जलवायु परिवर्तन से सर्दी में पक गया कीकर


जलवायु परिवर्तन से सर्दी में पक गया कीकर
 

तीन माह पहले पका कीकर दे रहा जलवायु परिवर्तन का प्रमाण
 
 
जलवायु परिवर्तन से सर्दी में पक गया कीकर
इस वर्ष नवंबर माह में भी तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक रहने से ऋतु चक्र गड़बड़ा गया है। इससे वृक्ष की फेनोलोजी में परिवर्तन आ गया है। आमतौर पर जंगल जलेबी के फल सर्दियां खत्म होने पर फरवरी माह में लगते हैं और मार्च अप्रेल माह में यह पककर लाल हो जाते हैं। 
 

उदयपुर, 25 दिसम्बर 2019। जलवायु में परिवर्तन से जहां समूचे विश्व में जीवों और वनस्पतियों पर अलग-अलग तरह के परिवर्तन नज़र आ रहे हैं वहीं एक ऐसा ही परिवर्तन उदयपुर शहर में कीकर यानि जंगल जलेबी के पेड़ों पर दिखाई दे रहा है जहां आमतौर पर गर्मियों में पकने वाले कीकर के फल इन दिनों सर्दियों में पके हुए दिखाई दे रहे हैं।

शहर के सूचना केन्द्र के समीप मोहता पार्क के भीतर व फतहसागर की पाल पर स्थित पेड़ों पर इन दिनों कीकर के पके हुए सुर्ख लाल फल देखकर पर्यावरण प्रेमियों को आश्चर्य हो रहा है। प्रकृति परिवर्तन की इस अनोखी घटना को देखकर शहर के पक्षी विद् विनय दवे ने पर्यावरण वैज्ञानिकों से संपर्क साधा और जानकारी जुटाई तो पाया कि असमय ही पके कीकर के फलों का मुख्य कारण जलवायु में परिवर्तन है।

प्रदेश के ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि इस वर्ष नवंबर माह में भी तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक रहने से ऋतु चक्र गड़बड़ा गया है। इससे वृक्ष की फेनोलोजी में परिवर्तन आ गया है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर जंगल जलेबी के फल सर्दियां खत्म होने पर फरवरी माह में लगते हैं और मार्च अप्रेल माह में यह पककर लाल हो जाते हैं। 

उन्होंने बताया कि तापक्रम बढ़ने से वृक्ष ने ऋतु से पहले ही अपने फलों को पैदा कर पकने के संकेत दे दिए जो जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत हैं। यही वजह है कि पेड़ ने सर्दियों की शुरूआत में ही तापमान की अधिकता को भांप कर पेड़ पर फलित कर दिया।

...तो हमारे नीले ग्रह का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा:

उन्होंने बताया कि समय रहते यदि ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु में परिवर्तन के प्रमुख कारकों को नियंत्रित करते हुए हमारे द्वारा पहाड़ों, नदियों, तालाबों, वनों व वन्यजीवों का संरक्षण नहीं किया गया तो हमारे नीले ग्रह का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।    

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