कर्नाटक:त्रिशंकु विधानसभा की सम्भावनाए बीजेपी की बढ़ाएगी मुश्किल, क्षेत्रीय दल तय करेंगे अगली सरकार का चेहर

कर्नाटक:त्रिशंकु विधानसभा की सम्भावनाए बीजेपी की बढ़ाएगी मुश्किल, क्षेत्रीय दल तय करेंगे अगली सरकार का चेहर

सर्वेक्षणों और चुनावी प्रचार को देख कर लगता है किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलना कर्नाटक में आसान नही होगा। दक्षिण के द्वार से प्रवेश करने की बीजेपी की मंशा पर विराम लगता है दिख रहा है तो वही दूसरी ओर अपने मजबूत क्षत्रप सिद्दारमैया के साथ उतरी कोंग्रेस को भी सीटो में नुकसान होता दिख रहा है। पर इस बीच कोई खुश है तो वह है देवगौड़ा, जो किंगमेकर की स्थिति में है। यह साफ है कि उनके बिना या उनके अलावा कोई सरकार नही बना सकता। दिलचस्प बात यह है कि देवगौड़ा ने 18 प्रतिशत दलितों को साधने के लिए मायावती तो मुस्लिमो को रिझाने के लिए ओवैसी से गठबंधन भी किया, जो उनकी रणनीति सफल होती दिखने का एक महत्वपूर्ण कारण है।

 
कर्नाटक:त्रिशंकु विधानसभा की सम्भावनाए बीजेपी की बढ़ाएगी मुश्किल, क्षेत्रीय दल तय करेंगे अगली सरकार का चेहर

सर्वेक्षणों और चुनावी प्रचार को देख कर लगता है किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलना कर्नाटक में आसान नही होगा। दक्षिण के द्वार से प्रवेश करने की बीजेपी की मंशा पर विराम लगता है दिख रहा है तो वही दूसरी ओर अपने मजबूत क्षत्रप सिद्दारमैया के साथ उतरी कोंग्रेस को भी सीटो में नुकसान होता दिख रहा है। पर इस बीच कोई खुश है तो वह है देवगौड़ा, जो किंगमेकर की स्थिति में है। यह साफ है कि उनके बिना या उनके अलावा कोई सरकार नही बना सकता। दिलचस्प बात यह है कि देवगौड़ा ने 18 प्रतिशत दलितों को साधने के लिए मायावती तो मुस्लिमो को रिझाने के लिए ओवैसी से गठबंधन भी किया, जो उनकी रणनीति सफल होती दिखने का एक महत्वपूर्ण कारण है।

चुनावी रण पर एक नजर

यह साफ है कि अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति हुई तो जनता दल (एस) निर्णायक स्थिति में होगी। जनता दल (एस) भी संकेत दे चुकी है कि ऐसी स्थिति में दोनों महत्वपूर्ण दलों को सम्वाद करते वक़्त त्याग करना पड़ेगा, यह त्याग उनके मुख्यमंत्री चेहरे का हो सकता है। ऐसा हुआ तो भाजपा को येदुरप्पा की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पर फिर पानी फिर सकता है वहीँ कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए अमित शाह अपने दावेदार के चेहरे तक को त्यागने को तैयार है। वैसे भी बीजेपी अपनी मजबूत स्थिति का श्रेय अमित शाह के चुनावी प्रबन्धन और योगी आदित्यनाथ के एक महीने पूर्व से चले ताबड़तोड़ प्रचार को देती है। लोकप्रिय चेहरा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में बीजेपी को मजबूत स्थिति में लाने का भी भरपूर प्रयास किया। इतिहास के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ साथ कर्नाटक में वर्तमान की जनहितकारी योजनाओ में असफल होने का पूरा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने में कोई कसर नही छोड़ी। हालांकि मोदीजी के इतिहास के ज्ञान पर उन्हें ट्रोल भी किया गया, जिसका ज्यादा विपरीत असर पड़ता नही दिखा। तो वही दूसरी ओर कांग्रेस के मजबूत नेता सिद्धारमैया प्रचार के केंद्र में रहे, हालांकि चुनाव में राहुल गांधी भी अपनी पूरी ताकत झोंकते नजर आए।

गठबन्धन की स्थिति में जनता दल की निर्णायक भूमिका

किसी भी दल को बहुमत ना मिलने की स्थिति में जनता दल (एस) अहम भूमिका निभाएगा। देवगौड़ा ने इस बार 18 प्रतिशत दलित मतदाता का ध्यान रखते हुए मायावती से गठबन्धन भी किया, जिसका असर कर्नाटक के एक बड़े क्षेत्र पर होने की सम्भावना है। देवगौड़ा का सीधा असर वोक्कालिगा (सवर्ण) होने के साथ मायावती और ओवैसी इस बार अहम सहयोगी की भूमिका में नज़र आये। ऐसे में अगर बीजेपी को देवगौड़ा का साथ मिलना आसान नही होगा, जिसका कारण बनेंगे जनता दल (एस) के सहयोगी मायावती और ओवेसी, जिनके विरोध के केंद्र में बीजेपी और नरेंद्र मोदी होते है। मायावती ऐसे में देवगौड़ा पर कांग्रेस को समर्थन देने पर दबाब बनाएगी, इसके पूरे आसार है।

अगर मायावती का बाहर से समर्थन भी बीजेपी को हुआ तो इसका असर उत्तर प्रदेश में होगा, जहाँ उसका गठबंधन बीजेपी के खिलाफ सपा से है। साफ है बीजेपी के लिए मुश्किल कम नही है, उसके लिए सरकार में आने की संभावना का रास्ता एकमात्र बहुमत ही है।

सिद्दारमैया भी कह चुके है कि वह अपना दावा दलित चेहरे के लिए छोड़ देंगे। ऐसे में उन्होंने एक तीर से दो निशाने मारे है – पहला, त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में देवगौड़ा की शर्तें मानने की स्थिति स्पष्ट और साथी ही दलित वोट बैंक की निर्णायक स्थिति। यह एक कारण साबित हो सकता है को कांग्रेस को जनता दल के समर्थन का।

लिंगायत कार्ड रहा नाकाम

लिंगायत समुदाय का सीधा रुझान येदुरप्पा के साथ ही है। 2013 में जब येदुरप्पा अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े तो उन्हें लगभग 9% वोट मिले थे और बीजेपी को भारी नुकसान हुआ था। बीजेपी ने इसकी भरपाई येदुरप्पा को मुख्यमंत्री दावेदार बनाकर कर ली। सिद्दारमैया सरकार ने लिंगायत को अल्पसंख्यक या विशेष धर्म का दर्जा देकर बीजेपी के वोटबैंक में सेंध मारनी चाही पर सर्वेक्षणों में बीजेपी की स्थिति देखकर यह कहना मुश्किल है कि इसका कोई खास फायदा कांग्रेस को हुआ है। क्योंकि यहाँ बीजेपी के वोट प्रतिशत में काफी इजाफा होता दिख रहा है।

कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ वोट प्रतिशत ज्यादा होने के बावजूद सीट की संख्या कम दर्ज की गयी। ऐसे में लिंगायत मुद्दे पर की गई राजनीति का कितना असर होता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

Views in the article are solely of the author Mr Gaurav Kumar , Central University of Gujrat

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