उदयपुर। पर्यटन सीजन में लेकसिटी की झीलो में तैरता प्लास्टिक, शराब की खाली बोतले, पानी की बोतले, खाद्य, अखाद्य सामग्री और कचरा झीलों की सुंदरता व स्वास्थ्य को लील रहा है।
सीसारमा नदी के पिछोला में प्रवेश के साथ ही यह नदी शहर का मेला, सीवर व कचरा उठाती हुई पिछोला में समाहित होती है और पिछोला के पानी को प्रदूषित करती है।
झील संरक्षण समिति के सह सचिव डॉ अनिल मेहता ने कहा कि गंगा की अविरलता व निर्मलता हेतु नदियों, नदियों के उद्गम स्थलों, झीलों तालाबो को संजोना होगा। झीलों को विषैले केमिकल, कचरे व सीवर से बचानें की जिम्मेदारी हर नागरिक को उठानी होगी।
झील प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झीलों में फेंके जा रहे कचरे और जगह जगह नालियों का झील में जाना, सीवर का झील में मिलना और लोगो का झीलों को कचरा पात्र बनाना शर्मनाक है।
गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि पिछोला का पानी बेड़च के उदगम स्थल से आने वाला जल है जो पिछोला होते हुए आयड नदी से होता हुआ उदय सागर से चम्बल में मिलता हुए यमुना व गंगा में मिलता है। गंगा की निर्मलता के लिए उदयपुर की झीलों की सुंदरता बनाये रखने का दायित्व उदयपुर का भी है।
दिगम्बर सिंह व कृष्णा कोष्ठी ने कहा कि झीलों नदियों में फैंकी जा रही सामग्री की रसायनिक प्रतिक्रिया होती है जिससे जलीय गुणवत्ता प्रभावित होती है जो पानी, जलीय जीव व मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालती है।
द्रुपद सिंह व पल्लव दत्ता ने कहा कि प्रशासन को झीलों के बाहरी सौंदर्य के बजाये जलीय गुणवत्ता बनाए रखने पर कार्य करना चाहिए।
संवाद पूर्व पिछोला के अमरकुण्ड व हनुमान घाट पर आयोजित श्रमदान में रमेश चन्द्र राजपूत, मोहन सिंह चौहान, पल्लव दता, कृष्णा कोष्टी, दूप्रद सिंह, जसवंत सिंह टाँक, दिगम्बर सिंह, तेज शंकर पालीवाल ने झीलों पर तैरता कचरा, पॉलीथिन, घरेलू सामग्री, पूजन सामग्री व जलीय घास निकाली।
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