शहर में जहाँ पुरानी नाकारा सीवर लाइने, वँहा गड़िया देवरा की तरह गैस का डर


शहर में जहाँ पुरानी नाकारा सीवर लाइने, वँहा गड़िया देवरा की तरह गैस का डर

भीतरी शहर से हाथीपोल, देहली गेट होकर नटराज गली, सूरजपोल, सेवाश्रम व आगे मनवा खेड़ा तक थी पुरानी लाइन 
 
शहर में जहाँ पुरानी नाकारा सीवर लाइने, वँहा गड़िया देवरा की तरह गैस का डर
पुरानी लाइनों को पूरी तरह पाटना जरूरी 
 

उदयपुर। झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति व गांधी मानव कल्याण समिति के दल ने रविवार को गड़िया देवरा क्षेत्र का दौरा किया जंहा दो मेनहोल से गैस निकलना जारी था। दल ने स्वास्थ्य अधिकारी नरेंद्र श्रीमाली के साथ मौके को देखा व समाधान पर चर्चा की।

डॉ अनिल मेहता ने कहा कि वर्ष 1980 में डाली गई तथा अब अनुपयोगी हो चुकी सीवर लाइन में जमा गंदगी के सड़ने से बन रही मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया गैस की निकासी का एक उदाहरण गड़िया देवरा के दो मेनहोल है। शहर में जंहा जंहा ये पुरानी लाइन है, वँहा यही स्थिति होने की आशंका है।

मेहता ने कहा कि भीतरी शहर से हाथीपोल, देहली गेट होकर नटराज गली, सूरजपोल, सेवाश्रम व आगे मनवा खेड़ा तक 1980 के आसपास सीवर बिछाई गई थी।। शक्तिनगर व अशोक नगर से लेकर यूनिवर्सिटी तक भी कुछ लाइने डाली गई थी। पुरानी नाकारा हो चुकी सीवर लाइनों के मेनहोल सड़कों के नीचे दब गए हैं। वेंटीलेशन की व्यवस्था खत्म हो गई है। मेहता ने कहा कि पुरानी सीवर व्यवस्था निर्धारित तकनीक विधि से पूरी तरह पाटी नही गई है। जिन भी क्षेत्रों में पुरानी लाइन अभी भी है, वँहा संभावना है कि गड़िया देवरा की तरह गैस बन रही हो। और, जगह मिलने पर ये ज्वलनशील गैसे बाहर निकलना प्रारंभ कर दे।

झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि वर्ष 2000 से 2005 के मध्य नीरी योजना के तहत झील क्षेत्र में सीवर लाइने बिछाई गई थीं। हाल ही में स्मार्ट सिटी व अमृत योजना के तहत नया सीवर सिस्टम बन रहा है। गणगौर घाट से गाड़िया देवरा तक नई लाइने डालने में पुरानी लाइनों के मेनहोल सड़क के नीचे दब गये हैं। पुरानी लाइन में कुछ मात्रा में झील के पानी का रिसाव है। पालीवाल ने कहा कि जो गंदगी अंदर है वो मीथेन गैस बना रही है। यही गैसे तेजी से बाहर निकल रही है।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि निगम व प्रन्यास को एक वृहत अभियान चला कर सम्पूर्ण पुरानी लाइन को उपयुक्त विधि से पाट देना चाहिए। वरना, हमेशा गैस रिसाव व आग का खतरा बना रहेगा। पर्यावरणविद पल्लब दत्ता ने कहा कि यदि किसी घर का इस पुरानी लाइन से संबंध है तो यह भी डर है कि ये विषैली गैसे ऐसे घरों में घुस जाए। पल्लब दत्ता सहित कुशल रावल व मोहन सिंह चौहान ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जानलेवा गैसों के बीच निगम के सफाईकर्मी बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था, मास्क, दस्ताने के काम कर रहे हैं।

इस अवसर पर श्रमदान कर सफाई भी की गई। श्रमदान में देवराज सिंह, क्रुणाल कोष्ठी सहित स्थानीय युवाओं ने भाग लिया।
 

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