लोक कलाओं पर थिरके लोग, झंकार ने समां बांधा
शिल्पग्राम में कल रविवार को उत्सव के आखिरी दिन लोक कलाओं की धमाकेदार प्रस्तुतियों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की समवेत ध्वनि की अनुगूंज के साथ रविवार को सम्पन्न हुआ। अंतिम सांझ में रंगमंचीय कार्यक्रम में दर्शक दीर्घा कला रसिकों से खचाखच भरी नज़र आई। रंगमंच पर सबसे पहले आंगी गैर की रक्तिम आभा ने राजस्थानी संस्कृति का सलोना रूप दिखाया। इसके बाद मांगणियार लोक गायकों ने अपने गायन की तान छेड़ी।
शिल्पग्राम में कल रविवार को उत्सव के आखिरी दिन लोक कलाओं की धमाकेदार प्रस्तुतियों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की समवेत ध्वनि की अनुगूंज के साथ रविवार को सम्पन्न हुआ। अंतिम सांझ में रंगमंचीय कार्यक्रम में दर्शक दीर्घा कला रसिकों से खचाखच भरी नज़र आई। रंगमंच पर सबसे पहले आंगी गैर की रक्तिम आभा ने राजस्थानी संस्कृति का सलोना रूप दिखाया। इसके बाद मांगणियार लोक गायकों ने अपने गायन की तान छेड़ी।
लोक कलाओं की प्रस्तुति की अंतिम शाम पंजाब के भांगड़ा नर्तकों, गुजरात के सिद्दी धमाल नर्तकों, पुणे की लावणी नृत्यांगनाओं तथा राजस्थान की कालबेलिया नृत्यांगनाओं ने जहां अपनी नृत्यु प्रस्तुति से शाम का स्मरणीय बनाया वहीं असम की बालाओं ने पेंपा की टेर व गोगाना व ढोलकी की थाप पर अपनी कमर की लोच से दर्शकों पर जादू सा कर दिया।
आखिरी दिन आखिरी प्रस्तुति थी लोक वाद्यों की ‘झंकार’ जिसमें कमायचा, सिन्धी सारंगी, मोरचंग, चैतारा, चिमटा, ढोल, थाली, मटका, पुंग ढोल चोलम, ढफ, नगाड़ा, बांसुरी, तुतारी, नाल, ढोलकी, मुगरवान, ताशा, निसान, नादस्वरम्, तविल, गिड़दा, पम्बई, मुरली, खड़ताल आदि लोक वाद्यों की ध्वनियाँ समाहित थी। कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढ़ा द्वारा संकल्पित इस प्रस्तुति में लयकारी का प्रयोग कलात्मक ढंग से किया गया। जिसमें नाल, ढोलकी, ढोलक, मुगरवान, नगाड़ा, भपंग की जुगलबंदी व उनकी सवाल जवाब दर्शकों को खूब रास आये।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक फुरकान ख़ान ने उत्सव को सफल बनाने में सहयोग करने वाले विभागों जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, परिवहन विभाग, नगर विकास प्रन्यास, नगर निगम, अजमेर विद्युत वितरण निगम, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग आदि के प्रति आभार प्रदर्शन किया।
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