राजस्थानी नाट्य समारोह नाटक ‘म्है राजा थे प्रजा‘

राजस्थानी नाट्य समारोह नाटक ‘म्है राजा थे प्रजा‘

नाटक‘‘म्है राजा थे प्रजा‘’ की कहानी हर युग केे राजा जैसा एक भोग विलासी, सनकी और निर्दयी राजा सरदार सिंह के इर्द-गिर्द घुमती है जो अपनी प्रजा की समस्याओं से अनभिज्ञ, लोभी और चापलूस दरबारियों से घिरा ह

 

राजस्थानी नाट्य समारोह नाटक ‘म्है राजा थे प्रजा‘

26 मार्च 2019 उदयपुर, भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर में आयोजित हो रहे राजस्थानी नाट्य समारोह के दूसरे दिन नाटक ‘‘म्है राजा थे प्रजा‘’ का प्रभावी मंचन हुआ। भारतीय लोक कला मण्डल के मानद सचिव दौलत सिंह पोरवाल ने बताया कि भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर द्वारा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर तथा कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग राजस्थान सरकार, जयपुर के सहयोग से आयोजित हो रहे तीन दिवसीय ‘‘राजस्थानी नाट्य समारोह’’ के दूसरे दिन जोधपुर के अर्जून देव चारण लिखित और आशीष चारण द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘म्है राजा थे प्रजा‘’  का प्रभावी मंचन हुआ।

संस्था के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि नाटक‘‘म्है राजा थे प्रजा‘’ की कहानी हर युग केे राजा जैसा एक भोग विलासी, सनकी और निर्दयी राजा सरदार सिंह के इर्द-गिर्द घुमती है जो अपनी प्रजा की समस्याओं से अनभिज्ञ, लोभी और चापलूस दरबारियों से घिरा हुआ है तथा अधिकांश समय आमोद-प्रमोद व भोग विलास में ही डूबा हुआ रहता है। सत्ता के नशे में चूर राजा प्रजा पर कई उटपटांग नियम कायदे थोप देता है जिससे आम जन त्रस्त है। लेकिन इसके विपरीत सभी दरबारी राजा के कृपा पात्र बने रहने के लिये सनक पूर्ण व विवेकहीन निर्णयों में आग में घी डालने का काम करते है। जिससे कई हास्याद्पद स्थितियाॅ उत्पन्न होती है।

राजस्थानी नाट्य समारोह नाटक ‘म्है राजा थे प्रजा‘

नाटक में नयापन तब उत्पन्न होता है जब राजा की भौतिक सुखों के प्रति तृष्णा लगातार बढ़ती जाती है। वह असंतोष और अंजान बैचेनी से ग्रसित हो जाता है और प्रकृति को स्वयं के प्रत्यक्ष देखने की जिद कर लेता है। उसकी उदासी दूर करने एवं हंसाने के लिये सभी दरबारी कई तिकड़म लगाते है पर सब व्यर्थ जाता है। नाटक में भोला नामक व्यक्ति जो राजा के अनुचित करों को देने से मना करने के साथ ही आमजन को राजा के खिलाफ जागरूक करता है और राजा को भगवान मानने से भी मना कर देता है इस कारण राजा उसे दंड स्वरूप गूंगा और अंधा बना देता है वही अंत में राजा को प्रकृति के साक्षात्कार कराने में सफल होता है। प्रस्तुत नाटक में मनुष्य को मनुष्य न मानकर सत्ताधारी ताकतों का वस्तु के रूप में इस्तेमाल करने, सत्ता व शक्ति का नशा और इंसान की भौतिक सुखों की कभी ना खत्म होने वाली भूख को बेहद रोचक, हास्याद्पद और प्रभावशाली ढंग से ताना बाना बुना गया और नाटक इन सभी मानवीय अवगुणों पर कड़ा व्यंग करता है।

नाटक के मुख्य पात्रों में राजा सरदार सिंह- मगसिंह, दिवान- सौरभ तंवर, भोला- राहुल बोड़ा, राज कवि- कृष्णा टांक, सैनिक- संदीप, राजज्योतिष- भंवर लाल, सिपाही- अर्जून और सुरेश, ग्रामीण- आशिष नाबरिया और महेन्द्र रावल थे।

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उन्होने बताया कि समारोह के अंतिम दिन दिनांक 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर संकल्प नाट्य समिति, बीकानेर के आनन्द आचार्य द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘गवाड़’’ का मंचन होगा। उन्होने यह भी बताया कि कार्यक्रम भारतीय लोक कला मण्डल के मुक्ताकाशी रंगमंच पर प्रतिदिन सांय 7ः30 बजे से होंगें, जिसमें दर्शको का प्रवेश निःशुल्क है।

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