गोल्डन गर्ल की गोल्डन जीत से महका भारत

गोल्डन गर्ल की गोल्डन जीत से महका भारत

देश का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है। भारत की नई ‘उड़नपरी’ 18 वर्षीय असमिया एथलीट हिमा दास ने ऐसा ही करके दिखाया है, उसने अपनी शानदार उपलब्धि से भारतीय ऐथलेटिक्स में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। जब इस गोल्डन गर्ल की अनूठी एवं विलक्षण गोल्डन जीत की खबर अखबारों में शीर्ष में छपी तो सबको लगा कि शब्द उन पृष्ठों से बाहर निकलकर नाच रहे हैं। फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आयोजित आईएएएफ वल्र्ड अंडर-20 ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता है।

 
गोल्डन गर्ल की गोल्डन जीत से महका भारत

देश का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है। भारत की नई ‘उड़नपरी’ 18 वर्षीय असमिया एथलीट हिमा दास ने ऐसा ही करके दिखाया है, उसने अपनी शानदार उपलब्धि से भारतीय ऐथलेटिक्स में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। जब इस गोल्डन गर्ल की अनूठी एवं विलक्षण गोल्डन जीत की खबर अखबारों में शीर्ष में छपी तो सबको लगा कि शब्द उन पृष्ठों से बाहर निकलकर नाच रहे हैं। फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आयोजित आईएएएफ वल्र्ड अंडर-20 ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता है।

देश की अस्मिता पर नित-नये लगने वाले दागों एवं छाई विपरीत स्थितियों की धुंध को चीरते हिमा के जज्बे ने ऐसे उजाले को फैलाया है कि हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। उसने एक ऐसी रोशनी को अवतरित किया है जिससे देशवासियों को प्रसन्नता का प्रकाश मिला है। फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में उसने स्वर्णिम इतिहास रच दिया है। उससे देश का गौरव बढ़ा है।

हिमा विश्व स्तर पर ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतनेवाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं। इससे पहले भारत के किसी भी महिला या पुरुष खिलाड़ी ने जूनियर या सीनियर किसी भी स्तर पर विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड नहीं जीता है। इस तरह हिमा की उपलब्धि उन तमाम ऐथलीटों पर भारी है, जिनके नाम दशकों से दोहराकर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी उषा। इस शानदार उपलब्धि पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी है। मोदी ने कहा, ‘देश के लिए यह बेहद खुशी और गर्व की बात है कि एक किसान की बेटी ने विश्व अंडर-20 चैंपियनशिप की 400 मीटर रिले में गोल्ड जीतकर इतिहास रचा है। हिमा की यह उपलब्धि आने वाले समय में देश के अन्य एथलीटों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।’ इस जीत ने अनेक मिथकों एवं धारणाओं को तोड़ा है। अब हम कह सकते हैं कि भारतीयों में भी वह माद्दा एवं क्षमता है कि वे विश्वस्तरीय ऐथलेटिक्स में अपना परचम फहरा सकते है। अब तक तो हम ओलिंपिक हो या ऐसी ही अन्य विश्वस्तरीय प्रतियोगिताएं, अंतिम दौर में पहुंचकर ही खुशी मनाते रहे हैं। लेकिन अब जीत का सेहरा भी हम अपने सिर पर बांधने में सक्षम हो गये हैं, और इसके लिये हिमा को सलाम।

गोल्डन गर्ल की गोल्डन जीत से महका भारत

यूं तो भारतीय ओलिंपिक संघ की स्थापना 1923 में हुई, लेकिन मानव जाति की शारीरिक सीमाओं की कसौटी समझे जानेवाले इस क्षेत्र में पहली उल्लेखनीय उपलब्धि 1960 के रोम ओलिंपिक में मिली, जब मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहकर कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्धा में 38 वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ भारतीय समय बना रहा। चार वर्ष बाद टोक्यो में गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवें स्थान पर रहे। 1976 में मांट्रियल में श्रीराम सिंह 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचे, जबकि शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। 1980 में मॉस्को में पीटी उषा का आगमन हुआ जो 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहीं।

एशियाई खेलों में कुछ ऐथलीटिक स्वर्ण जरूर हमारे हाथ लगे। 1951 में प्रथम एशियाई खेलों में लेवी पिंटो ने 100 व 200 मीटर, दोनों दौड़ें जीतीं। मनीला में दूसरे एशियाई खेलों में सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ जीती। 1958 में टोक्यो में मिल्खा सिंह ने अपने पदार्पण के साथ ही 200 व 400 मीटर में विजय प्राप्त की। 1970 में बैंकाक में कमलजीत संधू 400 मीटर स्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त कर ऐथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। थाईलैंड में 1978 में गीता जुत्शी ने 800 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

