूणानिधि के निधन से उनके समर्थको में भारी शोक की लहर है। करुणानिधि के हॉस्पिटल में भर्ती कराए जाने के बाद से ही हजारों की संख्‍या में डीएमके के कार्यकर्ता अपने प्रिय नेता के लिए दुआओं में जुटे हुए थे। उन्‍हें उम्‍मीद थे कि ‘कलाईनार’ मौत को मात देकर एक बार फिर उनके बीच होंगे। हाथों में करुणानिधि की फोटो लिए प्रशंसकों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। बड़ी संख्‍या में महिला प्रशंसक भी करुणानिधि के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए दुआ करने पहुंची थीं।

एम. करुणानिधि का जन्म मुत्तुवेल और अंजुगम के यहां 3 जून 1924 को ब्रिटिश भारत के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में दक्षिणमूर्ति के रूप में हुआ था। वे इसाई वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते हैं। वह एक मंजे हुए राजनेता और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री थे। 1969 में डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई की मौत के बाद से डीएमके की कमान सँभालने वाले नेता और पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है।

2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों को जीत लिया। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने डीएमके द्वारा जीती गयी सीटों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया और तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे गठबंधन के बावजूद 28 सीटों पर विजय प्राप्त की। वे तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक भी रह चुके हैं। उनके समर्थक उन्हें कलाईनार “कला का विद्वान” कहकर बुलाते हैं।

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करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया।

पराशक्ति तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया। शुरू में इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था लेकिन अंत में इसे 1952 में रिलीज कर दिया गया। यह बॉक्स ऑफिस पर एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई लेकिन इसकी रिलीज विवादों से घिरी था। रूढ़िवादीयो ने इस फिल्म का विरोध किया क्योंकि इसमें कुछ ऐसे तत्व शामिल थे जिसने ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी। इस तरह के संदेशों वाली करूणानिधि की दो अन्य फ़िल्में पनाम और थंगारथनम थीं। इन फिल्मों में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे। जैसे-जैसे उनकी सुदृढ़ सामाजिक संदेशों वाली फ़िल्में और नाटक लोकप्रिय होते गए, वैसे-वैसे उन्हें अत्यधिक सेंसशिप का सामना करना पड़ा; 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया।

साहित्य

करुणानिधि तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने तिरुक्कुरल, थोल्काप्पिया पूंगा, पूम्बुकर के लिए कुरालोवियम के साथ-साथ कई कविताएं, निबंध और किताबें लिखी हैं।

DMK चीफ एम करूणानिधि नहीं रहे

साहित्य के अलावा करूणानिधि ने कला एवं स्थापत्य कला के माध्यम से तमिल भाषा में भी योगदान दिया है। कुरालोवियम की तरह, जिसमें कलाईनार ने तिरुक्कुरल के बारे में लिखा था, वल्लुवर कोट्टम के निर्माण के माध्यम से उन्होंने तिरुवल्लुवर, चेन्नई, तमिलनाडु में अपनी स्थापत्य उपस्थिति का परिचय दिया है। कन्याकुमारी में करूणानिधि ने तिरुवल्लुवर की एक 133 फुट ऊंची मूर्ति का निर्माण करवाया है जो उस विद्वान के प्रति उनकी भावनाओं का चित्रण करता है।

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