उदयपुर, 7 नवम्बर 2019। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आगामी 8 से 12 नवम्बर तक शिल्पग्राम में पाँच फूड फेस्टीवल और नृत्य और संगीत उत्सव ‘‘शरद रंग’’ का आयोजन किया जायेगा। जिसमें विभिन्न राज्यों के नाना प्रकार के व्यंजनों के चटखरे लेने के साथ-साथ शास्त्रीय और कलाओं के फ्यूजन के अनेक रंग देखने को मिलेंगे।
केन्द्र के प्रभारी निदेशक सुधांशु सिंह ने इस आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वैविध्य सं भरपूर इस उत्सव में रोजाना मध्यान्ह 12.00 बजे से प्रारम्भ होगा जिसमें मुख्य रूप से ‘‘फूड फेस्टीवल’’ प्रमुख आकर्षण होगा। इस फड फेस्टीवल में लोगों को पंजाब का छोला कुुलछा, लखनऊ के वाहीद की स्वादिष्ट बिरयानी, खमण, ढोकला, थेपला जेसे गुजराती, बिहार का लिट्टी चोखा, मराठी व्यंजन आदि का स्वाद चखने को मिलेगा। दोपहर में ही उदयपुर के ऑर्केस्ट्रा कलाकारों द्वारा गायन वादन प्रतुत किया जायेगा।
मुख्य रंगमंच पर शाम 7.00 बजे से कार्यक्रम होगा। उत्सव के पहले दिन 8 नवम्बर को प्रसिद्ध सितार वादक चन्द्रशेखर फान्से व उनके दल द्वारा सितार पर मधुर पुराने फिल्मी गीतों की तान छेड़ी जायेगी। 9 नवम्बर को प्रसिद्ध तबला नवाज पं. चतुरलाल की स्मृति में आयोजित ‘‘स्मृतियाँ’’ में शास्त्रीय गायन व वादन होगा।
तीसरे दिन 10 नवम्बर को दिल्ली के संतोष नायर व उनके दल द्वारा मयूरभंज छाऊ शैली में नृत्य नाट्य ‘‘मिस्टिकल फाॅरेस्ट’’ का प्रदर्शन होगा। 11 नवम्बर को देश के लब्ध प्रतिष्ठित गायन बंधु पं. राजन व साजन मिश्रा अपने सुरों का जादू बिखेरेंगे। पाँच दिवसीय उत्सव के आखिरी दिन 12 नवम्बर को दिल्ली की मशहूर गज़ल गायिका राधिका चोपड़ा द्वारा गज़लें पेश की जायेगी।
चंद्रशेखर फांसे: देश के जाने माने सितार वादक हैं और अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान में स्नातक के बाद चन्द्रशेखर ने लखनऊ के भातखंडे संगीत विद्यापीठ में सितार में विशारद के उपरान्त मध्य प्रदेश के खैरागढ़ के इंदिरा कला विश्व विद्यालय में सितार में गहन शिक्षा हासिल की। इसके बाद उन्होंने सितार पर विभिन्न प्रकार के नये नये प्रयोग किये।
चंद्रशेखर के पिता हिंदुस्तानी शास्त्रीय परंपरा में प्रामाणिक सितार वादन करते हैं। उनके करियर में 25 साल के गायन, सिटिंग और वोकल गायन की कोचिंग और भारतीय शास्त्रीय संगीत और सितार की बारीकियों को बताते हुए व्याख्यान-प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। चन्द्रशेखर की पंद्रह सिंगिंग सितार ’सदाबहार पर फिल्माए गए सदाबहार हिंदी फिल्मी गीतों का एक मधुर संगीतमय गुलदस्ता है जो वास्तव में सभी के लिए सुखद है। चंद्रशेखर ने देश और विदेश में विशेषकर भारतीय दूतावास, जोहानिसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में इनकी कला को उत्कृष्ट प्रतिसाद मिला।
अपने विशाल संगीत ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, चंद्रशेखर ने प्रेरणा नाम की एक संगीत श्रृंखला जारी की, जिसमें साधारण स्तर के शब्दों में शास्त्रीय संगीत की विभिन्न बारीकियों और पेचीदगियों को समझाया गया। उन्होंने डीडी भारती पर 26 एपिसोड के टीवी सीरियल वद स्वरामाला ’के माध्यम से संगीत और संगीत प्रेमियों के छात्रों के बीच शास्त्रीय संगीत के प्रेम के प्रसार में भी योगदान दिया है, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। चंद्रशेखर की संगीत के प्रति समर्पण भावना ईश्वर की भक्ति से कम नहीं है, जो किसी को भी दिव्य के दायरे में ले जा सकती है।
राधिका चोपड़ा: जम्मू में जन्मी और पली-बढ़ी, राधिका ने बहुत कम उम्र में पं. जे. आर.शर्मा से संगीत सीखना शुरू कर दिया था और ऑल इंडिया रेडियो जम्मू के लिए गायन शुरू कर दिया। जम्मू के महिला गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक करने के बाद, उन्होंने संगीत और ललित कला संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में स्नातकोत्तर और एम.फिल भी किया। और पीएच.डी. संकाय से ही उन्होंने प्रख्यात गुरु बेगम अख्तर की प्रसिद्ध शिष्या शांति हीरानंद से ठुमरी, दादरा और गजल की तालीम हासिल की।
एक ऐसे युग में जहां फ्यूजन और नए युग का संगीत वर्तमान भारतीय संगीत परिदृश्य पर हावी हो रहा था ऐसे में डॉ. राधिका चोपड़ा जैसी अत्यंत प्रतिभाशाली और एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी कलाकार ने अपने पारंपरिक शुद्धतावादी राग आधारित गायकी के साथ उत्कृष्ट और मधुर गायन से अपनी अलग पहचान बनाई। डाॅ. राधिका ने इसके बाद भी भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के साथ प्रसिद्ध गज़लकारों फैज़ अहमद फैज़, साहिर लुधियानवी, मिर्ज़ा गालिब, कुंदन लाल सहगल जैसे महान हस्तियों को अपनी गायकी का आधार बनाया। उनके दर्शकों को उनके मधुर और मंत्रमुग्ध कर दिया गया है। आत्मा सरगर्मी प्रस्तुतियाँ, और शानदार व्यक्तित्व। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के उनके त्रुटिहीन उपन्यास के साथ स्पष्ट आवाज ने दुनिया भर में सही समझदार श्रोता की प्रशंसा हासिल की है।
पं. राजन व पं. साजन मिश्रा: 400 साल की पारिवारिक परम्परा को आगे बढ़ाते हुए इन दोनों भाईयों को संगीत जगत में बहुत ही सम्मान से देखा जाता है। बनारस घराने में जन्मे पंडित राजन और पंडित साजन मिश्रा को संगीत की शिक्षा उनके दादा जी पंडित बड़े राम जी मिश्रा और पिता पंडित हनुमान मिश्रा ने ही दी।
किशोरावस्था में 1978 में राजन-साजन जोड़ी ने श्रीलंका में अपना पहला विदेशी शो किया। आज इनकी आवाज सरहदों के पार- जर्मनी, फ्रांस, स्वीटजरलैंड, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, जैसे कितने ही मुल्कों में गूंजती है ! ख्याल शैली में अतुलनीय गायन के लिए लोकप्रिय इन भाईयों की जोड़ी को 1971 में प्रधानमंत्री द्वारा संस्कृत अवार्ड मिला, 1994-95 में गंधर्व सम्मान और 2007 में पदम् भूषण से नवाजा गया। इनके 20 से अधिक एल्बम संगीत प्रेमियों के लिए उपलब्ध हैं।
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