पत्रकार में राज व समाज की आंख में आँख डालकर देखने का साहस होना चाहिए: मृणाल पांडे


पत्रकार में राज व समाज की आंख में आँख डालकर देखने का साहस होना चाहिए: मृणाल पांडे

प्रसिद्ध पत्रकार मृणाल पांडे ने गुरुवार को रमा मेहता मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हिंदी पत्रकारिता की मेरी यात्रा विषयक उद्बोधन किया
 
mrunal pandey

उदयपुर 23 सितंबर 2021। पत्रकार में राज व समाज की आंख में आँख डालकर देखने का साहस होना चाहिए। बदलते परिवेश में पत्रकारों को भाषा, तकनीक  इत्यादि से अपने ज्ञान को अद्यतन करना चाहिए तथा आमजन से संवाद स्थापित करते हुए एक लोकतांत्रिक समाज की स्थापना में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। ये विचार प्रसिद्ध पत्रकार मृणाल पांडे ने गुरुवार को रमा मेहता मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हिंदी पत्रकारिता की मेरी यात्रा विषयक उद्बोधन में व्यक्त किये।

कार्यक्रम में  ट्रस्ट की ओर से महिला लेखकों को लेखन ग्रांट प्रदान की गई। देश भर से आये लगभग सवा सौ आवेदनों में से निर्णायक मंडल ने हिंदी में प्रदीपिका सारस्वत, राजस्थानी में प्रेमलता सोनी, उर्दू में शहनाज यूसुफ एवं अंग्रेजी में यशस्वी गौर को ग्रांट के लिए चयनित किया। निर्णायक मंडल में साहित्यकार इरा पांडे, अनुकृति उपाध्याय, अनीस जैदी, मनीषा कुलश्रेष्ठ, नीता गुप्ता, सरवत खान, डॉ वेददान सुधीर व अरविंद आशिया थे।

उल्लेखनीय है कि उदयपुर की रमा मेहता भारतीय विदेश सेवा के 1948 में गठन के पश्चात विदेश सेवा के लिए चुनी गई प्रथम तीन महिलाओं में थी एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार पात्र प्रसिद्ध लेखक व उपन्यासकार थी।  

उनकी 98 वी जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम में मृणाल पांडे ने कहा कि हिन्दी पत्रकारों को अपनी प्रयोगधर्मिता व मौलिकता बढ़ानी होगी। हिंदी पत्रकारों व लेखकों, सांस्कृतिक साक्षरता को व्यापक करते हुए अन्य भारतीय भाषाओं से जोड़ना चाहिये। उन्होंने कहा कि हिन्दी चेनल व प्रिंट मीडिया को भाषा मे शालीनता व शिष्टता का ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा कि राजनीति एवं निजी हस्तक्षेप से पत्रकारिता अपनी पहचान खो रही है। किसी भी अखबार की मूल जान ताजा, व्यवस्थित व प्रामाणिक खबरे व प्रयोगधर्मिता है। पत्रकारों को हिंदी की शब्दावली के ज्ञान को विस्तृत करना चाहिए।

उन्होंने भारत मे हिंदी व भाषाई पत्रकारिता के इतिहास को प्रस्तुत करते हुए पहले पुरुष संपादक ही हुआ करते थे। अखबारों में भी पितृसत्तात्मकता का बोलबाला था। लेकिन धीरे धीरे महिला पत्रकारों व संपादकों की जगह बनी।  टीवी चैनल आने से प्रिंट मीडिया के संपादकों को कम आंका जाने लगा है। हिन्दी अखबारों की स्थिति तो ओर भी खराब हुई है।

उन्होंने डिजिटल मीडिया के खतरों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, अल्गोरिथम से लोगों की जानकारी एकत्र कर उनका प्रोफाईल, रुचि का पता लगा लिया जाता है व फ़िर एक प्रकार की खबरे उन्हें भेजी जाती है।ऐसा होना लोकतंत्र के लिए खतरा है। साथ ही डिजिटलाईजेशन में भाषाई अक्षमता भी बढ रही है। 

उन्होंने कहा कि नवोदित पत्रकारों में बुनियादी शैक्षिक संस्कार होना चाहिये। उनमें  विविध विषयों का ज्ञान, भाषा पर जकड़ व पकड, दूसरों से सीखना और तकनीकी कौशल को जानना बहुत जरूरी है। 

प्रारम्भ में ट्रस्ट के सदस्य व रमा मेहता के पुत्र अजय एस मेहता ने रमा मेहता का जीवन परिचय दिया व ट्रस्ट के उद्देश्यों के बारे में बताया।
 

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