उदयपुर 21 नवम्बर 2019। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय के साहित्य संस्थान, भारतीय पुरातत्व सवेक्षण जोधपुर, मोहन लाल सुखाडिया विवि के इतिहास विभाग तथा उद्भव ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विश्व विरासत सप्ताह (19 से 25 नवम्बर) के अन्तर्गत भारतीय मूर्ति कला पर राष्ट्रीय कार्यशाला के तीसरे दिन डेक्कन कॉलेज पूना के प्रो. जी.वी. वेंगलूकर ने बताया की ऋग्वेद व उपनिषद में भी मूर्ति कला के बारे में जानकारी मिलती है।
मूर्तिकला हमे उस समय की सामाजिकता के बारे में बताती है। कोई भी विरासत जीवंत रखने के लिए जरूरी है की उस विषय को जानने वाला व्यक्ति स्वयं जीवंत हो।
व्यक्ति यदि अपनी परम्परा, संस्कृति, धर्म, मानवता एवं सच्चे इसांन के स्वरूप को मृत्युपरन्त बनाये रखे तो निश्चित रूप से वह जीवंत विरासत को आगे ले जाने में सक्षम है।
इतिहासविद् डॉ. विष्णु माली ने बताया की राजस्थान में काले, सफेद, भूरे तथा हल्के सलेटी, हरे, गुलाबी पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त पीतल या धातु की मूर्तियां हमें कालीबंगा, उदयपुर के निकट आहड़ सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी की मूर्तिया मिलती है।
उन्होंने बताया की मेवाड़ में शैव, वैष्णव व शाक्त सम्प्रदाय की मूर्तिया देखने को मिलती है जिनमें सास-बहू मंदिर, जगत का अम्बिका प्रसाद, कैलाशपुरी का एकलिंग जी मंदिर प्रसिद्ध है जहां सास-बहू मंदिर में रामायण महाकाव्य की विभिन्न घटनाओं की झलकियां देखने को मिलती है। वही शिव की छवियों के साथ राम-बलराम, परशुराम की छवियों का भी अंकन किया हुआ है।
इस अवसर पर निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल, प्रो. के.एस. गुप्ता, प्रो. ललित पाण्डेय, डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, छगन लाल बोहरा, हितेष कुमार, डॉ. महेश आमेटा, शोएब कुरैशी, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. कृष्णपाल सिंह देवड़ा, प्रो. दिग्विजय भटनागर, प्रो. प्रतिमा पाण्डेय, नारायण पालीवाल, रीना मेनारिया सहित शोधार्थी मौजुद थे।
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