पीलिया एवं खून की कमी के साथ जन्मे नवजातों के जोड़े को GMCH में मिला पुनः जीवनदान

पीलिया एवं खून की कमी के साथ जन्मे नवजातों के जोड़े को GMCH में मिला पुनः जीवनदान
 

 
पीलिया एवं खून की कमी के साथ जन्मे नवजातों के जोड़े को GMCH में मिला पुनः जीवनदान
हाल ही में गीतांजली हॉस्पिटल के नवजात शिशु इकाई में कुछ ही घंटे के नवजात जोड़े का सफल इलाज करके उन्हें नया जीवन प्रदान किया गया।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर में कोरोना माहमारी से जुड़े सभी नियमों का गंभीरता से पालन करते हुए आने वाले रोगियों के जटिल से जटिल ऑपरेशन व इलाज किये जा रहे हैं। हाल ही में गीतांजली हॉस्पिटल के नवजात शिशु इकाई में कुछ ही घंटे के नवजात जोड़े का सफल इलाज करके उन्हें नया जीवन प्रदान किया गया। इलाज को सफल बनाने वाली टीम में नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ब्रजेश झा, डॉ. महिमा अग्रवाल, डॉ. पार्थ मिलन प्रसाद, नर्सिंग स्टाफ व रेजिडेंट डॉक्टर्स शामिल हैं। 

क्या था मसला?

ट्विन्स नवजातों के पिता ने जानकारी देते हुए बताया कि उनकी पत्नी की डिलीवरी जालोर में होने के बाद दोनों बच्चों की स्थिति ठीक नही थी एक बच्चे को पीलिया और दूसरे में खून की कमी थी ऐसे में स्थानीय डॉक्टर की सलाह से  नवजातों के जोड़े को गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर में सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लेस होने की वजह से जाने की सलाह दी। 

डॉ. ब्रजेश झा ने बताया कि (ट्विन-1) नवजात का मात्र 28 घंटे पश्चात पीलिया का लेवल 28 एम.जी/ डी.एल तक पहुँच गया जिसका कि इलाज खून को बदल कर किया जाना आवश्यक था, चूँकि नवजात का पीलिया बहुत बढ़ चुका था और साथ ही  ब्रेन डैमेज होने का खतरा बढ़ रहा था। जन्म के 31 घंटे के पश्चात नवजात को गीतांजली होस्पिटल में भर्ती किया गया, नवजात का पीलिया लेवल 35 एम.जी/ डी.एल तक पहुंच चुका था, चार घंटे के भीतर नवजात के खून को बदल दिया गया और खून बदलते ही पीलिया का लेवल 19 एम.जी/ डी.एल आ गया था परन्तु फिर भी नवजात को पीलिया का असर हो चुका था और उसका असर बच्चे के दिमाग पर भी हो चुका था ऐसे में फिर से बच्चे के खून को बदला गया फिर बच्चे का पीलिया का लेवल 9.5 एम.जी/ डी.एल तक आ पंहुचा जोकि फिर पुनः नही बढ़ा। इस बच्चे के एम.आर.आई की गयी इसमें बच्चे के दिमाग पर प्रभाव का पता चल रहा है, अब बच्चे के दिमाग पर कितना असर होगा इसके लिए बच्चे की एम. आर.आई समयनुसार की जाएगी|इस बीमारी का जो सबसे बड़ा नुकसान कानों को झेलना पड़ता है, बच्चे की सुनने की शक्ति कम हो जाती है| परन्तु बच्चे को समय रहते इलाज मिलने की वजह से बच्चे के कान सुरक्षित है।    

(ट्विन-2) दूसरे नवजात में भर्ती के समय खून की कमी थी, हिमोग्लोबिन का लेवल 10.4 एम.जी/ डी.एल था जोकि बहुत ही कम था ऐसे में बच्चे को खून चढ़ाया गया। बच्च्चे में खून की कमी गर्भाशय के अन्दर ही शुरू हो गयी थी चूँकि एक बच्चे का खून दूसरे बच्चे के शारीर में जा रहा था, जिस वजह से एक बच्चे में खून की मात्रा बढ़ गयी व दूसरे में खून की कमी हो गयी थी। 

आज दोनों ट्विन्स नवजातों को स्वस्थ स्तिथि में हॉस्पिटल द्वारा छुट्टी दी जा रही है दोनों बच्चे स्वस्थ हैं माँ का दूध पी रहे हैं और साथ ही इनका वजन भी बढ़ रहा है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गीतांजली हॉस्पिटल में नवजात शिशु इकाई (एन.आई.सी.यू), शिशु गहन चिकित्सा इकाई (पी.आई.सी.यू) वार्ड में सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लेस है| गीतांजली मेडिसिटी पिछले 13 वर्षों से सतत् रूप से मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में परिपक्व होकर चुर्मुखी उत्कृष्ट चिकित्सा सेंटर बन चुका है| यहाँ एक ही छत के नीचे जटिल से जटिल ऑपरेशन एवं प्रक्रियाएं निरंतर रूप से कुशल डॉक्टर्स द्वारा की जा रही हैं। 

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