लिवर में ब्लाॅकेज को खोला, नहीं तो कराना पड़ता लिवर ट्रांसप्लांट

लिवर में ब्लाॅकेज को खोला, नहीं तो कराना पड़ता लिवर ट्रांसप्लांट

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डाॅ सीताराम बारठ ने 26 वर्षीय युवक के ‘हेपेटिक वेन स्टेंटिंग’ कर स्वस्थ किया। मंदसौर निवासी दिनेश (परिवर्तित नाम) पेट फूलने एवं बार-बार पेट में पानी भरने की शिकायत के साथ गीतांजली हाॅस्पिटल में परामर्श के लिए आया था। सोनोग्राफी एवं सीटी स्केन की जांचों से लिवर से अशुद्ध रक्त ले जानी वाली नसें, जिन्हें हेपेटिक वेन्स कहा जाता है, तीनों में ब्लाॅकेज पाया गया। इस जटिल ब्लाॅकेज के कारण केवल एंडो वेसक्यूलर प्रक्रिया द्वारा इलाज संभव नहीं था। इसलिए डाॅ बारठ द्वारा एंडो वेसक्यूलर एवं हेपेटिक वे

 

लिवर में ब्लाॅकेज को खोला, नहीं तो कराना पड़ता लिवर ट्रांसप्लांट

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डाॅ सीताराम बारठ ने 26 वर्षीय युवक के ‘हेपेटिक वेन स्टेंटिंग’ कर स्वस्थ किया। मंदसौर निवासी दिनेश (परिवर्तित नाम) पेट फूलने एवं बार-बार पेट में पानी भरने की शिकायत के साथ गीतांजली हाॅस्पिटल में परामर्श के लिए आया था। सोनोग्राफी एवं सीटी स्केन की जांचों से लिवर से अशुद्ध रक्त ले जानी वाली नसें, जिन्हें हेपेटिक वेन्स कहा जाता है, तीनों में ब्लाॅकेज पाया गया। इस जटिल ब्लाॅकेज के कारण केवल एंडो वेसक्यूलर प्रक्रिया द्वारा इलाज संभव नहीं था। इसलिए डाॅ बारठ द्वारा एंडो वेसक्यूलर एवं हेपेटिक वेन स्टेंटिंग (एंजियोप्लास्टी) साथ में की गई जिससे रोगी को तुरंत आराम मिल गया।

इस 1 घंटें की प्रक्रिया में बाहर से ही बहुत ही छोटा पंक्चर (छेद) लिवर में किया गया जिससे लिवर में स्टेंट वायर को अंदर डाला गया और ब्लाॅकेज को खोल दिया गया। इस प्रक्रिया द्वारा इलाज काफी प्रभावी, कम लागत एवं कम जटिल होता है। सामान्यतः ऐसे मामलों में लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है परंतु डाॅ बारठ द्वारा दिए गए उपचार से रोगी अब बिल्कुल स्वस्थ है एवं पेट में पानी भरने की शिकायत से निजात पा चुका है।

डाॅ बारठ ने बताया कि लिवर की नसों में ब्लाॅकेज की इस बीमारी को ‘बड चियरी सिंड्रोम’ कहते है। यह उन लोगों में ज्यादा पाई जाती है जिनमें खून के थक्के बनने की परेशानी होती है। ऐसे लोगों में स्वतः ही खून के थक्के बनने शुरु हो जाते है जो शरीर की कई नसों में ब्लाॅकेज की परेशनी कर देते है।

रोगी ने बताया कि बार-बार पेट में पानी भरने के कारण उसे हर हफ्ते अस्पताल में भर्ती होकर पेट से पानी निकलवाना पड़ता था। अहमदाबाद के निजी हाॅस्पिटल में भी उसका इलाज दवाईयों द्वारा चल रहा था परंतु आराम न पड़ने पर वह गीतांजली हाॅस्पिटल में डाॅ बारठ से परामर्श के लिए आया।

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गीतांजली हाॅस्पिटल के सीईओ प्रतीम तम्बोली ने कहा कि ‘‘गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल में कार्यरत डाॅक्टर्स अपने रोगियों के लिए सबसे श्रेष्ठ एवं उचित उपचार का चयन करते है जो रोगियों के हित के साथ-साथ उनके आने वाले निकट भविष्य में भी उन्हें कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी न होने के उद्देश्य के साथ होता है। साथ ही क्रियान्वित डाॅक्टर्स हर रोगी के लिए इनोवेशन एवं वैश्विक स्तर पर मौजूद उपचार को उपलब्ध कराने की ओर सदा अग्रसर रहते है।’’

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