राम वचनों के निभाने में एक पल भी नहीें गंवाते थेः आचार्य शिवमुनि
महाप्रज्ञ विहार में आचार्यश्री शिवमुनिजी ने विजया दशमी के उपलक्ष में भगवान श्री राम एवं रावण के चरित्र पर विस्तार से बताते हुए कहा कि उस समय संसार में दो शक्तियां चलती थी एक भगवान श्री राम की और दूसरी रावण की। राम अपनी शक्तियों का उपयोग परहित में, परोपकार में, कमजोरों की रक्षा करने और जनहित के लिए करते थे लेकिन रावण उन शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए अहंकार के वश में था। भगवान श्री राम पितृभक्त थे। उन्होंने पिता के वचनों को निभाने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और 14 बरस के लिए बनवास को चले गये।
महाप्रज्ञ विहार में आचार्यश्री शिवमुनिजी ने विजया दशमी के उपलक्ष में भगवान श्री राम एवं रावण के चरित्र पर विस्तार से बताते हुए कहा कि उस समय संसार में दो शक्तियां चलती थी एक भगवान श्री राम की और दूसरी रावण की। राम अपनी शक्तियों का उपयोग परहित में, परोपकार में, कमजोरों की रक्षा करने और जनहित के लिए करते थे लेकिन रावण उन शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए अहंकार के वश में था। भगवान श्री राम पितृभक्त थे। उन्होंने पिता के वचनों को निभाने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और 14 बरस के लिए बनवास को चले गये।
उन्होेंने कहा कि आज राम कहां है और रावण कहां। राम तो हमारे घट-घट में है। हमारे भीतर राम बिराजे हैं। तीनों लोकों में राम ही सत्य है। राम का मतलब ही है शुद्ध चेतन आत्मा। जिस तरह से आत्मा सभी में है उसी तरह से राम सभी में बिराजमान हैं। भगवान श्री राम ने सिर्फ अपने पिता के वचन के निभाने के लिए 14 बरस का वनवास स्वीकार किया। यह रघुकुल की रीत है- रघुकुल रति रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई।
अचार्यश्री ने कहा कि विजया दशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है, अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है, भोग पर योग की विजय का प्रतीक है, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है, दुराचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक है। रावण चरित्र के बारे में बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि रावण में अहंकार था तो पश्चाताप भी था, वासना थी तो संयम भी था, सीमा माता के अपहरण की ताकत थी तो बिना सहमति के परस्त्री को स्पर्श नहीं करने का संकल्प भी था। सीता जीवित मिली यह राम की ताकत थी लेकिन सीता पवित्र मिली यह रावण की मर्यादा थी।
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