मौजूदा हालात में देश में आपसी साम्प्रदायिक सौहार्द्र जहाँ हर गुज़रते वक़्त के साथ आहत होता नज़र आ रहा है। वहीँ पर इस देश में आज भी आपसी भाईचारे और धार्मिक सौहार्द की झलक कहीं न कहीं नज़र आ ही जाती है। हालाँकि बरसो से हिंदुस्तान की जनता का एक बड़ा तबका एक दूसरे के तीज त्यौहारों और पर्वो में शामिल होता रहा है लेकिन आज के मौजूदा दौर में राजनैतिक दल और टीआरपी की भूखी और बेलगाम मीडिया दो समुदायों के बीच छोटे मोटे टकराव को बढ़ा चढ़ाकर माहौल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ती है।
देश के दक्षिण में स्थित चेन्नई का एक मंदिर पिछले 40 सालो से आपसी भाईचारे और धार्मिक सौहार्द की मिसाल बन गया है, क्योंकि इस मंदिर में रमजान के दौरान रोजेदारों के लिए इफ्तार तैयार किया जाता है।
आपको बता दे कि रमजान का महीना मुस्लिमो के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र महीनों में से एक है, इस महीने में मुस्लिम समुदाय एक महीने तक रोजा रखते हैं। इस पूरे महीने के दौरान, दुनिया भर के मुस्लिम लोग अपने घरों और मस्जिदों में बड़े इफ्तार भोजन का आयोजन करते हैं। लेकिन एक मंदिर ऐसा करेगा, ये किसी ने नहीं सोचा था।
चेन्नई के मायलापुर इलाके में स्थित यह मंदिर पिछले 40 सालों से हिंदू और मुस्लिम समुदाय को जोड़ने का काम कर रहा है। इस परंपरा की शुरुआत दादा रतनचंद ने की थी, जो सिंध से एक हिंदू शरणार्थी थे और विभाजन के समय चेन्नई में आकर बसे थे।
हर साल, यहां के स्वयंसेवक (वॉलंटियर्स) सुबह 7:30 बजे से इफ्तार की तैयारी शुरू कर देते हैं। रोज करीब 1200 लोगों के लिए खाना बनाया जाता है। इफ्तार के स्वादिष्ट मेन्यू में बिरयानी, फ्राइड राइस, तरह-तरह के अचार, केसर वाला दूध और फल शामिल होते हैं। फिर शाम 5:30 बजे तक यह भोजन ऐतिहासिक वल्लाजाह मस्जिद तक पहुंचाया जाता है, जहां स्वयंसेवक रोजेदारों को खाना परोसते हैं।
इसके अलावा यह मंदिर हर अमावस्या की रात को शाम के समय भोजन बांटता है और जरूरतमंदों के घरों तक भी खाना पहुंचने का काम करता है। खास बात यह है कि इसके अंदरूनी हिस्सों में हिंदू और मुस्लिम संतों, यीशु मसीह, माता मरियम, गुरु नानक और कई अन्य महापुरुषों की तस्वीरें लगी हुई हैं। यहां आने वाला हर भक्त किसी न किसी रूप में आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस करता है।
Source: Media Reports
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