विश्व रंगमंच दिवस पर नाट्यांश कलाकारों द्वारा नाटकीय प्रयोगात्मक प्रदर्शन
नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संसथान के कलाकारों द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र भवन के गजेन्द्र सिंह भंडारी स्मृति हॉल में अन्तरंग रंगमंच गतिविधि का प्रदर्शन किया गया और साथ ही होली मिलन समारोह भी मनाया गया।
नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संसथान के कलाकारों द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र भवन के गजेन्द्र सिंह भंडारी स्मृति हॉल में अन्तरंग रंगमंच गतिविधि का प्रदर्शन किया गया और साथ ही होली मिलन समारोह भी मनाया गया।
प्रस्तुत प्रयोग में अलग अलग कहानियों और अलग अलग समयों को एक ही मंच पर एक साथ प्रदर्शित किया गय, जिसमें विशेष प्रकार की बैठक ओर प्रकाश व्यवस्था प्रयुक्त की गयी एवं पारंपरिक मंच व्यवस्था से हटकर प्रदर्शन किया गया। इन प्रदर्शनों में मुख्य रूप से इस बात को दर्शाया गया की व्यक्ति कोई भी हो और किसी भी धर्मं, संप्रदाय या क्षेत्र का हो उसे उसकी गलती न होने पर भी हर प्रकार की अमानवीय प्रताड़नाये झेलनी पड़ती हैं जिसका कई बार दुखद अंत होता है। राजनैतिक कारणों और शक्ति पाने के लोभ के कारण लाखों लोगों को विभिन्न यातनाएं झेलनी पड़ती हैं।
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आज के दौर में एक मनुष्य दुसरे मनुष्य का बिना कारण जाने दुश्मन बना बैठा है, जो निकट भविष्य में दुखदायी साबित हो सकता है। इन सब को आगे बढ़ाने में बिना सोचे समझे सोशल मीडिया का प्रयोग भी एक कारण है जो विभिन्न सम्प्रदायों में दुरी बना रही है और कुछ असामाजिक तत्व आग भड़काने का लगातार कार्य कर रहें हैं, और कईयों को तो इस तरह से आग भड़काने का ज़िम्मा भी मिला हुआ है।
इस रंग संध्या में प्रस्तुत नाटक से देश में मौजूदा हालातों पर बात की गयी और अराजकता एवं साम्प्रदायिकता पर संवेदना पूर्ण बात की गयी। प्रस्तुति में तीन अलग अलग देशों और समय में लोगों ने दंगों ओर लड़ाई की वजह से जो सहा उसे एक सूत्र में बांध कर नाटक बनाया गया।
एक कहानी द्वितीय विश्व युद्ध में प्रताड़ित उन सभी लाखों निर्दोष लोगों के लिए बात करती है, जिनका कोई भी दोष न होने पर भी उन्हें इस संसार को अलविदा कहना पड़ा। जिस बर्बरता के साथ लाखों लोग विभिन्न प्रताडनाओं को सहते हुए मारे गए, उन निर्दोष लोगों की कहानी एक बच्ची प्रदर्शित करती है जो खेलते खेलते कब पुरे परिवार के साथ एक युद्ध क्षेत्र में चली जाती है और अपने परिवार से अलग हो जाती है और उसका परिवार गैस चैम्बर में हजारों लोगों के साथ मारा जाता है वो अकेली बच जाती है।
दूसरी कहानी गुलज़ार साहब द्वारा कहानी ‘रावी पार‘ से प्रेरित है जिसमें भारत पाकिस्तान विभाजन का समय दिखाया गया है और उस समय में एक परिवार किस तरह से दर दर बचता फिरता रहता है और इन सब में उनके नवजात बच्चों की मृत्यु के हो जाती है। इसमें उस माँ की पीड़ा को दर्शाया गया है, जो अपने जुड़वां बच्चों को खोने के कष्ट से उबर नहीं पाती और पगला हो जाती है, इसमें कहानी ये दिखाती है, विभाजन के बाद परिवारों की व्यथा और उन मासूम बच्चों के जाने के बाद माँ का दुःख।
तीसरी कहानी हमारे जवानों की है जो अपनी पुरा तन-मन लगाकर देश की रक्षा में लगे है परन्तु फिर भी कहीं कहीं उन्हें अपने ही लोगों से उलाहना झेलना पड़ता है और हाथ में हथियार होते हुए भी पत्थर झेलने पड़ते हैं। वो जवान अपने परिवार से दूर रहते हुए भी सभी परिवारों की रक्षा करने में लगा है और उनसे मानसिक प्रताड़ना लगातार झेलनी पड़ती है। ये कहानी मौजूदा परिप्रेक्ष्य से प्रेरित है।
प्रदर्शन में महेश जोशी ने सैनिक, ईशा जैन ने द्वितीय विश्व युद्ध की बालिका और रेखा सिसोदिया रावी पार नाम की अलग अलग कहानियों को एक ही मंच पर एक साथ प्रदर्शित किया। पार्श्व मंच चक्षु सिंह, जतिन भरवानी, कुमुद द्विवेदी, अमित श्रीमाली, योगिता सिसोदिया, मोहम्मद रिजवान, अशफ़ाक नूर खान और अब्दुल मुबीन खान ने संभाला। इस अवसर पर नाट्यांश संस्था के सदस्यों और कलाकरों ने होली मिलन समारोह मनाया जिसमें एक दुसरे को प्राकृतिक गुलाल लगाकर बधाइयाँ दी गयीं और आगामी प्रदर्शनों, कार्यशालाओं और कार्यक्रमों के बारे में चर्चा की गयी, सचिव अमित श्रीमाली ने बीते वर्ष के कार्यक्रमों के बारे में बताया।
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