सकारात्मक सोच से ही होगा मेवाड़ में टाईगर का पुनर्वास


सकारात्मक सोच से ही होगा मेवाड़ में टाईगर का पुनर्वास

राजस्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ एन सी जैन ने कहा है कि मेवाड़ में टाईगर पुनर्वास की प्रबलतम संभावनाएं है परंतु आमजनों में टाईगर के प्रति सकारात्मक सोच के विकास के माध्यम से ही यह प्रयास सफल होंगे।

 

सकारात्मक सोच से ही होगा मेवाड़ में टाईगर का पुनर्वास

उदयपुर 29 जुलाई 2019 राजस्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ एन सी जैन ने कहा है कि मेवाड़ में टाईगर पुनर्वास की प्रबलतम संभावनाएं है परंतु आमजनों में टाईगर के प्रति सकारात्मक सोच के विकास के माध्यम से ही यह प्रयास सफल होंगे। डॉ जैन सोमवार को यहां सूचना केन्द्र में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में इंटरनेशनल टाईगर डे के मौके पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि क्षेत्र में स्थानीय वनस्पति में तेजी से विनाश हो रहा है और इससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है। इसका दुष्प्रभाव वन्यजीवों पर हो रहा है ऐसी स्थिति में यहां से विदेशी खरपतवार को हटाने और स्थानीय वनस्पति को पनपाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आमजनों को वनों और वन्यजीवों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण जाग्रत करना होगा वहीं यह भी अहसास कराना होगा कि ये उनके लिए बड़े लाभदायक हैं। जैन ने जनजाग्रति में मीडिया को अपनी सकारात्मक भूमिका निभाने का भी आह्वान किया।

टाईगर के लिए मुफिद है मेवाड़ – भटनागर

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक राहुल भटनागर ने कहा कि मेवाड़ पूर्णरूप से टाईगर के पुनर्वास के लिए मुफिद है और हाल ही में सरकार ने टाईगर के पुनर्वास के लिए वैकल्पिक स्थानों के चयन की घोषणा की है ऐसे में वन विभाग द्वारा पूर्व में भेजे गए कुंभलगढ़ और रावली टाडगढ़ क्षेत्र के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा हैए यह सराहनीय प्रयास है। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा इंटरनेशनल टाईगर डे पर जारी किए गए आंकड़ों के बारे में बताया कि राजस्थान में वर्ष 2006 में कैमेरा ट्रेप में 32 टाईगर चिह्नि थे वहीं वर्ष 2010 में 36, वर्ष 2014 में 45 तथा वर्ष 2018 में 69 टाईगर चिह्नित हुए है जो कि टाईगर की वंशवृद्धि को बता रहे हैं।

भोजन उपलब्ध हो तो एक साथ कई टाईगर बस सकते हैं . शेखावत

राजस्थान टाईगर प्रोजेक्ट से जुड़े टाईगर एक्सपर्ट रघुवीरसिंह शेखावत ने सरिस्का अभयारण्य के अनुभवों के आधार पर कहा कि 75 से 100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र 10 टाईगर के लिए उपयुक्त होगा यदि उसमें पर्याप्त मात्रा में उचित भोजन की उपलब्धता हो। उन्होंने इसके लिए हमारे मॉनिटरिंग सिस्टम को तकनीकी रूप से अत्यधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की। शेखावत ने कहा कि एलपीजी के कारण जंगलों के विनाश को रोकने में मदद मिली है।

मुकुन्दरा से कम नहीं है मेवाड़ – राठौड़

कार्यशाला को संबोधित करते हुए राजसमंद के उप वन संरक्षक फतेहसिंह राठौड़ ने कहा कि मेवाड़ क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से मुकुन्दरा हिल से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियोंए अधिकारियोंए होटेलियर्स और प्रबुद्धजनों के समन्वित प्रयासों से कुंभलगढ़ में टाईगर का पुनर्वास किया जा सकता है। इस दौरान उन्होंने वन विभाग द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी।

एक्सपर्ट्स बोले. टाईगर पुनर्वास समय की आवश्यकता

कार्यशाला में वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ सतीश शर्मा ने वन्यजीवों के विनाश और संरक्षण की कालावधि के बारे में जानकारी दी तथा बताया कि शाकाहारी जीवों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि के बाद ही टाईगर का पुनर्वास संभव है। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ बताते हैं कि जयसमंद में सांभर की संख्या इतनी अधिक थी कि मार्ग से गुजरना मुश्किल होता था।\

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राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के संस्थापक डॉ एसपी मेहरा ने वन्यक्षेत्र में जल संरक्षण कार्यों की आवश्यकता जताई और कहा कि इससे वन्यजीवों का संरक्षण भी हो पाएगा। रिटायर्ड उप वन संरक्षक राजेन्द्रसिंह चौहान ने रणथंभोर में कार्य अनुभवों के आधार पर कहा कि टाईगर एकांत पसंद होता है और वन्यक्षेत्र में चौपायों के विचरण से टाईगर की वंश वृद्धि प्रभावित हो सकती है।

राजसमंद से आए पर्यावरणप्रेमी डॉ एकलिंगनाथ झाला ने कहा कि पूर्व में राजसी आज्ञा के बिना टाईगर का शिकार नहीं होता था। उन्होंने वन विभाग द्वारा पर्यावरण विषयक पेंटिंग प्रतियोगिताओं के चित्रों को विभिन्न होटलों में लगवाने के लिए उपलब्ध कराए जाए और इसके बदले में होटलों से निश्चित राशि पर्यावरण संरक्षण कार्यों के लिए उपलब्ध कराई जावे।

इन्होंने भी दिए सुझाव

कार्यशाला में रिटायर्ड डीएफओ वीएस राणा प्रतापसिंह चौहान व लायक अली खान, वन्यजीव विशेषज्ञ प्रदीप सुखवाल, देवेन्द्र मिस्त्री, अनिल रोजर, विनय दवे, प्रदीप कौशिक, प्रीति मुर्डिया, पुष्पा खमेसरा, विश्वप्रतापसिंह चुण्डावत सहित बड़ी संख्या में विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए। कार्यशाला का संचालन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अरूण सोनी ने किया जबकि आभार प्रदर्शन की रस्म जनसंपर्क उपनिदेशक कमलेश शर्मा ने अदा की।

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