प्लास्टिक कचरा खतरनाक, बचने के लिए समन्वित प्रयास जरूरी

प्लास्टिक कचरा खतरनाक, बचने के लिए समन्वित प्रयास जरूरी

उदयपुर की झीलों व आयड़ नदी में भारी मात्रा में प्लास्टीक पॉलीथिन कचरे का विसर्जन होता है। यह कचरा विषैला प्रकृति का है जिसके गंभीर दुष्प्रभाव है।पर्यावरण दिवस 5 जून से व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक पॉलीथिन के न्यूनतम उपयोग का संकल्प लेकर उदयपुर को प्लास्टिक के विषैले प्रभावों से बचाया जा सकता है। यह विचार रविवार को झील संवाद में व्यक्त किये गए। संवाद पूर्व श्रमदान कर पीछोला बारी घाट से प्लाटिक कचरे व खरपतवार को हटाया गया। श्रमदान में पल्लब दत्ता, राम लाल गहलोत, द्रुपद सिंह, रमेश चंद्र राजपूत, मोहन सिंह चौहान, दुर्गा शंकर पुरोहित, इस्माइल अली दुर्गा, निष्ठा जैन, बंटी कुमावत, तेज शंकर पालीवाल, नंदकिशोर शर्मा, अनिल मेहता ने भाग लिया।

 
प्लास्टिक कचरा खतरनाक, बचने के लिए समन्वित प्रयास जरूरी

उदयपुर की झीलों व आयड़ नदी में भारी मात्रा में प्लास्टीक पॉलीथिन कचरे का विसर्जन होता है। यह कचरा विषैला प्रकृति का है जिसके गंभीर दुष्प्रभाव है।पर्यावरण दिवस 5 जून से व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक पॉलीथिन के न्यूनतम उपयोग का संकल्प लेकर उदयपुर को प्लास्टिक के विषैले प्रभावों से बचाया जा सकता है।

यह विचार रविवार को झील संवाद में व्यक्त किये गए। संवाद पूर्व श्रमदान कर पीछोला बारी घाट से प्लाटिक कचरे व खरपतवार को हटाया गया। श्रमदान में पल्लब दत्ता, राम लाल गहलोत, द्रुपद सिंह, रमेश चंद्र राजपूत, मोहन सिंह चौहान, दुर्गा शंकर पुरोहित, इस्माइल अली दुर्गा, निष्ठा जैन, बंटी कुमावत, तेज शंकर पालीवाल, नंदकिशोर शर्मा, अनिल मेहता ने भाग लिया।

संवाद में झील संरक्षण समिति के सहसचिव डॉ अनिल मेहता ने कहा कि प्लास्टिक कई सहूलियतें प्रदान करता है। पॉलीथिन केरी बेग से लेकर हर स्तर पर उपयोग में लाई जा रही अधिकांश वस्तुएं प्लास्टिक की है। और इसी कारण भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। देश मे प्रतिदिन पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। इसमें से एक तिहाई से ज्यादा कचरा झीलों, नदियों में पंहुच गंभीर खतरे पैदा कर रहा है। प्लास्टिक की अधिकतम रीसाइक्लिंग, सीमेंट निर्माण भट्टियों व सड़क निर्माण जैसे कार्यों में प्रयोग तथा व्यक्तिगत स्तर पर न्यूनतम उपयोग से इस विभीषिका से बचा जा सकता है।

झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि पर्यटन उदयपुर का एक बड़ा आर्थिक स्त्रोत है लेकिन पर्यटन झीलों में प्लास्टिक कचरे को बढ़ा रहा है। वंही आम जन से झीलों में पॉलीथिन का भारी मात्रा में विसर्जन हो रहा है। इससे झीलों के पर्यावरण तंत्र को गंभीर खतरा पंहुच रहा है। उदयपुर में पर्यटन को पर्यावरणीय दृष्टि से अनुशासित करने के लिए होटल व गेस्ट हाउस संचालकों को पहल करनी चाहिए।

गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि प्लास्टिक पॉलीथिन कचरा एक सामाजिक समस्या बन चुकी है। हमारे घर प्लास्टिक पॉलीथिन से भरे पड़े है। हमारी हर सामाजिक गतिविधि में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। अतः इस समस्या का समाधान भी सामाजिक स्तर पर निकलेगा। इसकी शुरुआत सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमो में प्लास्टिक पॉलीथिन के सीमित उपयोग से की जा सकती है ।

चिकित्सक डॉ निष्ठा जैन ने कहा कि प्लास्टिक के विषैले तत्व इंसान में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं । इससे बचने के लिए आम जन को प्लास्टिक के खतरों से अवगत कराना होगा।

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