रियासत कालीन झील बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो

रियासत कालीन झील बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो

झील प्रेमियों ने राज्य सरकार से मांग की है कि फतहसागर, पिछोला सहित राज्य की समस्त रियासत कालीन झीलों की बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

 

रियासत कालीन झील बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो

झील प्रेमियों ने राज्य सरकार से मांग की है कि फतहसागर, पिछोला सहित राज्य की समस्त रियासत कालीन झीलों की बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

रविवार को आयोजित झील संवाद में विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि विभिन्न सरकारी विकास व सौंदर्यीकरण योजनाओ के दौरान इन बांधो के मूल प्रकार, स्वभाव व मजबूती को जाने बिना काम हो रहे है। इससे बांधो को गंभीर क्षति पंहुचने की आशंका बनी रहती है। फतहसागर पर विभूति पार्क इसका एक उदाहरण है।

मेहता ने कहा कि सरकार रियासतकालीन बांधो के नक्शे, उनकी भीतरी बनावट, भीतर के पदार्थ, सरंचना के प्रकार की जानकारी संकलित करे। तथा इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित भी करे। यदि कोई क्षति अभी तक पंहुची है तो उसे ठीक किया जाए। बांधो की स्थिति को जानने के पश्चात ही इन पर नई सौंदर्य योजना बने।

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झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झील बांधो के ऊपर व नीचे गहरे नलकूप खोद दिए गए है। इससे बांधो के टूटने की संभावना बढ़ती है। सरकार कानून लाकर बांधो के दोनों और कम से कम तीन सौ मीटर की दूरी में नलकूप निर्माण पर प्रतिबंध लगाए। झील प्रेमी पल्लब दत्ता तथा कुशल रावल ने कहा कि रियासत कालीन बांधो को संरक्षित विरासत घोषित कर उनके लिए पृथक विभागीय शाखा व बजट घोषित होना चाहिए। ये बांध ऐतिहासिक व पर्यावरणीय विरासत है।

रियासत कालीन झील बांध सरंचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो

संवाद से पूर्व फतेहसागर में श्रमदान किया गया। श्रमदान में रामलाल गहलोत, पल्लब दत्ता, कुशल रावल , तेज शंकर पालीवाल, डॉ अनिल मेहता इत्यादि ने भाग लिया।

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