पेट में गांठ को एंडोस्कोपी द्वारा बाहर निकाला
गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डाॅ पंकज गुप्ता ने 52 वर्षीय रोगी के एम्प्यूला (छोटी आंत का आरंभ) पर स्थित 1 सेंटीमीटर गांठ को बिना ओपन सर्जरी मात्र थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपिक एम्पलेक्टोमी से बाहर निकाल स्वस्थ किया। यह सफल प्रक्रिया संपूर्ण राजस्थान में प्रथम गीतांजली हाॅस्पिटल में संभव हो पायी है।
गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डाॅ पंकज गुप्ता ने 52 वर्षीय रोगी के एम्प्यूला (छोटी आंत का आरंभ) पर स्थित 1 सेंटीमीटर गांठ को बिना ओपन सर्जरी मात्र थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपिक एम्पलेक्टोमी से बाहर निकाल स्वस्थ किया। यह सफल प्रक्रिया संपूर्ण राजस्थान में प्रथम गीतांजली हाॅस्पिटल में संभव हो पायी है।
यह गांठ छोटी आंत के आरंभ जहां अग्नाशय एवं पित्त की थैली खुलती है वहां स्थित थी। आमतौर पर ऐसे मामलों में एक बड़ी ओपन सर्जरी की जाती है जिसे विपल्स प्रोसीजर कहते है, जो काफी जटिल होती है क्योंकि इसमें अग्नाशय, छोटी आंत (ड्यूडेनम), पित्ताशय की थैली एवं पित्त नली के प्रथम भाग को हटाया जाता है। तत्पश्चात् शेष बचे सभी अंगों को फिर से एक दूसरे से जोड़ा जाता है जिससे रोगी सामान्य रुप से भोजन खा एवं पचा सके। इस सर्जरी में 7-8 घंटें का समय लगता है तथा इस प्रक्रिया द्वारा इलाज के बाद दो से तीन हफ्ते तक हाॅस्पिटल में भर्ती रहना पड़ता है। वहीं इस रोगी में डाॅ गुप्ता ने मात्र 30 मिनट के ओपीडी प्रोसीजर से ही गांठ को बाहर निकाल दिया एवं स्टेंट डाल दिया। इससे दूसरे दिन ही रोगी को छुट्टी प्रदान कर दी गई।
अब तक इस प्रक्रिया द्वारा इलाज देश के मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद आदि स्थित बड़े हाॅस्पिटलों में ही संभव हो पा रहे थे जिसमें उदयपुर के गीतांजली हाॅस्पिटल ने भी अब अपना नाम दर्ज किया है। क्योंकि गीतांजली हाॅस्पिटल में डायग्नोस्टिक एंडोस्कोपी के साथ-साथ नवीनतम थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपी की सुविधा भी उपलब्ध है जिससे उच्च इलाज संभव हो पा रहे है।
डाॅ गुप्ता ने बताया कि छोटी आंत का छोर जिसे एम्प्यूला कहते है, वहां 4 हिस्सों में ट्यूमर पाए जा सकते है। पहला अग्नाशय, दूसरा पित्ताशय की थैली, तीसरा छोटी आंत एवं चैथा इन सभी अंगों का जंक्शन, जिनका मुख्य रुप से इलाज सर्जरी द्वारा ही संभव होता है। इस मरीज का भी इसी प्रक्रिया द्वारा इलाज किया जाता परंतु सीटी स्केन एवं सोनोग्राफी की जांचों में प्राथमिक अवस्था में ही गांठ का निदान हो गया। रोगी के हित को ध्यान में रखते हुए थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपी द्वारा गांठ को बाहर निकाल स्टेंट डाला गया। तत्तपश्चात् रोगी की बायोप्सी की जांच भी कराई गई जिससे गांठ पूरी तरह से बाहर निकाली गई है या नहीं यह सुनिश्चित किया जा सके।
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ऐसे मामलों में चिकित्सकीय परामर्श एवं उपचार में थोड़ा सा विलम्ब होने पर रोगी की हालत विकट हो सकती है और यह गांठ कैंसर का रुप ले सकती है जिसका उपचार केवल सर्जरी द्वारा ही किया जा सकता है। विप्लस प्रोसीजर भी विशेष प्रशिक्षण प्राप्त आॅन्को सर्जन ही कर सकते है जो गीतांजली हाॅस्पिटल के कैंसर सेंटर में मौजूद है। इस रोगी का इलाज इस प्रक्रिया द्वारा इसलिए भी संभव हो पाया क्योंकि किसी भी आपातकालीन व विकट स्थिति में गीतांजली कैंसर सेंटर के आॅन्को सर्जन की टीम को बैक अप में तैयार रखा गया था। एक ही छत के नीचे अनुभवी चिकित्सकों के विशाल दल की उपस्थिति के कारण सफलतापूर्वक इलाज संभव हो पाया। इस प्रक्रिया में डाॅ गुप्ता के साथ एनेस्थेटिस्ट डाॅ ललिता जींगर एवं टेक्नीशियन संजय सोमरा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। डाॅ गुप्ता ने यह भी कहा कि यदि यह गांठ 5 सेंटीमीटर या उससे अधिक आकार की होती या अंदर फैली हुई होती तो विपल्स प्रोसीजर द्वारा इलाज ही एकमात्र विकल्प रह जाता।
रोगी गंगा देवी गत पिछले काफी समय से पेट में दर्द से परेशान थी। गीतांजली हाॅस्पिटल में डाॅ गुप्ता से परामर्श एवं इलाज के बाद अब वह बिल्कुल स्वस्थ है।
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