जर्मन तकनीक से हुए सफल हृदय के आॅपरेशन
जर्मनी की नवीनतम लिपजिग तकनीक से मिनिमल इन्वेसिव कार्डियक सर्जरी यानि मात्र 2 इंच का चीरा लगा, कर दिए हृदय के दो बड़े आॅपरेशन सफल। गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के कार्डियक थोरेसिक व वेसक्यूलर सर्जन डाॅ संजय गांधी ने इसे दक्षिणी राजस्थान का प्रथम सफल आॅपरेशन बताया है। और कहा कि वर्तमान में इस तकनीक से विश्व के चुनिंदा चिकित्सा केंद्रों में ही हृदय के आॅपरेशन किए जा रहे है। इस लिहाज से गीतांजली हाॅस्पिटल ने भी इनमें अपना नाम दर्ज किया है।
जर्मनी की नवीनतम लिपजिग तकनीक से मिनिमल इन्वेसिव कार्डियक सर्जरी यानि मात्र 2 इंच का चीरा लगा, कर दिए हृदय के दो बड़े आॅपरेशन सफल। गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के कार्डियक थोरेसिक व वेसक्यूलर सर्जन डाॅ संजय गांधी ने इसे दक्षिणी राजस्थान का प्रथम सफल आॅपरेशन बताया है। और कहा कि वर्तमान में इस तकनीक से विश्व के चुनिंदा चिकित्सा केंद्रों में ही हृदय के आॅपरेशन किए जा रहे है। इस लिहाज से गीतांजली हाॅस्पिटल ने भी इनमें अपना नाम दर्ज किया है।
क्या था मामला?
डाॅ गांधी ने बताया कि डूंगरपुर निवासी सुशीला देवी पांचाल (उम्र 42 वर्ष) के हृदय में छेद था। वहीं दूसरी रोगी सिरोही निवासी मफी देवी (उम्र 30 वर्ष) के वाॅल्व में लीकेज की बीमारी थी। जिस कारण दोनों रोगियों को ओपन हार्ट सर्जरी की सलाह दी गई। परंतु दोनों का इलाज मिनिमल इन्वेसिव कार्डियक सर्जरी द्वारा किया गया।
क्या था आॅपरेशन?
इस जर्मन तकनीक जिसे लिपजिग as MICS (Minimally Invasive Cardiac Surgery) तकनीक कहते है, द्वारा इलाज हेतु आॅपरेशन से एक दिन पहले डाॅ गांधी ने पूरी टीम जिनमें ओटी स्टाफ, ओटी टेक्निशियन्स एवं कार्डियक एनेस्थेटिस्ट शामिल है, के साथ मिलकर योजनाबद्ध तरीके से आॅपरेशन को अंजाम दिया। क्योंकि इस प्रक्रिया की तकनीकी जटिलताओं के कारण योजना बनानी जरुरी है। इस आॅपरेशन में सीने के साइड में 2 इंच का एक छोटा चीरा लगाया गया। और ट्रांसईसोफेगल ईकोकार्डियोग्राफी मशीन की मदद से हृदय के अंदर कैनुला (ट्यूब) डाली गई जिससे रोगी को हार्ट-लंग मशीन पर लिया गया। इस आॅपरेशन में पहले रोगी के हृदय के छेद को बंद किया गया। वहीं दूसरे रोगी के 2.7 सेंटीमीटर का वाॅल्व प्रत्यारोपित किया गया। इस प्रक्रिया में लगभग 4-6 घंटें का समय लगा।
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क्या थी तकनीकी जटिलताएं?
इस प्रक्रिया द्वारा सर्जरी तकनीकी तौर पर काफी जटिल होती है परंतु रोगी के लिए लाभदायक होती है। क्योंकि इतने छोटे चीरे से हृदय का संचालन और हृदय के अंदर प्रवेश करना या उपकरणों का इस्तेमाल काफी मुश्किल होता है। इसके लिए विशेष उपकरण जैसे ट्रांसईसोफेगल ईकोकार्डियोग्राफी मशीन और लम्बे व छोटे व्यास के उपकरणों की जरुरत पड़ती है। साथ ही ऐसे आॅपरेशन में कार्डियोलोजिस्ट एवं कार्डियक एनेस्थेटिस्ट द्वारा भी महत्पवूर्ण भूमिका निभाई जाती है।
कार्डियोलोजिस्ट व कार्डियक एनेस्थेटिस्ट द्वारा भी महत्वपूर्ण निभाई गई:
कार्डियोलोजिस्ट डाॅ डैनी कुमार, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डाॅ अंकुर गांधी, डाॅ कल्पेश मिस्त्री एवं डाॅ मनमोहन जिंदल ने रोगी को हार्ट-लंग मशीन पर लिया। अति सूक्ष्म चीरे के कारण हृदय का नियंत्रण बहुत मुश्किल होता है। साथ ही चीरा लगाते ही हृदय से रक्तस्त्राव शुरु हो जाता है जिसको कई तरह की कैनुला से रोका जाता है। यह कैनुला गले, पैर या जांघ से हृदय तक पहुँचायी जाती है। इसके लिए पैर के रास्ते से एक वायर डाला जाता है जिसके ऊपर पाइप व कैनुला होती है। कैनुला के हृदय तक पहुँचते ही रोगी को हार्ट-लंग मशीन से जोड़ा गया जिसके बाद आॅपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।
क्यों जटिल थी यह सर्जरी?
डाॅ गांधी ने बताया कि पारंपरिक तकनीक यानि ओपन हार्ट सर्जरी में लगभग 7 इंच लम्बा चीरा लगाया जाता है। और सीने की हड्डी को काट कर आॅपरेशन किया जाता है। परंतु इस तकनीक की मदद से केवल 2 इंच चीरे से सर्जरी की गई जिससे सीने की हड्डी को नहीं काटना पड़ा और अति सूक्ष्म चीरे से सर्जरी को अंजाम दिया गया।
इस तकनीक से रोगी को क्या फायदे है?
डाॅ गांधी ने बताया कि चूंकि इस नवीनतम तकनीक द्वारा अति सूक्ष्म चीरे से सर्जरी की जाती है जिससे रोगी बहुत जल्दी स्वस्थ हो जाता है। यह चीरा बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है। साथ ही पोस्ट आॅपरेटिव दर्द, रक्तस्त्राव एवं संक्रमण का खतरा भी काफी कम होता है। और छोटे चीरे के कारण रोगी जल्दी स्वस्थ हो पाता है। हाॅस्पिटल में ज्यादा दिन तक भर्ती भी नहीं रहना पड़ता है। और रोगी अपने रोज के काम भी शीघ्र करना प्रारंभ देता है और आराम से चल-फिर पाता है। इस सर्जरी में बहुत कम टांकें लिए जाते है जिससे काॅस्मेटिक लाभ भी होता है। रोगी मफी देवी का इलाज राजस्थान सरकार की भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत निःशुल्क हुआ।
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