रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी से पथरी को हटाया


रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी से पथरी को हटाया

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के यूरोलोजिस्ट डाॅ विश्वास बाहेती व टीम ने 23 वर्षीय महिला रोगी के किडनी में पथरी को बिना चीर-फाड़ के लेजर पद्धति की मदद से क्रश कर स्वस्थ किया। इस टीम में यूरोलोजिस्ट डाॅ पंकज त्रिवेदी, एनेस्थेटिस्ट डाॅ उदय प्रताप, नर्सिंग स्टाफ पुष्कर, जय प्रकाश, अविनाश, चंद्रकला एवं प्रवीण शामिल है।

 
रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी से पथरी को हटाया

गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के यूरोलोजिस्ट डाॅ विश्वास बाहेती व टीम ने 23 वर्षीय महिला रोगी के किडनी में पथरी को बिना चीर-फाड़ के लेजर पद्धति की मदद से क्रश कर स्वस्थ किया। इस टीम में यूरोलोजिस्ट डाॅ पंकज त्रिवेदी, एनेस्थेटिस्ट डाॅ उदय प्रताप, नर्सिंग स्टाफ पुष्कर, जय प्रकाश, अविनाश, चंद्रकला एवं प्रवीण शामिल है।

ओस्टीयोजेनिसिस इम्परफेक्टा, जन्मजात विकृति से पीड़ित भीलवाड़ा निवासी शेहनाज की उम्र 23 वर्ष है। उसका वजन मात्र 14 किलो एवं लम्बाई लगभग 2 फीट है। पिछले काफी समय से पेट की दायीं तरफ में दर्द, उल्टी एवं पेशाब में तकलीफ की शिकायत के चलते उसने गीतांजली हाॅस्पिटल के यूरोलोजिस्ट डाॅ विश्वास बाहेती से परामर्श लिया। सोनोग्राफी की जांच में 1.5 सेंटीमीटर व 8 मिलीमीटर के दो स्टोन (पथरी) पाए गए। इस जन्मजात विकृति के चलते रोगी को स्पाइन की परेशानी, हाथ व पैर की टूटी हुई हड्डियां, सीने में विकृति, शरीर के कई हिस्सों में फ्रैक्चर इत्यादि जैसी परेशानियां थी। इस वजह से रोगी का ब्लड प्रेशर नापने के लिए धमनी में इन्वेसिव लाइन डालनी पड़ी। और इसी कारण रोगी की ओपन सर्जरी करना काफी जोखिमपूर्ण था। इसलिए डाॅक्टरों ने लेजर पद्धति द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया। रोगी की सर्जरी करने से पूर्व उसकी कई तरह की जांचें की गई जैसे फेफड़ों की जांच, ईकोकार्डियोग्राफी द्वारा हृदय की जांच आदि जिससे लेजर प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा सके।

इस प्रक्रिया में चिकित्सक रोगी के पेशाब के रास्ते से दूरबीन की मदद से गुर्दे तक पहुँचे एवं लेजर की मदद से पथरी को चूरा/धूल कर स्टेंट डाल दिया। इससे रोगी के पेशाब के साथ ही स्टोन बाहर निकल गया। इस प्रक्रिया को रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी कहते है। इसमें कुल 90 मिनट का समय लगा। रोगी अब स्वस्थ है।

क्यों जटिल थी यह सर्जरी?

डाॅ बाहेती ने बताया कि रोगी की जन्मजात विकृति के कारण यह सर्जरी काफी जटिल थी। रोगी की किडनी एवं नलियां घुमी हुई थी जिससे पेशाब के रास्ते से किडनी तक पहुँचना काफी जोखिमपूर्ण था। साथ ही शरीर के कई हिस्सों में फ्रैक्चर के कारण सर्जरी काफी ध्यानपूर्वक की गई जिससे शरीर को कोई नुकसान न हो। और यदि ओपन सर्जरी की जाती तो रोगी आॅपरेशन थियेटर के टेबल पर ही दम तोड़ देती। एवं एनेस्थीसिया भी काफी सावधानीपूर्वक दिया गया क्योंकि इस विकृति के कारण रोगी के हाथ व पैर की टूटी हुई हड्डियां, सीने में विकृति जैसी परेशानियां थी जिससे रोगी को दुबारा पूर्वरुप में लाया जा सके।

क्या होती है रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी ?

डाॅ बाहेती ने बताया कि रेट्रोग्रेड इंट्रारीनल सर्जरी फ्लेक्सिबल यूरेट्रोस्कोप की मदद से गुर्दे के भीतर शल्य चिकित्सा करने की प्रक्रिया है। इस एंडोस्कोप को मूत्रमार्ग से मूत्राशय में और फिर मूत्राशय से यूरेटर के माध्यम से किडनी में पहुँचाया जाता है। इसमें पथरी को एंडोस्कोप के माध्यम से देखा जाता है और फिर लेजर (हाॅलियम) द्वारा क्रश/चूरा किया जाता है और छोटे टुकड़ों को फोरसेप द्वारा बाहर खींच लिया जाता है। यह प्रक्रिया विशेष प्रशिक्षण प्राप्त यूरोलोजिस्ट द्वारा की जाती है। इस प्रक्रिया द्वारा इलाज कराने पर त्वरित समाधान, अत्यधिक कम रक्तस्त्राव, बिना किसी चीरे या छेद के सर्जरी, ओपन सर्जरी के बाद लंबे समय तक दर्द का उन्मूलन एवं जल्दी स्वस्थ होना जैसे फायदे शामिल है। वर्तमान इस प्रक्रिया द्वारा इलाज दक्षिणी राजस्थान में केवल गीतांजली हाॅस्पिटल में ही संभव हो पा रहे है।

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