उदयपुर, 10 सितंबर 2020। लेकसिटी के प्रसिद्ध सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य की जैव विविधता को बचाने के लिए उदयपुर पुलिस महानिरीक्षक बिनीता ठाकुर द्वारा पिछले डेढ़ माह से चलाए जा रहे ‘मिशन लेंटाना’ से गुरुवार को पर्यावरण वैज्ञानिक और फॉरेस्ट एक्सपर्ट्स भी जुड़े, उन्होंने इस दौरान न सिर्फ दो घंटे श्रमदान किया अपितु इस मुहिम को सफल और सार्थक बताते हुए भावी रणनीति पर सुझाव दिए।
दक्षिण राजस्थान की जैव विविधता पर कार्य कर रहे देश के ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा, ग्रीन पीपल सोसायटी सदस्य व सेवानिवृत्त आईएफएस ओ.पी. शर्मा और वी.एस.राणा, वरिष्ठ पक्षी विशेषज्ञ प्रीति मुर्डिया आदि गुरुवार को पुलिस कर्मचारियों के साथ सज्जनगढ़ अभयारण्य पहुंचे और डेढ़ घंटे तक श्रमदान करते हुए पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई।
इस दौरान उन्होंने कहा कि सज्जनगढ़ में बेतहाशा फैले लेंटाना खरपतवार को हटाने की मुहिम पूरी तरह सार्थक व सफल है, इससे यहां की जैव विविधता का संरक्षण होगा व वन्यजीवों को उनके अनुकूल वनस्पति व आसरा प्राप्त होगा। इस मौके पर पुलिस उपाधीक्षक चेतना भाटी व हनुमंतसिंह भाटी, पक्षी विशेषज्ञ विनय दवे, क्षेत्रीय वन अधिकारी जीएस गोठवाल और बड़ी संख्या में अभय कमांड सेंटर व आईजी रिजर्व के पुलिसकर्मियों ने श्रमदान करते हुए लेंटाना को हटाया।
श्रमदान उपरांत पुलिस आईजी बिनीता ठाकुर ने फॉरेस्ट एक्सपर्ट्स के साथ अभयारण्य का दौरा किया और यहां पर उन्होंने श्रमदान के दौरान हटाए गए लेंटाना और यहां खाली स्थान पर घास और अन्य वनस्पति उपजाने के बारे में चर्चा की। आईजी ठाकुर ने लेंटाना से खाली हुए क्षेत्र में घास व अन्य झाड़ी रोपण की अपनी योजना के बारे में भी बताया।
इस मौके पर डॉ. शर्मा ने लेंटाना उन्मूलन के कार्य को सज्जनगढ़ अभयारण्य के जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान बताया। उन्होंने कहा कि तेजी से फैलने वाला लैंटाना एक खरपतवार है और इसके फैलने से जंगल में अन्य वनस्पति पनप नहीं पाती। लेंटाना एक विशेष प्रकार का अलीलो कैमिक्स जहरीला पदार्थ निकालता है। जिसका असर लम्बे समय तक रहता है, इससे उस क्षेत्र में लम्बे समय तक किसी भी अन्य वनस्पति के बीज नहीं उग पाते, एक तरह से यह उस क्षेत्र को बंजर बना देता है।
इसके नीचे घास व अन्य झाडि़यों के नहीं पनपने से शाकाहारी जीवों के भोजन की समस्या पैदा हो जाती है, इससे उनकी संख्या में कमी होने लगती है। इसका असर मांसाहारी जीवों पर भी पड़ता है अर्थात् सम्पूर्ण भोजन श्रृंखला प्रभावित होती है। भोजन की कमी होने पर मांसाहारी जीव तेंदुआ (पैंथर) जंगल से निकलकर गाँवों की भोजन तलाशने निकलता है, इससे तेंदुआ (पैंथर) मानव संघर्ष को बढ़ावा मिलता है। इस लैंटाना के हट जाने से इस संघर्ष में कमी आयेगी और अभयारण्य में वन्यजीवों एवं वनस्पति की वृद्धि होगी जिससे जैव विविधता का संतुलन बना रहेगा।
डॉ. शर्मा ने कहा कि लैंटाना के हट जाने के बाद पास-पास उगे विलायती बबूल (जूली फ्लौरा) के बड़े वृक्षों को भी उखाड़ना होगा क्योंकि इससे भी जमीन के बड़े भाग पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है और वनस्पतियां नहीं पनप-पाती। डॉ. शर्मा ने बताया कि जिन भू-भाग पर लैंटाना हटा दिया गया है। वहां स्थानीय प्रजाति की घास एवं झाडि़यों के बीज छिड़के जावे जिससे अगली वर्षा में ये घास व झाड़ी पनप-कर अपनी वृद्धि करेंगे। डॉ. शर्मा ने लेंटाना उन्मूलन मुहिम को लगातार तीन-चार वर्षों तक दोहराने का सुझाव दिया और कहा ऐसे में ही इस हानिकारक विदेशी खरपतवार से मुक्ति मिलेगी।
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