21वें सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव का शुभारम्भ


21वें सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव का शुभारम्भ

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने न केवल राजाओं बल्कि आम लोगों को भी अपने उपदेशों से लाभान्वित किया जिससे गोविन्द गुरु जैसे अनेकों समाज सुधारकों को एक नई दिशा एवं ऊर्जा प्राप्त हुई। स्वामीजी ने तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को गोवध पर प्रतिबंध लगाने हेतु हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से अधिनियम बनाने के लिए कहा। इसका उल्लेख उन्होंन

 

21वें सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव का शुभारम्भ

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने न केवल राजाओं बल्कि आम लोगों को भी अपने उपदेशों से लाभान्वित किया जिससे गोविन्द गुरु जैसे अनेकों समाज सुधारकों को एक नई दिशा एवं ऊर्जा प्राप्त हुई। स्वामीजी ने तत्कालीन महारानी विक्टोरिया को गोवध पर प्रतिबंध लगाने हेतु हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से अधिनियम बनाने के लिए कहा। इसका उल्लेख उन्होंने अपने लघु ग्रन्थ गो करुणानिधि में किया। उनके द्वारा गुलाबबाग स्थित नवलखा महल में लिखित सत्यार्थ प्रकाश एक आदर्श आचार संहिता के रूप में हमारा मार्गदर्शन करता है। इसमें मनुष्य मात्र को अपने कर्तव्य, अकर्तव्य, धर्म-अधर्म, भक्ष्य-अभक्ष्य का सम्यक बोध होता है। ये विचार शनिवार को 21वें सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर सिक्किम के राज्यपाल महामहिम गंगाप्रसादजी ने व्यक्त किये।

उन्होंने कहा कि दयानंदजी ने हिन्दी भाषा को सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का एकमात्र उपाय माना। उन्हीं का प्रभाव था कि मेवाड़ के राजकीय अभिलेखों में देवनागरी लिपि का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। महर्षि का मन्तव्य था कि एक धर्म, एक भाषा, एक समान व्यवहार एवं एक लक्ष्य से ही स्वराज्य की प्राप्ति संभव है।

इससे पूर्व श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास के तत्वावधान में 21वें सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव के प्रात:कालीन आध्यात्मिक सत्र में आचार्य सोमदेव शास्त्री द्वारा यज्ञ सम्पन्न हुआ। मुख्य यजमान राज्यपाल थे। इन्द्रदेव पीयूष द्वारा भजन प्रस्तुत किए गए। आचार्य सोमदेव शास्त्री ने ओ३म् नाम की महिमा का विस्तृत विवेचन करते हुए कहा कि अ,3 एवं म जो कि सृष्टि उत्पत्ति पालन एवं उपसंहार के प्रतीक है, ईश्वर की तीन प्रकार की शक्तियों का वाहक है और यही ओंकार ईश्वर का मुख्य नाम है।

महोत्सव का विधिवत शुभारम्भ राज्यपाल द्वारा ध्वज उत्तोलन के साथ हुआ। इस अवसर पर दयानन्द कन्या विद्यालय, फतहनगर की बालिकाओं द्वारा तलवारबाजी एवं विभिन्न शारीरिक व्यायामों का शौर्य प्रदर्शन किया गया। ध्वज गान पीयूष के नेतृत्व में देश विदेश से उपस्थित सैंकड़ों आर्यजनों की उपस्थिति में किया गया।

वेद सम्मेलन की अध्यक्षता सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के प्रधान सुरेशचन्द्र आर्य ने की। मुख्य अतिथि राज्यपाल महोदय थे। सम्मेलन में अमेठी के डॉ. ज्वलन्तकुमार शास्त्री ने कहा कि भाषा और लिपि से भी वेद प्राचीन है। वैदिक संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है जिसकी पुष्टि भाषा विज्ञान में सार्वभौमिक रूप से होती है। उन्होंने कहा कि वेद ही ऐसे ग्रन्थ हैं जो किसी सम्प्रदाय अथवा मत विशेष का समर्थन किये बिना मानव मात्र के कल्याण की कामना करते हैं। वैदिक धर्म ही ‘आनो भद्रां कर्तवो यन्तु विश्वत:’ के माध्यम से सम्पूर्ण मानव यथा मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन के सर्वांगीण कल्याण की कामना करता है जबकि वेद वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना लिये संपूर्ण मानव मात्र के हितैषी हैं।

स्वस्ति पंथा न्यास, भीनमाल के संस्थापक अध्यक्ष आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक ने सृष्टि रचना में वेदों की भूमिका पर बोलते हुए कहा कि सत्-असत् की स्थिति से पूर्व वेद ही वह प्रेरक शक्ति थी जिसने सृष्टि रचना की उत्पत्ति में परा, पश्यन्ति, मध्यमा एवं वैखरी; ये चार मूल कारण बताए। उन्होंने कहा कि वर्तमान विज्ञान वैखरी एवं मध्यमा तक सीमित है जबकि पश्यन्ति एवं परा दोनों ही उसकी पहुंच से दूर हैं। ये दोनों मस्तिष्क से मन एवं मन से आत्मा तक निर्माण की प्रक्रिया को रेखांकित की जाने वाली शक्तियां हैं।

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उन्होंने कहा कि वेदों में सूत्र रूप में कॉस्मोलॉजी पूर्ण रूप से विद्यमान है। आवश्यकता है प्रयोगों के माध्यम से उन सिद्धान्तों को पुर्नस्थापित करने की। उन्होंने आह्वान किया कि आर्यजन इस महान् कार्य को प्रारम्भ कर पूर्णता तक पहुंचाने में यदि तन-मन-धन से सहयोग करें तो वेदों की वैज्ञानिकता सम्पूर्ण विश्व में निश्चित रूप से सिद्ध की जा सकेगी।

अध्यक्षीय उद्बोधन में सुरेशचन्द्र आर्य ने कहा कि सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा के माध्यम से महर्षि के सिद्धान्तों को तथा वैदिक विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए आर्यजन सतत् प्रयासशील हैं। उन्होंने आगामी 25 से 28 अक्टूबर को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन को अधिकाधिक सफल बनाने के लिए आर्यजनों का आह्वान किया। अतिथियों का स्वागत श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास के अध्यक्ष अशोक आर्य द्वारा किया गया।

इस अवसर पर राज्यपाल महोदय का मेवाड़ी पाग, उपरणा एवं महाराणा प्रताप की प्रतिमा प्रदान कर भावभीना स्वागत किया। संचालन भूपेन्द्र शर्मा ने किया। द्वितीय सत्र में महर्षि दयानन्द उच्च माध्यमिक विद्यालय, फहनगर एवं वैदिक कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय, आबूरोड़ की छात्र-छात्राओं द्वारा मोहक प्रस्तुतियां एवं भजन प्रस्तुत किए गए। अध्यक्षता न्यासी मोतीलाल आर्य ने की। मुख्य अतिथि आर्य समाज, फतहनगर के प्रधान सुरेशचन्द्र मित्तल थे। ब्यावर के अमरसिंह आर्य द्वारा भजन प्रस्तुत किए गए। संचालन आर्य समाज, हिरणमगरी के मंत्री संजय शाडिल्य ने किया।

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