उदयपुर 16 मार्च 2020। कोरोना महामारी से यह सबक लेने की जरूरत है कि पर्यटन का विकास संतुलित होकर पर्यावरण के अनुकूल हो। यह विचार रविवार को आयोजित झील संवाद में व्यक्त किये गए। आयोजन झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति तथा गांधी मानव कल्याण सोसाइटी के साझे में हुआ।
डॉ अनिल मेहता ने कहा कि पेडों, पहाड़ो, झीलों, नदियों, जंगलों को नष्ट करने से कोरोना जैसी वैश्विक जानलेवा महामारियां पनपती है।
मेहता ने कहा कि पर्यटन के नाम पर झील सतह पर क्रूज व मोटर बोट, झील तालाब पेटे में सड़के, होटलों व रिसोर्ट के लिए पहाड़ो की कटाई, झीलों को छोटा करना व छोटे तालाबों को पाटने जैसी गतिविधियों को बहुत बुरे परिणाम होंगे। सहनीय क्षमता से ज्यादा एवं असंतुलित, अनियंत्रित पर्यटन विकास जानलेवा साबित हो सकता है।
झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार झील पेटे में किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियां नही हो सकती है। लेकिन नगर निगम झील सतह पर क्रूज रेस्टोरेंट व्यवसाय चलवा कर न्यायालय की अवेहलना कर रहा है। पालीवाल ने कहा कि झील किनारे बड़े रेस्टोरेंट की जगह नही बची तो अब झील के अंदर रेस्टोरेंट खोला जा रहा है।
गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि पेयजल स्त्रोत की पवित्रता व शुद्धता निगम व प्रशासन की पहली जिम्मेदारी है। पेयजल स्त्रोत को गंदा करने के सभी कार्य भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है। शर्मा ने कहा कि क्रूज, मोटर बोट सहित झील किनारे व सतह पर अत्यधिक व्यावसायिक गतिविधियां पेयजल को गंदा करती है। निगम को ऐसे अपराधों को रोकना चाहिए।
पर्यावरण प्रेमी दिगम्बर सिंह व कुशल रावल ने कहा कि झीलो व पहाड़ो पर हो रहा अत्याचार रुकना चाहिए। पहाड़ो व झीलों, तालाबो को मिटाकर उदयपुर कभी स्मार्ट सिटी नही बन सकता है। उदयपुर को प्रदूषित व बीमार शहर बनने से रोकने के लिए एक जनआंदोलन की जरूरत है।
इस अवसर पर बारी घाट पर फैली गंदगी को हटाया गया। मृत व बीमार लोगों के झील में विसर्जित कपड़ों को निकाला गया। श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, प्राची शर्मा, रमेश चंद्र राजपूत, कृष्णा कोष्ठी, देवराज सिंह, दिगम्बर सिंह, कुशल रावल, द्रुपद सिंह, तेज शंकर पालीवाल, नंदकिशोर शर्मा ने भाग लिया।
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