धूलकोट चौराहा का नाम बदलने पर क्षेत्रवासियों का विरोध
स्थानीय लोगो का कहना है की नगर निगम ने स्थानीय लोगों से किसी प्रकार की सहमति तक लेना उचित नहीं समझा और पल भर में ऐतिहासिक पहचान वाले 'धूलकोट' के नाम से स्थापित 'धूलकोट चौराहा' नाम को दस्तावेजों से गायब कर देने वाला कदम उठा लिया, जो निंदनीय है। ऐसा करके उदयपुर नगर निगम ने अपने फायदें के लिए किसे फायदा पहुंचाने का प्रयास किया यह शायद सभी समझ गए होंगे लेकिन कॉलोनी वासियों की भावनाओं के साथ बड़ा खिलवाड़ किया है।
इतिहास के पन्नों में दर्ज आहड़ सभ्यत’ के अवशेष उदयपुर के आयड़ क्षेत्र में महासतियां के पास है, जो मिट्टी में दबे होकर संरक्षित है। इन मिट्टी के टीलों को ‘धूलकोट’ के नाम से जाना जाता है। 80 के दशक में जब धूलकोट के पीछे आबादी बसी और आवासीय कॉलोनियां बनी तो यहां चार रास्ते निकले, जिनमें से एक ठोकर, दूसरा आयड़, तीसरा पहाड़ा और चौथा बोहरा गणेश मंदिर। इससे इस चौराहा का नाम ‘धूलकोट चौराहा’ रखा गया और तभी से यह ‘धूलकोट चौराहा’ के रूप में ही जाना जाता रहा है।
चौराहा पर बसी कॉलोनियों की पहचान (लेण्डमार्क) भी धूलकोट चौराहा ही है। कॉलोनियों में रहने वाले सभी लोगों ने अपने समस्त दस्तावेजों में पते में धूलकोट चौराहा ही दर्ज करा रखा है। हाल ही इस चौराहा का नाम ‘संत श्री पीपा जी चौराहा’ रखते हुए यहां लगे बोर्ड पर यह लिखवा भी दिया गया।
स्थानीय लोगो का कहना है की नगर निगम ने स्थानीय लोगों से किसी प्रकार की सहमति तक लेना उचित नहीं समझा और पल भर में ऐतिहासिक पहचान वाले ‘धूलकोट’ के नाम से स्थापित ‘धूलकोट चौराहा’ नाम को दस्तावेजों से गायब कर देने वाला कदम उठा लिया, जो निंदनीय है। ऐसा करके उदयपुर नगर निगम ने अपने फायदें के लिए किसे फायदा पहुंचाने का प्रयास किया यह शायद सभी समझ गए होंगे लेकिन कॉलोनी वासियों की भावनाओं के साथ बड़ा खिलवाड़ किया है।
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स्थानीय लोगो आक्रोश इस बात पर भी है की बोर्ड की इस प्रक्रिया से यहां रहने वाले लोगों को अपने समस्त दस्तावेजों में पता संशोधन करने में जो परेशानियां होगी शायद उसे नगर निगम में बैठे आला अफसरों और जनप्रतिनिधयों ने नहीं समझा।
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