किसी अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स ट्रैक पर भारतीय एथलीट के हाथों में तिरंगा और चेहरे पर विजयी मुस्कान, इस तस्वीर का इंतजार लंबे वक्त से हर भारतीय कर रहा था। खेतों में काम करने वाली हिमा ने यह अनिर्वचनीय खुशी दी है। इस खुशी के लिये हिमा के कोच निपुण भी बधाई के पात्र है। क्योंकि निपुण को ही हिमा की इस सफलता का श्रेय जाता है। उन्होंने ही हिमा के माता-पिता से बातचीत की और उन्हें कहा कि हिमा के गुवाहाटी में रहने का खर्च वे खुद उठायेंगे, बस आप उसे बाहर जाने की मंजूरी दें। इसके बाद वे हिमा को बाहर भेजने के लिए तैयार हो गए। इस तरह हिमा की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। उसे अच्छे जूते भी नसीब नहीं थे। छोटे-से गांव ढिंग में रहने वाली हिमा 6 बच्चों में सबसे छोटी है। लड़कों के साथ खेतों में फुटबाॅल खेलने वाली हिमा ने वह कर दिखाया, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। फुटबॉल में खूब दौड़ना पड़ता था, इसी वजह से हिमा का स्टैमिना अच्छा बनता रहा, जिस वजह से वह ट्रैक पर भी बेहतर करने में कामयाब रहीं।

हमारे देश में ऐथलेटिक्स को लेकर कभी भी उत्साहपूर्ण वातावरण नहीं बन पाया। प्रतिभावान खिलाड़ियों को औसत दर्जे की ट्रेनिंग के साथ शुरुआत करनी पड़ी। खेल संघ को मिलनेवाली राशि का सही इस्तेमाल भी नहीं होता था। खेलों के साथ हो रही इन विडम्बनापूर्ण स्थितियों से हमें जल्दी उबरना होगा और इसकी पहली आजमाइश 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में हिमा दास के साथ ही करनी होगी। क्योंकि उसने अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का लौहा मनवाया है, उसने कठोर श्रम किया, बहुत कड़वे घूट पीये है तभी वह सफलता की सिरमौर बनी हैं। वरना यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं।

एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। पदक बहुतों को मिलते हैं पर सही खिलाड़ी को सही पदक मिलना खुशी देता है। यह देखने में कोरा एक पदक है पर इसकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही अन्तर्राष्ट्रीय ऐथलेटिक्स में भारत की साख को बढ़ाया है। ऐथलेटिक्स की यह उपलब्धि दरअसल हिमा की उपलब्धि है, युवाओं की आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने की जीत है। हिमा ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके अपना रास्ता बनाया। दरअसल समाज में खेल को लेकर धारणा बदल रही है। सरकार भी जागरूक हुई है। कई नई अकादमियां खुलीं हैं जिनका युवाओं को फायदा मिल रहा है। खेलों को प्रोत्साहन देने के प्रयासों में और गति लाने की जरूरत है। खेलों के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर देशभर में फैलाना होगा। नौकरशाही संबंधी बाधाएं दूर करनी होंगी, वास्तविक खिलाड़ियों के साथ होने वाले भेदभाव को रोकना होगा, खेल में राजनीति की घुसपैठ पर भी काबू पाना होगा, तभी एशियाई खेलों और ओलिंपिक में भी हमें झोली भरकर मेडल मिल सकेंगे।

हमारे देश में खेलों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। जब हम विश्व गुरु बनने जा रहे हैं तो उसमें खेलों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। क्योंकि खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एक एकाग्रता का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में अनूठा प्रदर्शन करने वाली हिमा भी आज माप बन गयी हैं और जो माप बन जाता है वह मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ स्थिति है। यह अनुकरणीय है। जो भी कोई मूल्य स्थापित करता है, जो भी कोई पात्रता पैदा करता है, जो भी कोई सृजन करता है, तो वह देश का गौरव बढ़ाता है, जो गीतों में गाया जाता है, उसे सलाम। हिमा शिखर पर पहुंची है तो उस शिखर को छूने के प्रयास रुके नहीं। ऊंचा उठने के लिए असीम विस्तार है।

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